राजस्थान का भूगाेल

1.राजस्थान की उत्पत्ति

पैंजिया:- अल्फ्रेड वेगनर के अनुसार महाद्वीपों के संयुक्त रूप को क्या कहा जाता है जो कालांतर और वर्तमान में दो भागों में विभाजित है

पैंजिया: 1. उत्तरी भाग( अंगारा लैंड/ लोरेसिया)

2. दक्षिण भाग( गोंडवाना (भारत और राजस्थान))

पैंथालासा:- वेगनर के अनुसार महासागरों के संयुक्त रूप को पैंथालासा कहा जाता है इसका मूल महासागर प्रशांत महासागर था।

टेथिस सागर:- यह एक भूसन्नति था जो अंगारा लैंड व गोंडवानालैंड के मध्य स्थित था ।

राजस्थान का निर्माण:- गोंडवाना लैंड( अरावली और हाडोती), टेथिस सागर (मरुस्थल और मैदान)

अरावली वह हाडोती भारत के प्रायद्वीपीय पठार का हिस्सा है जबकि मरुस्थल व मैदान भारत के उत्तर विशाल मैदान का हिस्सा है।

राजस्थान का परिचय

भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर पश्चिम भाग में अवस्थित राजपूताने की कहानी गौरवपूर्ण परंपरा की कहानियां पृथ्वीराज राणा सांगा प्रताप वीर दुर्गादास अमर सिंह राठौर सवाई मानसिंह आदि ने इस राज्य का नाम विशेष रूप से गौरवान्वित किया है राजस्थान जौहर की ज्वाला उसे खेलने वाली रानी पद्मिनी हाडी रानी कर्मावती एवं कर्तव्य प्राण पन्नाधाय की भूमि है जिन्होंने इतिहास को पलट कर साहित्य को परिणाम राष्ट्र को नवजीवन प्रधान किया है।

राजस्थान के इस स्वरूप को बनाने में राजपूताने के प्राचीनतम राजवंशों व स्वतंत्रता प्रेमियों का विशेष योगदान रहा है जिन्होंने न केवल राजस्थान की संस्कृति को मजबूत किया अपितु राजस्थान की जनता को मुगलों और अंग्रेजों की गुलामी व अत्याचारों से मुक्ति दिलवाई ।

इस प्रकार राजपूताने का इतिहास सूर्य से परिपूर्ण स्वामी भक्ति से ओतप्रोत राजस्थान का वर्तमान स्वरूप 7 चरणों में हुए एकीकरण की प्रक्रिया के फलस्वरूप 1 नवंबर 1956 को हमारे सामने आया ।

प्रारभ से ही राजपूत राजाओं का सूर्य चल रहा है इस राजस्थान प्रदेश के विभिन्न कालों में अलग-अलग नामों से जाना जाता रहा है जो निम्न प्रकार हैं ऋग्वेद में राजस्थान में स्थित विभाग को ब्रह्मवर्त वह रामायण काल में वाल्मीकि मरू कांतर ने नाम दिया है राजस्थान को मरू मरू प्रदेश मरू आर राजस्थान राजपूताना रजवाड़ा आदि अन्य नामों से आज तक जाना जाता है मुगल साहित्य का इतिहास का राजपूत शब्द को बहुवचन में लिखने में राजपूताना प्रयोग करते थे। संभवत अंग्रेजों ने इसलिए इस राज्य का नाम राजपूताना आधारित राजपूतों का आदेश रख दिया

आयरलैंड के निवासी जॉर्ज थॉमस ने स्वतंत्र रूप से सर्वप्रथम ग्वालियर के पश्चिम में स्थित राजपूत रियासतों के समूह को सन 1800 ईसवी में राजपूताना नाम से संबोधित किया क्योंकि जॉर्ज थॉमस ग्वालियर के मराठा शासक दौलतराव सिंधिया का अंग्रेजी कमांडर था 1805 ईस्वी में विलियम फ्रैंकलिन ने अपनी पुस्तक मिलिट्री मेंबर्स ऑफ़ मीटर दौड़ थॉमस ने लिखा कि जॉर्ज थॉमस व पहला व्यक्ति था जिसने राजपूताना शब्द का प्रयोग किया आधार राजपूताना शब्द का सर्वप्रथम लिखित प्रमाण हमें 1805 ईसवी में मिलता है।

राजस्थान शब्द का प्राचीनतम उल्लेख विक्रम संवत 682 (625ईसवी पूर्व) खीमज माता मंदिर बसंतगढ़ सिरोही पर उत्तीर्ण बसंतगढ़ शिलालेख में मिलता है जहां राजस्थानांयादित्य शब्द का प्रयोग किया गया था लेकिन इस शब्द से यह पता नहीं चलता कि यह शब्द किस क्षेत्र विशेष के लिए प्रयुक्त हुआ है यह किसी व्यक्ति विशेष के लिए ।

बसंत बसंतगढ़ शिलालेख चावड़ा वंश के शासक वर्मलात के शासनकाल में दास प्रथा पर उत्कीर्ण था।

राजस्थान का प्रथम ऐतिहासिक ग्रंथ मुंहनोत नैंसी नैंसी री ख्यात अमानत नैंसी राजस्थान का अबुल फजल द्वारा रचित वह राज रूपक वीरभान द्वारा रचित ग्रंथ में पहली बार राजस्थान शब्द का प्रयोग हुआ था लेकिन यह सब राजपूताना भूभाग के लिए नहीं किया गया था तो सन 1971 में जोधपुर के महाराजा भीम सिंह ने मराठों के विरुद्ध संयुक्त कार्यवाही करने के लिए जयपुर नरेश सवाई प्रताप सिंह को लिखे गए पत्र में राजस्थान राजस्थान में एकता की इच्छा प्रकट की थी।

कर्नल जेम्स टॉड घोड़े वाले बाबा तथा राजस्थान के इतिहास के जनक नए 1829 में प्रकाशित अपनी पुस्तक एनल्स एंड एंटीक्विटीज आफ राजस्थान या सेंट्रल एंड वेस्टर्न राजपूत स्टेट ऑफ इंडिया मैं इसे राजस्थान रजवाड़ा राजस्थान नाम दिया था तुमने पुरानी यादों के आधार पर इस भूभाग को यह ना प्रदान किए थे कर्नल जेम्स टॉड की 19वीं शताब्दी का प्रथम इतिहासकार था जिसने राजस्थान की सामंती व्यवस्था जागीरदारी व्यवस्था जमीदारी व्यवस्था शिवलिंग पर विस्तार से लिखा कर्नल टॉड की पुस्तक का संपादन कार्य विलियम क्रुक्स ने इस पुस्तक का हिंदी अनुवाद डॉ गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने किया था

