Economic Geography Of India (भारत का भूगोल)

परिचय –

भारत एक बृहद विस्तार वाला देश है । यह उतर में हिमालय की बर्फीली चोटियों से दक्षिण में हिन्द महासागर तक फैला है । यह विश्व के सबसे बड़े महाद्वीप एशिया में स्थित है। यह दक्षिणी एशिया का एक महत्वपूर्ण भाग है और शेष एशिया से हिमालय पर्वत दृरा अलग किया गया है। इसमें विविध भूखंडों के विस्तृत क्षेत्र सम्मिलित हैं। इसके उत्तर में गगनचुंबी हिमालय हैं जिसके बहुत से भाग में सदा ह हिमाच्छादित रहते हैं। हिमालय के दक्षिण में सिंधु गंगा का वृहद मैदान है जो अपनी उपजाऊ मिट्टी के लिए विश्व भर में विख्यात है । इस मैदान के पक्ष में भाग में थार की मरूभूमि है और दक्षिण में प्रायद्वीपीय भारत है जो ऊपर खबर पटाखों का बना हुआ है इसके पूर्व में पूर्वी तटीय मैदान तथा पश्चिम में पश्चिमी तटीय मैदान है बंगाल की खाड़ी में अंडमान निकोबार दीप समूह तथा अरब सागर में दक्ष लक्ष्यदीप भारत के अभिन्न अंग है भारत की विशालता तथा विविधता को देखते हुए इसे प्राय उपमहाद्वीप की संज्ञा दी जाती है क्योंकि इसमें प्रायद्वीप के सभी लक्षण विद्यमान है।

स्थिति विस्तार तथा अधिक स्थानिक संबंध

भारत 8 डिग्री 4 मिनट उत्तरी अक्षांश A37 डिग्री 6 मिनट उत्तरी अक्षांश होता 68 डिग्री 7 मिनट पूर इस प्रकार इसका अक्षांशीय तथा देशांतरीय विस्तार लगभग 30 डिग्री है भारत का केंद्रीय देशांतर 82 डिग्री 30 मिनट पूर्वी देशांतर है। इस देशांतर से भारत का मानक समय निश्चित होता है भारत की मुख्य भूमि से दूर अंडमान तथा निकोबार दीप समूह का दक्षिणतम बिंदु इंदिरा पॉइंट 6 डिग्री 45 मिनट उत्तरी अक्षांश पर स्थित है कश्मीर से कन्याकुमारी तक उत्तर दक्षिण दिशा में इसकी लंबाई 3214 किलोमीटर है जगत के रंग से अरुणाचल प्रदेश तक पूर्व पश्चिम दिशा में इसकी चौड़ाई 2933 किलोमीटर है भारत का अक्षांशीय विस्तार विश्वत रेखा से उत्तरी ध्रुव की गुणात्मक दूरी का एक के बाद प्राइस का देशांतरीय विस्तार विषुवत रेखा के बाहर विभाग के बराबर है। भारत का कुल क्षेत्रफल 3270263 वर्ग किलोमीटर है जो विश्व के कुल क्षेत्रफल का 2 पॉइंट 42% है क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत विश्व का सातवां बड़ा देश है रूस 170 7500000 पर किलोमीटर कनाडा 99 पॉइंट 3 तलाक पर किलोमीटर 4 किलोमीटर संयुक्त राज्य अमेरिका 90 पॉइंट 7200000 वर्ग किलोमीटर ब्राजील 85 पॉइंट 12 लाख और किलोमीटर तथा आस्ट्रेलिया चिंतपांडू इस्लामपुर किलोमीटर भारत के 6 बड़े देशों है

भारत से रूस साडे 5 गुना तथा कनाडा चीन एम संयुक्त राज्य अमेरिका लगभग 3 गुना बड़े हैं इसके विपरीत भारत पाकिस्तान से 4 गुना फ्रांस से 6 गुना तथा बांग्लादेश टेस्ट गुना बड़ा है इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि भारत का आकार नेता भीम का है और ना ही बोना।

कर्क रेखा भारत के ठीक बीचोबीच गुजरती है और इसे लगभग दो बराबर भागों में बांटती है परंतु दक्षिणी भाग की अपेक्षा उतरी बाग अधिक चौड़ा है इस रेखा के दक्षिण की अपेक्षा उत्तर में भारत को दोगुना क्षेत्रफल है 22 डिग्री उत्तरी अक्षांश के दक्षिण में भारतीय महाद्वीप धीरे धीरे शंकरा होता जाता है और हिंद महासागर को दो भागों में बांटा है इन्हें पश्चिम में अरब सागर तथा पूर्व में बंगाल की खाड़ी कहते हैं इन समुंदरों ने अफ्रीका दक्षिण पश्चिम एशिया तथा दक्षिण पूर्व एशिया से भारत के व्यवसायिक एवं सांस्कृतिक संबंधों को सुदृढ़ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

भारत के उत्तर में हिमालय पर्वत हजारों किलोमीटर लंबी अविच्छिन्न संकला की बातें खड़ा है यह उस पर्वत तंत्र का अंग है जो ऐसा के हृदय स्थल में संसार की छत अथवा अमीर से चारों ओर विक इन होती है हिमालय पर्वत की ऊंची एवं अपार गम में संगठनों ने भारत का संपर्क ट्रांस हिमालय क्षेत्र से नहीं होने दिया मध्य एशिया से भारत के प्रवेश मार्ग कुछ दिनों से ही संभव है इसे हमारी एकरूपता को बल मिला है।

भारत की सीमाएं – हिमालय पर्वत तथा हिंद महासागर के बीच स्थित होने के कारण भारत की सीमाएं स्थिति तथा जलीय दोनों प्रकार की हैं।

स्थलीय सीमाएं – भारत की स्थलीय सीमा की लंबाई 15200 किलोमीटर है भारत के उत्तर पश्चिम में पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान उत्तर में चीन नेपाल तथा भूटान और पूर्व में म्यांमार तथा बांग्लादेश है भारत की सबसे लंबी अंतर्राष्ट्रीय सीमा बांग्लादेश के साथ है।

भारत की स्थलीय सीमा 15200 किलोमीटर 15106 पॉइंट 7 किलोमीटर है

भारत की स्थलीय सीमा नियम देशों को संपर्क करती है

1. बांग्लादेश चीन पाकिस्तान नेपाल म्यांमार म्यामार भूटान अफगानिस्तान

भारत-पाकिस्तान सीमा रेखा को रेडक्लिफ रेखा कहते हैं

भारत चीन सीमा रेखा को मैक मोहन रेखा कहते हैं

भारत अफगानिस्तान सीमा रेखा को डूरंड रेखा कहते हैं

देशसीमा की लंबाईसीमा से सटे हुए राज्य
बांग्लादेश4096असम ( दो बार सीमा) मेघालय मिजोरम त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल ( सर्वाधिक सीमा)
चीन3488  लद्दाख हिमाचल प्रदेश उत्तराखंड सिक्किम अरुणाचल प्रदेश
पाकिस्तान3323  गुजरात, राजस्थान पंजाब और जम्मू कश कश्मीर
नेपाल1751 उत्तर प्रदेश बिहार पश्चिम बंगाल सिक्किम उत्तराखंड
म्यानमार1643अरुणाचल प्रदेश नागालैंड मिजोरम मणिपुर
भूटान699असम सिक्किम पश्चिम बंगाल अरुणाचल प्रदेश
अफगानिस्तान106जम्मू कश्मीर (POK)
  • भारत की उत्तरी सीमाएं- भारत की उत्तरी सीमा विश्व की सबसे ऊंची पर्वत श्रृंखला हिमालय पर्वत द्वारा निर्धारित की गई है इस पर्वत श्रंखला के अधिकांश भाग बर्फ से ढके रहते हैं यह पर्वत श्रंखला भारत और चीन के बीच लंबी सीमा बनाती है भारत के जम्मू-कश्मीर हिमाचल प्रदेश उत्तराखंड सिक्किम तथा अरुणाचल प्रदेश राज्य की सीमा चीन से लगती है हिमालय देश नेपाल की सीमा भारत के उत्तराखंड उत्तर प्रदेश बिहार पश्चिम बंगाल के पर्वतीय क्षेत्र तथा सिक्किम के साथ है भूटान के पूर्व में मैक मोहन रेखा हिमालय की शीर्ष रेखा बनाती है यह भारत तथा चीन के बीच सीमा रेखा का कार्य करती है इसे 1914 में हेनरी मैकमोहन ने सिम अंकित किया था हिमालय सदियों से ही उत्तर में भारत का रक्षक रहा है परंतु अक्टूबर 1961 में भारत पर चीनी आक्रमण ने इसे सुरक्षात्मक पहलू पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।