पहली बार राजस्थान शब्द का प्रयोग राजस्थान के एकीकरण के द्वितीय चरण 25 मार्च 1948 को गठित पूर्व राजस्थान संघ में किया गया ।

30 मार्च 1949 ईस्वी को चार बड़ी रियासतें जयपुर जोधपुर जैसलमेर बीकानेर का एकीकरण हुआ वह लगाओ वर्तमान स्वरूप प्राप्त हुआ था इसलिए प्रतिवर्ष राजस्थान स्थापना दिवस 30 मार्च को मनाया जाता है 26 जनवरी 1950 ईस्वी को भारत सरकार ने इसे राजस्थान राज्य की मान्यता प्रदान की राजधानी जयपुर पी सत्यनारायण समिति के आधार पर को बनाया क्योंकि इस दिन भारत का संविधान पूर्ण रूप से लागू हुआ था राजस्थान की पूर्ण एकीकरण के समय आधार 1 नवंबर 1956 को राज्य में 26 जिले 26 वा जिला अजमेर थे 1 नवंबर 1956 को संपूर्ण एकीकरण के पंचायत इसका वर्तमान स्वरूप बना हुआ है वैधानिक रूप से इस प्रदेश का नाम राजस्थान पड़ा इसलिए प्रतिवर्ष राजस्थान स्थापना दिवस 1 नवंबर को मनाया जाता है।

2. राजस्थान की स्थिति एवं विस्तार

1.स्थिति -अक्षांश और देशांतर 2. विस्तार- क्षेत्रफल, आकृति और सीमा

राजस्थान की स्थिति अक्षांश के अनुसार उत्तरी गोलार्ध में और देशांतर के अनुसार पूर्वी गोलार्ध में स्थित है।

महत्वपूर्ण बिंदु राजस्थान की स्थिति अक्षांश व देशांतर के अनुसार उत्तरी पूर्वी है राजस्थान की स्थिति भारत के अनुसार उत्तर पश्चिम है

राजस्थान का अक्षांशीय विस्तार अक्षांश 23 डिग्री 3 मिनट उत्तरी अक्षांश स्थान बोर कुंडा गांव जिला बांसवाड़ा दिशा दक्षिण 30 डिग्री 12 मिनट स्थान कोना गांव जिला श्रीगंगानगर दिशा उत्तर दोनों उत्तर और दक्षिण दिशा में में 826 किलोमीटर का अंतर है

महत्वपूर्ण बिंदु वन 7 डिग्री 9 मिनट अक्षांशों में राजस्थान का विस्तार है 23 डिग्री साडे 23 डिग्री अक्षांश ट्रॉपिक ऑफ़ कैंसर लाइन या कर्क रेखा या उत्तरी अनाथ को राजस्थान के बांसवाड़ा डूंगरपुर से गुजरती है राजस्थान की इस की कुल लंबाई 26 किलोमीटर है राजस्थान उत्तरी गोलार्ध का सबसे बड़ा दिन m34 होती है कक्षा क्रांति 2015 से इसे अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जाता है

राजस्थान का देशांतरीय विस्तार राजस्थान का देशांतर 69 डिग्री 30 मिनट पूर्वी देशांतर से स्थान कटरा गांव जिला जैसलमेर दिशा पश्चिम तथा 78 डिग्री 17 मिनट पूर्वी देशांतर जिला धौलपुर स्थान सिलाना गांव दिशा पूर्व वह पूर्व से पश्चिम की दूरी 869 किलोमीटर है। तथा पूर्वी देशांतर के दोनों देशांतर के बीच 8 डिग्री से 40 मिनट में राजस्थान का विस्तार है।

मध्य गांव सेटेलाइट सर्वे के अनुसार राजस्थान का मध्य गांव गगराना नागौर तथा देशांतर रेखाओं की स्थिति रेखा व समय रेखा कहा जाता है । 1 डिग्री देशांतर बराबर 4 मिनट 1 मिनट देशांतर बराबर 4 सेकंड

राजस्थान के पश्चिम में जैसलमेर वह पूर्व में धौलपुर के मध्य समय अंतराल 35 मिनट 8 सेकंड है।

राजस्थान का विस्तार क्षेत्रफल आकृति सीमा

क्षेत्रफल राजस्थान का क्षेत्रफल 342239 वर्ग किलोमीटर है तथा 132139 मील स्क्वायर है महत्वपूर्ण बिंदु देश के कुल क्षेत्रफल में राजस्थान का योगदान 10 पॉइंट 41% 1 नवंबर 1956 से क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान का स्थान प्रथम 1 नवंबर 2000

राजस्थान में क्षेत्रफल की दृष्टि से बड़े जिले जैसलमेर, बीकानेर, बाड़मेर ,जोधपुर

क्षेत्रफल की दृष्टि से छोटे जिले धौलपुर, दोसा ,डूंगरपुर, प्रतापगढ़

महत्वपूर्ण बिंदु जैसलमेर राजस्थान का क्षेत्रफल का 11 पॉइंट 22 प्रतिशत है

राजस्थान में 10% से अधिक क्षेत्रफल वाला एकमात्र जिला जैसलमेर

धौलपुर राजस्थान के कुल क्षेत्रफल का प्रतिशत है राजस्थान में 1% से कम क्षेत्रफल वाला एकमात्र जिला धौलपुर राजस्थान का सबसे बड़ा जिला जैसलमेर में सबसे छोटे जिले धौलपुर का 12 पॉइंट 64 गुना है ।

विश्व के क्षेत्रफल में राजस्थान का योगदान जीरो 25% है जबकि भारत में 2 पॉइंट 42 प्रतिशत है।

प्रमुख देश जर्मनी से राजस्थान बराबर जापान से बराबर ब्रिटेन से 2 गुना बड़ा है तथा श्रीलंका से 5 गुना बड़ा है तथा इजराइल से 17 गुना बड़ा है।

राजस्थान की आकृति

पीएच हेड लेने राजस्थान की आकृति रोंबस 28 अंकों ने चित्रकूट का है जिसे पतंग अगर आकृति भी कहा जाता है

राजस्थान की सीमा राजस्थान की अंतर्राष्ट्रीय सीमा 1070 किलोमीटर अंतर राज्य सीमा 4850 किलोमीटर इस प्रकार राजस्थान की कुल सीमा की लंबाई 5920 किलोमीटर है।

अंतर्राष्ट्रीय सीमा क्लोज कर मैटर मे

नाम – सर श्री रेडक्लिफ

निर्धारण तिथि 17 अगस्त 1947

शुरुआत हिंदुमलकोट श्रीगंगानगर अंतिम बाखासर बाड़मेर यह राजस्थान की कुल सीमा का 18% 1070 किलोमीटर है अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पाकिस्तान के 2 राज्य पंजाब और सिंध स्थित है।

महत्वपूर्ण बिंदु :-

श्रीगंगानगर अंतरराष्ट्रीय सीमा पर सबसे निकटतम जिला मुख्यालय है ।बीकानेर अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखा पर सर्वाधिक दूर जिला मुख्यालय है ।धौलपुर अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखा से सर्वाधिक दूर जिला मुख्यालय है।

अंतर्राज्यीय सीमा:- सीमा- 4850 कि.मी।, पड़ोसी राज्य:- 5

1.मध्य प्रदेश-1600km

2.हरियाणा-1262km

3.गुजरात-1022km

4.उत्तर प्रदेश-877km

5.पंजाब-89km

पड़ोसी राज्यों के साथ राजस्थान के जिले :-

1.पंजाब =श्रीगंगानगर,हनुमानगढ़।

2.हरियाणा= जयपुर, भरतपुर, हनुमानगढ़ ,सीकर ,चूरू ,झुंझुनू, अलवर।

3.उत्तर प्रदेश = भरतपुर ,धौलपुर।

4.मध्य प्रदेश = धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर, कोटा, भीलवाड़ा, बांसवाड़ा ,बारां, झालावाड़ ,प्रतापगढ़ ,चित्तौड़गढ़।

5. गुजरात= जालौर ,बांसवाड़ा ,बाड़मेर, उदयपुर ,सिरोही ,डुंगरपुर।

महत्वपूर्ण बिंदु :- राजस्थान के वे जिले जो 2 राज्यों के साथ सीमा बनाते हैं-

1. हनुमानगढ़ -पंजाब+ हरियाणा।

2.भरतपुर -हरियाणा+ उत्तर प्रदेश।

3.धौलपुर- उत्तर प्रदेश+ मध्य प्रदेश।

4.बांसवाड़ा- मध्यप्रदेश +गुजरात

कोटा – चित्तौड़गढ़ :- राजस्थान के 1 जिले हैं जो एक राज्य मध्यप्रदेश से दो बार सीमा बनाते हैं।

कोटा:- राजस्थान का वह जिला है जो राज्य के साथ दो बार सीमा बनाता है वह अविखंडित है।

चित्तौड़गढ़ राजस्थान का वह जिला है जो राज्य के साथ दो बार सीमा बनाता है वह विखंडित है

भीलवाड़ा चित्तौड़गढ़ को दो भागों में विखंडित करता है

अंतर्राज्यीय सीमा पर सर्वाधिक सीमा झालावाड़ की मध्यप्रदेश के साथ तथा सबसे कम सीमा बाड़मेर की गुजरात के साथ ।

25 जिले राजस्थान के सीमावर्ती जिले हैं ,और 23 जिले अन्तर्राज्यीय सीमावर्ती,4 जिले अंतरराष्ट्रीय सीमावर्ती,और 2 जिले अंतर्राज्यीय व अंतरराष्ट्रीय सीमावर्ती( श्रीगंगानगर व बाड़मेर)।

8 जिले राजस्थान के वे जिले जो अंत स्थलीय सीमा बनाते हैं जैसे जोधपुर, बूंदी, टोंक, राजसमंद, अजमेर, नागौर ,पाली, दौसा।

अजमेर चित्तौड़गढ़ के बाद राजस्थान का दूसरा विखंडित जिला है

राजसमंद राजसमंद अजमेर को दो भागों में विखंडित करता है इसका जिला मुख्यालय इसके नाम से ही नहीं है राजनगर राजसमंद का जिला मुख्यालय है

पाली राजस्थान में सर्वाधिक जिलों के साथ सीमा बनाता है 8 जिले

नागौर नागौर सर्वाधिक संभाग मुख्यालय के साथ सीमा बनाता है जैसे जयपुर अजमेर जोधपुर बीकानेर

सीमावर्ती विवाद :- मानगढ़ हिल ,स्थिति -बांसवाड़ा ,विवाद – राजस्थान व गुजरात के मध्य ।बजट 2018-19 में इसके विकास के लिए 7 करोड का प्रस्ताव रखा गया था।

राजस्थान के ऐतिहासिक एवं भौगोलिक स्थानों की वर्तमान स्थिति

1.वागड़= राजस्थान के दक्षिणी भाग को कहा जाता है जहां वागडी बोली बोली जाती है इसमें शामिल जिले हैं बांसवाड़ा डूंगरपुर व प्रतापगढ़।

बागड़= अरावली का पश्चिमी भाग जहां पुरानी जलोढ़ मिट्टी स्थित है जिसका विस्तार पाली,नागौर,सीकर, झुंझुनू में है उसे बागड़ कहते हैं।

2.थली= मरुस्थल के ऊँचे उठे हुए भाग को थली कहा जाता है ।इसमें शामिल जिले हैं बीकानेर व चूरु, जहां कोई नदी नहीं है।

तल्ली= पश्चिमी राजस्थान में बालूका स्तूपों के मध्य भूमि को तल्ली या प्लाया कहा जाता है। यह सर्वाधिक जैसलमेर में पाई जाती है।

3.राठी= 25cm से कम वर्षा वाले क्षेत्र को राठी कहा जाता है। इसमें शामिल जिले हैं बीकानेर ,जैसलमेर व बाड़मेर । इस क्षेत्र में पाई जाने वाली गाय की नस्ल को भी राठी कहा जाता है।

राठ/अहीरवाटी= यादव (अहीर) वंश द्वारा शासित प्रदेश जिसका विस्तार मुख्यतः अलवर व जयपुर की कोटपूतली तहसील में है।

4.माल/हाड़ौती= बेसाल्ट लावा के द्वारा निर्मित भौतिक प्रदेश जिसका विस्तार कोटा ,बूंदी व झालावाड़ में है इसे हाडोती प्रदेश कहते हैं।

मालव = मध्यप्रदेश के मालवा पठार का विस्तार राजस्थान के जिन जिलों में है उन्हें मालव कहा जाता है। इसमें शामिल जिले हैं प्रतापगढ़ व झालावाड।

5.शेखावाटी= शेखावतों के द्वारा शासित प्रदेश जिसमें चूरू ,सीकर व झुंझुनूं जिले शामिल ।

तोरावाटी = काँतली नदी के अपवाह क्षेत्र को तो तोरावाटी कहा जाता है ।इसमें शामिल जिले हैं सीकर और झुंझुनूं।

6.मरू = अरावली के पश्चिम का शुष्क प्रदेश /मरुस्थलीय प्रदेश में मुख्यतः जोधपुर संभाग शामिल हैं उसे मरू प्रदेश कहते हैं।

मेरू = मेरु अरावली को कहा जाता है जो राजस्थान का प्राचीनतम भौतिक प्रदेश है।

7.मत्स्य संघ = राजस्थान के एकीकरण के प्रथम चरण को मत्स्य संघ कहा जाता है ,जिसका गठन 18 मार्च 1948 को अलवर ,भरतपुर ,धौलपुर तथा करौली को मिलाकर किया गया ।मत्स्य संघ शब्द के .एम मुंशी द्वारा दिया गया ।

मत्स्य = ऐतिहासिक जनपदकाल में अलवर के दक्षिण-पश्चिम भाग को मत्स्य कहा जाता था जिसकी राजधानी विराट (जयपुर )”परिवर्तित नाम विराट नगर “में स्थित है।

8.मेवात = मेवात अलवर ,भरतपुर जिले को कहा जाता है क्योंकि इस क्षेत्र में मेव जाति का आधिपत्य रहा है।

मेवल= डूंगरपुर और बांसवाड़ा के मध्य के पहाड़ी क्षेत्र को मेवल पर आ जाता है यह मुख्यतः भील जनजाति का क्षेत्र है।

9.बीड़ = शेखावाटी के झुंझुनू जिले में पाई जाने वाली चारागाह भूमि को बीड़ कहा जाता है।

बीहड़/डांग = चंबल नदी के क्षेत्र में अवनालिका अपरदन के कारण भूमि उबड- खाबड हो जाती है उसे बीहड़ कहते हैं। इसमें शामिल जिले करौली ,धौलपुर ,सवाई माधोपुर।

10.भोराट= उदयपुर की गोगुंदा पहाड़ी वह राजसमंद की कुंभलगढ़ पहाड़ी के मध्य का पठारी भाग को भोराट कहा जाता है ।यह राजस्थान का दूसरा ऊंचा पठार है ।(1225 मीटर)

भोमट= उदयपुर का दक्षिणी भाग व मुख्यतः डूंगरपुर के मध्य का पहाडी क्षेत्र भोमट कहलाता है ।इस क्षेत्र में मुख्यतः भील जनजाति पाई जाती है।

11.ब्रजनगर= झालावाड के झालरापाटन का प्राचीन नाम

बृजनगर= राजस्थान के भरतपुर जिले को कहा जाता है जो मुख्यतः उत्तर प्रदेश से संलग्न/ लगता हुआ है।

12.मारवाड़= पश्चिमी राजस्थान को कहा जाता है जहां मुख्यतः मारवाड़ी बोली बोली जाती है इसका विस्तार मुख्यतः जोधपुर संभाग में है

मेवाड़/मेदपाट/प्राग्वाट= ऐतिहासिक काल में उदयपुर, चित्तौड़गढ़ , राजसमंद ,भीलवाड़ा को मेवाड़ कहा जाता था।

मेरवाड़ा= मारवाड़ और मेवाड़ के मध्य स्थित क्षेत्र जिसका विस्तार मुख्यतः अजमेर व आंशिक रूप से राजसमंद शामिल है ।एकीकरण के अंतिम चरण( 1 नवंबर 1956 )में इसे राजस्थान में मिलाया गया।

13.यौद्धेय = राजस्थान के उत्तरी भाग को कहा जाता है जिसमें गंगानगर व हनुमानगढ़ शामिल है।

14.जांगल= बीकानेर व जोधपुर के उत्तरी भाग को कहा जाता है जहां मुख्यतः कंटीली वनस्पति पाई जाती है ।इसकी राजधानी अहिच्छत्रपुर थी।

15.अहिच्छत्रपुर = ऐतिहासिक काल में नागौर को कहा जाता था ।जांगल की राजधानी थी।

16.सपादलक्ष= ऐतिहासिक काल में अजमेर को कहा जाता था जहां चौहानों क्यों शासन था

17.ढूॅढाड़= ढूंढ नदी के कारण मुख्यतः जयपुर व दौसा टोंक क्षेत्र को ढूंढाड़ कहा जाता था।

18.शूरसेन= ऐतिहासिक जनपद काल में राजस्थान के पूर्वी भाग को शूरसेन कहा जाता था ।।जिसमें शामिल जिले -भरतपुर, करौली ,धौलपुर । जिसकी राजधानी मथुरा थी।

19.हयाहय= ऐतिहासिक काल में कोटा में बूंदी के क्षेत्र को हयाहय कहा जाता था।

20.शिवी= उदयपुर, चित्तौड़गढ़ क्षेत्र को कहा जाता था जिसकी राजधानी नगरी/ मज्झमिका/ मध्यमिका थी।

21.चन्द्रावती= सिरोही का प्राचीन नाम जहाॅ से भूकंप रोधी इमारतों के अवशेष प्राप्त हुए हैं।

22.जाबालीपुर= जाबाली ऋषि की भूमि जिसे वर्तमान में जालौर कहा जाता है। इस क्षेत्र में जाल वृक्ष अधिक पाए जाते हैं।

23.मालाणी= प्राचीन समय में बाड़मेर को मालाणी कहा जाता था।

24.मांड= पश्चिमी राजस्थान में मांड गायिकी के क्षेत्र को मांड कहा जाता था। जिसके चारों और का क्षेत्र जैसलमेर में वल्ल के नाम से जाना जाता है।

25.भीनमाल= यह जालौर में स्थित है जिसे चीनी यात्री हेनसांग द्वारा अपनी पुस्तक “सी- यू-की “में पीलोभालो लिखा गया है।

राजस्थान के भौतिक प्रदेश

उच्चावच व जलवायु के आधार पर :- राजस्थान को चार भौतिक प्रदेशों में बांटा गया है-

1.पर्वत (मेरू)

2.पठार (माल)

3.मैदान

4.मरुस्थल (मरू)-(शुष्क जलवायु )

भौतिक प्रदेशों की सामान्य जानकारी :-

मरुस्थल:- क्षेत्रफल-61.11%, जनसंख्या-40%, जिले-12, मिट्टी-( बलुआ पत्थर से निर्मित) बलुई व रेतीली, जलवायु- शुष्क व अर्द्ध शुष्क जलवायु ।

अरावली:- क्षेत्रफल-9%, जनसंख्या -10%,जिले-13(मुख्यतः 7 जिले),मिट्टी -पर्वतीय या वनीय मिट्टी, जलवायु-उपार्द्र।

मैदान:- क्षेत्रफल-23%, जनसंख्या-39%, जिले-10, मिट्टी -जलोढ या कछारी या दोमट ,जलवायु-आर्द्र।

हाड़ौती:- क्षेत्रफल-6.89%, जनसंख्या-11%, जिले-7 ,मिट्टी-काली और रेगुड़/रेगुर मिट्टी , जलवायु-अति आर्द्र।

उत्तरी पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश

(1).निर्माणकाल = टर्शयरीकाल ,क्वार्टनरी काल में प्लीस्टोसीन।

(2).विस्तार:-लम्बाई-640km,चौड़ाई-300km,औसत ऊंचाई =200-300m(औसत 250m)।

(3). मरुस्थल का ढाल:- मरुस्थल काढाल उत्तर पूर्व से दक्षिण पश्चिम की तरफ है।

(4). मरुस्थल का अध्ययन:-

मरुस्थल को अध्ययन की दृष्टि से दो भागों में बांटा गया है। a.शुष्क मरुस्थल (0-25cm),b.अर्द्ध शुष्क मरुस्थल व बांगड़ प्रदेश(25-30cm)।

note:-25 सेंटीमीटर सम वर्षा रेखा मरुस्थल को शुष्क व अर्द्ध शुष्क दो भागों में बांटती है।

(a).शुष्क मरुस्थल:- 25 सेंटीमीटर से कम वर्षा वाले भौतिक प्रदेश को शुष्क मरुस्थल कहा जाता है शुष्क मरुस्थल को पुन दो भागों में बांटा जाता है1. बालुका स्तूप मुक्त (41.5%)कारण- पथरीला मरुस्थल जिसे” हमादा ” कहा जाता है। 2.बालुका स्तूप युक्त(58.5%) पवन- मिट्टी> निक्षेपण> बालुका स्तूप।

note:-बालूका स्तूप:- जब पवन के द्वारा मिट्टी का निक्षेपण किया जाता है तो बनने वाली स्थलाकृति को बालुका स्तूप कहा जाता है जो सर्वाधिक जैसलमेर जिले में है।

बालुका स्तूप के प्रकार :-

a. बरखान :- सर्वाधिक (शेखावटी )चुरु

b.अनुप्रस्थ :-सर्वाधिक -बाड़मेर, जोधपुर

c. अनुदैर्ध्य/ रेखीय:- सर्वाधिक -जैसलमेर

d .तारानुमा :-सर्वाधिक -जैसलमेर, सूरतगढ़ (श्री गंगानगर)

e. पैराबोलिक:- बरखान के विपरीत या हेयर पिन जैसी आकृति का बालुका स्तूप पैराबोलिक कहलाते हैं।( यह बालुका स्तूप राजस्थान में सर्वाधिक पाए जाते हैं)

f.सीफ :- बरखान के निर्माण के दौरान जब पवन की दिशा में परिवर्तन होता है तो बरखान की एक भुजा एक दिशा में आगे की ओर बढ़ जाती है जिसे सीफ कहा जाता है।

g.स्क्रब कापीस:- मरुस्थल में झाड़ियों के पास पाए जाने वाले छोटे बालों का स्तूप ।यह सर्वाधिक जैसलमेर में पाए जाते हैं

(b). अर्धशुष्क मरुस्थल बागड़ प्रदेश:-

25-50 सेंटीमीटर वर्षा या शुष्क मरुस्थल में अरावली के मध्य का भौतिक प्रदेश अर्ध शुष्क मरुस्थल कहलाता है। इसे अध्ययन की दृष्टि से पुन: चार भागों में बांटा जाता है जैसे1. लूनी बेसिन 2.नागौर उच्च भूमि 3.शेखावटी अंतः प्रवाह 4. घग्घर बेसिन

मरुस्थल से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु :-

1.प्लाया/खड़ीन/ढ़ाढ़ झील:- मरुस्थल में अस्थाई पानी की झील को खड़ीन/ प्लाया झील कहते हैं। जहां पालीवाल ब्राह्मणों द्वारा की जाने वाली कृषि को खड़ीन कृषि। जैसे -रवि की फसल= गेहूं ,चना, सरसों ।यह सर्वाधिक जैसलमेर के उत्तरी भाग में पाए जाते हैं।

2.रन/टाट:- मरुस्थल में लवणीय दलदली व अनुपजाऊ भूमि को रन /टाट कहा जाता है। रन सर्वाधिक जैसलमेर में पाए जाते हैं ।प्रमुख रन और स्थान:- ताल छापर- चूरू, परिहारी -शुरू, फलोदी -जोधपुर ,बाप -जोधपुर ,थोब- बाड़मेर ,भाकरी -जैसलमेर, पोखरण -जैसलमेर,(परमाणु परीक्षण 1974 और 1998)

3.जल पट्टी:- जैसलमेर में स्थित जल पट्टी सरस्वती नदी का भूगोल की अवशेष है इसे लाठी सीरीज के नाम से भी जाना जाता है। यह गोडावण पक्षी की शरण स्थली है। यहां पर सेवण/लीलोण घास भी पाई जाती है। यह पट्टी पोकरण से लेकर मोहनगढ़ तक 60 किलोमीटर में फैली हुई है।

4. आकलवुड फॉसिल पार्क:-

स्थान- राष्ट्रीय मरू उद्यान (जैसलमेर, बाड़मेर),निर्माणकाल- जुरासिक काल(18करोड वर्ष पूर्व) , आकल वुड फॉसिल पार्क में विश्व में लकड़ी के सबसे प्राचीनतम जीवाश्म पाए जाते हैं।

5.बाप बोल्डर क्ले:-

बोल्डर क्ले:- हिमानी /ग्लेशियर के द्वारा जमा किए गए अवसाद ।स्थान -जोधपुर (बाप) ।समय- प्रर्मो- कार्बोनिफरस (25-28 करोड वर्ष पूर्व)

6.नखलिस्तान/मरू उधान :- मरुस्थल में जहां जल बेसिन पाए जाते हैं,उनके चारों और हरियाली विकसित हो जाती है जिसे नखलिस्तान कहा जाता है।

7.धोरे:- लहरदार बालुका स्तूप धोरे कहलाते हैं।

8.धरियन:- स्थानांतरित व गतिशील बालुका स्तूप धरियन कहलाते हैं। ये सर्वाधिक जैसलमेर में पाए जाते हैं।

9.पीवणा:- यह एक सांप की प्रजाति है इसका रंग पीला तथा सर्वाधिक जैसलमेर में पाए जाते हैं।

10.टर्शयरी काल के अवशेष:- (कोयला ,पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस)अवसादी चट्टानों में पाए जाते हैं।

11. मरुस्थलीकरण /मरुस्थल का मार्च:-

क्या- मरुस्थल का आगे बढ़ना /विस्तार,दिशा- दक्षिण पश्चिम, उत्तर पूर्व, सर्वाधिक विस्तार- हरियाणा, सर्वाधिक योगदान-बरखान,क्योंकि इसकी व्यतीत या स्थानांतरण सर्वाधिक होता है।

अरावली पर्वतमाला :-

निर्माणकाल = प्री-कैंब्रियन

अरावली पर्वतमाला यूएसए की अप्लेशियन पर्वतमाला के समकालीन हैं।

विस्तार:- कुल लंबाई 692 किलोमीटर, राजस्थान में लंबाई 550 किलोमीटर और 80% ,औसत ऊंचाई 930 मीटर।

अरावली की विशेषता :- (1)प्राचीनतम (समयअनुसार )2.वलित (निर्माण प्रक्रिया)3. अवशिष्ट (वर्तमान में)

अरावली की दिशा

अरावली का अध्ययन :- अध्यन की दृष्टि से अरावली को तीन भागों में बांटा जाता है। 1. उत्तरी अरावली ,विस्तार-( जयपुर -झुंझुनू), सर्वोत्तम चोटी -(रघुनाथगढ़ )2. मध्य अरावली ,विस्तार -(अजमेर )सर्वोत्तम चोटी-( टाॅडगढ़) 3. दक्षिणी अरावली, विस्तार -(सिरोही -राजसमंद ),सर्वोत्तम चोटी-( गुरु शिखर)।

महत्वपूर्ण बिंदु :-

1.अरावली की सर्वाधिक ऊंचाई= सिरोही2. अरावली का सर्वाधिक विस्तार =उदयपुर3. अरावली का सबसे कम विस्तार न्यूनतम ऊंचाई= अजमेर।

4. अरावली की सर्वोच्च ऊंची चोटियां (अवरोही क्रम में):-

1. चोटी= गुरुशिखर ,स्थान= सिरोही ,ऊंचाई= 1722 मीटर

2. चोटी= सेर, स्थान= सिरोही,ऊंचाई=1597 मीटर

3. चोटी=देलवाड़ा, स्थान=सिरोही, ऊंचाई=1442 मीटर

4. चोटी=जरगा, स्थान=उदयपुर,ऊंचाई=1431 मीटर

5. चोटी= अचलगढ़, स्थान= सिरोही,ऊंचाई=1380 मीटर

6. चोटी= कुंभलगढ़,स्थान=राजसमंद,ऊंचाई=1224 मीटर

7. चोटी=रघुनाथगढ़,स्थान=सीकर, ऊंचाई=1055मीटर

8. चोटी=ऋषिकेश,स्थान= सिरोही,ऊंचाई=1017 मीटर

9. चोटी= कमलनाथ, स्थान= उदयपुर,ऊंचाई=1001 मीटर

10. चोटी= सज्जनगढ़, स्थान=उदयपुर,ऊंचाई=938 मीटर

11. चोटी=मोरमजी/टाॅडगढ़, स्थान=अजमेर,ऊंचाई=934 मीटर

12. चोटी=खो, स्थान=जयपुर,ऊंचाई=920 मीटर

13. चोटी= सायरा,स्थान=उदयपुर,ऊंचाई=900 मीटर

14. चोटी=तारागढ़, स्थान= अजमेर, ऊंचाई=873 मीटर

15. चोटी=बिलाली, स्थान=अलवर, ऊंचाई=775 मीटर

16. चोटी=रोजा भाकर, स्थान=जालौर,ऊंचाई=730 मीटर

5. अरावली की नाल/ दर्रे:-

पर्वतों के मध्य नीचा और तंग रास्ता जो दो और के स्थानों को जोड़ता है उसे नाल कहा जाता है

प्रमुख नाल :- बरनाल देसूरीनाल( पाली ),परवरिया नाल, सुरानाल, (ब्यावर) हाथीगुड़ानाल ,कमली -खामली घाट, गोरम घाट, पगल्या/ जीलवानाल( राजसमंद )ढेबरनाल ,केवड़ा नाल, फुलवारी की नाल, हाथीनाल (उदयपुर)।

note:- अरावली में सर्वाधिक नाल राजसमंद में स्थित है ।फुलवारी नाल अभ्यारण से सोम ,मानसी, वाकल नदियां बहती है।

अरावली का महत्व :-

  • मरुस्थलीकरण को रोकना
  • अरावली में धात्विक खनिज सर्वाधिक पाए जाते हैं क्योंकि अरावली धारवाड़ चट्टानों से निर्मित है।
  • अरावली में जैव विविधता सर्वाधिक पाई जाती है क्योंकि वनस्पति अधिक है।
  • राजस्थान की अधिकांश नदियों का उद्गम अरावली से होता है ।
  • राजस्थान के मानसून को प्रभावित करती है ।
  • अरावली प्राचीन सभ्यताओं जैसे आहड़ (उदयपुर ),गिलुंड (राजसमंद) बैराठ (जयपुर ),गणेश्वर (सीकर )व नवीनतम नगरी सभ्यताओं जैसे( जयपुर ,अजमेर, उदयपुर) की जन्मस्थली व मातृभूमि है।

अरावली व राजस्थान की अन्य प्रमुख पहाड़ियां:-

भाकर = सिरोही, पहाड़ी का नाम + भाकर/भाकरी= जालौर ,पहाड़ी का नाम+ मगरा /मगरी =उदयपुर ,पहाड़ी का नाम +डूंगर /डूंगरी= जयपुर।

1. त्रिकूट पहाड़ी (सोनार दुर्ग)= जैसलमेर

2.त्रिकूट पर्वत (कैला देवी )=करौली

3.चिड़ियाटूंक पहाड़ी (मेहरानगढ़)= जोधपुर

4. छप्पन पहाड़ियां =बाड़मेर

5.रोजा भाकर= जालौर

6.ईसराना भाकर= जालौर

7. झारोला भाकर= जालौर

8.जसवंतपुर पहाड़ी =जालौर

9.सुंधा पर्वत =जालोर

10.भाकर = सिरोही

दक्षिणी अरावली में सिरोही में स्थित छोटी व तीव्र ढाल वाली पहाड़ियों को भाकर कहा जाता है

11.हिरण मगरी= उदयपुर

12.मोती मगरी (फतेह सागर)= उदयपुर

13.मछली मगरा (पिछोला झील )=उदयपुर

14.जरगा= उदयपुर

15. रागा पहाड़ी= उदयपुर

16.गोगुंदा (आयड़/बेड़च नदी का उद्गम)= उदयपुर

17.बिछामेडा( सोन नदी का उद्गम )=उदयपुर

18.बिजराल पहाड़ी (खारी का उद्गम )=राजसमंद

19.दिवेर पहाड़ी(कोठारी का उद्गम)= राजसमंद

20.खमनोर पहाड़ी (बनास नदी का उद्गम)=राजसमंद

21.नाग पहाड़ी =अजमेर

22.मोती डूंगरी = जयपुर

23.झालाना डूंगरी= जयपुर

24.महादेव डूंगरी= जयपुर

25.गणेश डूंगरी= जयपुर

26.भीम डुंगरी= जयपुर

27.बीजक डूंगरी= जयपुर

28.बैराठ पहाड़ी= जयपुर

29.सेवर पहाड़ी= जयपुर

30.मनोहरपुर पहाड़ी= जयपुर

31.खण्डेला पहाड़ी= सीकर

32.मलयकेत/मालखेत की पहाड़ी= सीकर

33.हर्ष पहाड़ी= सीकर

34.हर्षनाथ पहाड़ी= अलवर

35.उदयनाथ पहाड़ी= अलवर

36.भैंराच पर्वत = अलवर

37.बबाई पहाड़ी= झुंझनूं

38.बाबाई पहाड़ी= जयपुर

39.आडावाला पर्वत = बूंदी

40.बीजासण पहाड़ी= भीलवाड़ा

41.बरवाड़ा पहाड़ी= जयपुर

पूर्वी मैदान

1. निर्माण:-

नदियों द्वारा जमा किए गए अवसादों से होता है।

2.मिट्टी:-

दोमट जलोढ़ कचहरी और डेल्टा ई

पूर्वी मैदान को तीन भागों में बांटा गया है :-

1. माही मैदान:- इसे वागड़ या छप्पन मैदान (भाटी मैदान ) भी कहा जाता है ।इसका विस्तार बांसवाड़ा ,प्रतापगढ़, डूंगरपुर में है ।मिट्टी -(रेड लाॅमी,लाल चिकनी) उत्पादन =मक्का( माही कंचन, माही धवल )चावल =(माही सुगंधरा)

2. बनास व बाणगंगा मैदान:- बनास मैदान मुख्यतः दो भागों में बटा हुआ है दक्षिणी मैदान और उत्तरी मैदान।

दक्षिणी मैदान में मेवाड़ मैदान विस्तार राजसमंद भीलवाड़ा चित्तौड़

उत्तरी मैदान (मालपुरा- करौली मैदान )-विस्तार =अजमेर ,टोंक ,सवाई माधोपुर।

बनास के मैदान में मुख्यतः बुरी मिट्टी पाई जाती है।

बाणगंगा मैदान:- विस्तार -जयपुर, दौसा, भरतपुर।( मिट्टी -जलोढ़)

3.चंबल का मैदान:-

विशेषताएँ-

अवनालिका अपरदन सर्वाधिक ,उत्खात भूमि सर्वाधिक ,बीहड़/डांग( करौली, धौलपुर, सवाई माधोपुर)

चंबल मैदान में काली जलोढ़ मिट्टी सर्वाधिक पाई जाती है। पूर्वी मैदानी भाग में जनसंख्या घनत्व अधिक पाया जाता है क्योंकि यहां सर्वाधिक उपजाऊ मिट्टी जलोढ़ का विस्तार अधिक है।

राजस्थान में दिशा के अनुसार माहीमैदानी भाग:-

1.घग्घर का मैदान

2.लूनी का मैदान

3.माही का मैदान

4.चम्बल का मैदान

दक्षिणी पूर्वी पठार व हाडोती :-

निर्माण -ज्वालामुखी के बेसाल्ट लावे से ।मिट्टी-( काली/ रेगुर )अध्ययन -हाडोती को अध्ययन की दृष्टि से दो मुख्य तीन गौण भागों में बांटा जाता है।

(अ). ढक्कन लावा पठार :-विस्तार-मालव प्रदेश =प्रतापगढ़ व झालावाड। उपरमाल-चितौडगढ़(भैंसरोड़गढ),भीलवाड़ा(बिजौलिया)

(ब). विंध्य कगार भूमि:-विस्तार=a.हाडौती- कोटा ,बूंदी ,बारां ,झालावाड़ ।b.डांग- करौली ,धौलपुर ,सवाई माधोपुर।

विंध्य कगार में पाई जाने वाली चट्टानी

बलुआ पत्थर लाल पत्थर कोटा स्टोन हीरा और सुना पत्थर

हाडोती के गौंण भाग:-

a. अर्धचंद्राकार पहाड़ी -बूंदी हिल्स ,मुकुंदरा हिल्स,( कोटा ,झालावाड़)

b.शाहाबाद उच्च भूमि- बारां( घोड़े की नाल जैसी पहाड़ी)

c.डग -गंगधर पठार/ उच्च भूमि (झालावाड़)

राजस्थान के प्रमुख पठार :-

1.उडिया का पठार:-

स्थिति:-दक्षिणी अरावली मे सिरोही जिले में स्थित पठार,ऊंचाई -1360 मीटर, विशेष- यह राजस्थान का सबसे ऊँचा पठार है ।

2.आबू पर्वत:-

यह एक पठार है । स्थिति-दक्षिण अरावली में सिरोही में स्थित,ऊंचाई-1200 मी.,विशेष- आबू पर्वत “गुम्बदाकार बैथोलिथ संरचना” का उदाहरण माना जाता है ।

3.भोराट :-

दक्षिण अरावली में उदयपुर की गोंगुन्दा पहाड़ी व राजसमंद की कुंभलगढ़ पहाडियों के मध्य स्थित पठार जिसकी ऊंचाई 1225 मीटर है ।यह राजस्थान का दूसरा ऊंचा पठार है।

4.लसाडिया पठार:-

दक्षिण अरावली में उदयपुर की जयसमंद झील के पूर्व में स्थित उबड- खाबड पठारी भाग लसाडिया पठार कहलाता है।

अपवाह तंत्र

राजस्थान में अपवाह तंत्र को तीन भागों में बांटा गया है:-

अ. अरब सागर में नदियां (17%)

ब. अंतः प्रवाही नदियां (60%)

स. बंगाल की खाड़ी की नदियां (23%)

note:-

  • राजस्थान में अंतर प्रवाही नदियां सर्वाधिक पाई जाती हैं ।कारण- यहां मरुस्थल का विस्तार सर्वाधिक है।
  • अरावली को राजस्थान के जल विभाजक रेखा कहा जाता है क्योंकि यह बंगाल की खाड़ी और अरब सागर की नदियों को अलग करती है।
  • राजस्थान में सतही जल या नदी जल देश का 1.16% है ।
  • भूमिगत जल राजस्थान में देश का 1.69% है।

अ. अरब सागर नदियां:-

1.लूनी:-

  • उद्गम- नागपहाड़ी (अजमेर)
  • संगम- कच्छ का रन( गुजरात)
  • लम्बाई-495 कि. मी.,राजस्थान मे 350कि. मी।
  • अपवाह क्षेत्र- अजमेर ,पाली, नागौर ,बाड़मेर ,जालौर, जोधपुर।
  • सहायक नदियां- सुकड़ी ,बांडी, खारी ,जोजड़ी ,जवाई, सांगी ,मीठड़ी, लिलड़ी और गुहिया।
  • लूनी के उपनाम:- सागरमती, लवणवती,आधी मीठी- आधी खारी नदी ,अंत सलिला नदी (कालिदास ने लिखा)
  • रेल/नाड़ा- लूनी के अपवाह क्षेत्र को कहा जाता है। इसका विस्तार मुख्यतः जालौर में है।
  • जोजड़ी:- लूनी नदी में दाएं और से मिलने वाली एकमात्र नदी ।लूनी की एकमात्र सहायक नदी जिसका उद्गम अरावली से नहीं होता।
  • बालोतरा(बाड़मेर)- लूनी का पानी खारा होता है ।लूनी में बाढ़ इसी क्षेत्र में आती है।
  • राजस्थान के कुल अपवाह तंत्र में लोनी का योगदान 10 पॉइंट 40% है
  • लूनी से संबंधित बांध:-1. जसवन्त सागर/ पिचियाक बांध -जोधपुर (लूनी)2. हेमावास बांध -पाली (बांडी )3. जवाई बांध- पाली (जवाई )4.बाँकली- जालौर (सुकड़ी)।
  • जवाई बाँध:- पाली में स्थित है जो पश्चिम राजस्थान की सबसे बड़ी पेयजल परियोजना है। इस कारण इसे मारवाड़ का अमृत सरोवर कहा जाता है ।जवाई बांध में पानी की कमी होने पर जलापूर्ति सेई जल सुरंग से की जाती है। सेई जल सुरंग -राजस्थान की प्रथम जल सुरंग ,स्थिति- उदयपुर से पाली, जवाई में जलापूर्ति।

2.माही नदी:-

  • उद्गम- मेहंद झील- अमरेरु पहाड़ी (विंध्याचल पर्वतमाला -मध्य प्रदेश)
  • संगम- खंभात की खाड़ी (गुजरात)
  • लम्बाई-576 कि.मी.(राजस्थान में 171कि.मी.)
  • अपवाह क्षेत्र बांसवाड़ा डूंगरपुर
  • सहायक नदियां -ऐराव , अन्नास, चाप, मोरेन, सोम ,जाखम
  • माही के उपनाम- वागड़ की गंगा ,आदिवासियों की गंगा ,कांठल की गंगा ,दक्षिणी राजस्थान की स्वर्ण रेखा नदी
  • त्रिवेणी संगम:- बेणेश्वर धाम (नवा टापरा/ नवाटपुरा )सोम, माही ,जाखम। माघ पूर्णिमा को मेले का आयोजन होता है जिसे कुंभ या आदिवासियों का कुंभ कहा जाता है ।इस मेले में सर्वाधिक आने वाली जाति= भील
  • कर्क रेखा को दो बार पार करने वाली विश्व की एकमात्र नदी
  • सुजलाम सुफलाम परियोजना- माही की सफाई के लिए चलाया गया कार्यक्रम।
  • सुजलम् परियोजना -स्थिति =(बाड़मेर) संचालन -बीएआरसी (भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र ) ट्रांबे द्वारा संचालित परियोजना।
  • राजस्थान के दक्षिण से प्रवेश कर पश्चिम की ओर बहने वाली नदी माही
  • माही की बांध परियोजनाएं:- 1.माही बजाज सागर बांध परियोजना -(बांसवाड़ा) 2.कागदी पिकअप बांध-( बांसवाड़ा ) 3.कडाना बांध -(गुजरात )4.सोम -कागदर परियोजना- (उदयपुर )5.सोम -कमला -अंबा -(डूंगरपुर)6. जाखम बांध -प्रतापगढ़ (जाखम)
  • माही बजाज सागर बांध परियोजना =यह राजस्थान व गुजरात के द्वारा संचालित बहुउद्देशीय परियोजना है (45: 55 ),स्थिति -बोरखेड़ा (बांसवाड़ा ),विशेष =राजस्थान की सबसे लंबी बांध परियोजना (3.10 मीटर ),आदिवासी क्षेत्र में सबसे बड़ी परियोजना ,इस परियोजना से उत्पादित जल विद्युत = 1 stage -25mw×2 units =50 mw, 2 stage- 45mw×2 units = 90mw =140 mw।
  • राजस्थान के आदिवासी क्षेत्र को विद्युत आपूर्ति की जाती है।
  • जाखम बांध:- स्थिति सीता माता अभ्यारण प्रतापगढ़ राजस्थान का सबसे ऊंचा बांध है 81 मीटर

3.पश्चिमी बनास:-

4.साबरमती

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