भारत-पाकिस्तान सीमा –

भारत की पाकिस्तान के साथ सीमा का अधिकांश भाग मानव कृत तथा अनिश्चित है जिस कारण दोनों देशों के बीच तनाव पूर्ण राजनीति संबंध रहते हैं भारत के जम्मू कश्मीर पंजाब राजस्थान तथा गुजरात राज्य भारत पाक सीमा को छूते हैं 1947 में भारत के विभाजन के समय सीमा को रेडक्लिफ ने निर्धारित किया था कि जिस कारण चाहिए रेडक्लिफ सीमा के नाम से जानी जाती है।

भारत म्यांमार सीमा –

भारत के पूर्व में मिस मी पटकाई नागा ब्रेल तथा बीजों की पहाड़ियां भारत की सीमा निर्धारित करती हैं म्यांमार का अराकान योमा पर्वत भारत तथा म्यांमार के बीच लंबी सीमा रेखा बनाता है भारत के अरुणाचल प्रदेश नागालैंड मणिपुर मिजोरम राज्य भारत के बीच अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगे हुए हैं

भारत बांग्लादेश सीमा

उत्तरी पूर्वी राज्य ( असम मेघालय त्रिपुरा मिजोरम) तथा पश्चिम बंगाल के बीच बांग्लादेश है भारत और बांग्लादेश की सीमा गंगा ब्रह्मपुत्र डेल्टा को विभाजित करती है यह पूर्णतया मानव कृत सीमा है जो कि समतल डेल्टा मैदान में है परिणाम स्वरुप यह कोई प्रभावशाली सीमा नहीं है और बांग्लादेश से आने वाले शरणार्थियों की समस्या निरंतर बनी रहती है।

जलीय सीमाएं

भारत की मुख्य भूमि की 616 किलोमीटर लंबी तट रेखा है यदि बंगाल की खाड़ी के अंडमान और निकोबार दीप समूह तथा अरब सागर के लक्ष दीपों की तट रेखा भी जोड़ ली जाए तो भारतीय तट रेखा की लंबाई 7517 किलोमीटर हो जाती है हिमालय पर्वत के बाद हिंद महासागर ही ऐसा भौगोलिक तत्व है जो भारत के भाग्य का निर्धारण करता है सभ्यता के आरंभ से लेकर आज तक भारत ने अपने पड़ोसी देशों के साथ हिंद महासागर के माध्यम से संबंध स्थापित किए आधुनिक युग के तकनीकी विकास से समुद्री युद्ध को प्रोत्साहित किया है आता है इसलिए सीमाओं की भांति हमारी सीमाओं के लिए खतरा पैदा हो जाता है इसके लिए सुरक्षा तो उपाय करना अनिवार्य हो गया है तथा समुंद्री राष्ट्रीय से पड़ोसी देश भारत पर आक्रमण करते हैं।

सर्वाधिक तटीय सीमा वाले राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेश

1. अंडमान निकोबार गुजरात आंध्र प्रदेश तमिलनाडु महाराष्ट्र केरला उड़ीसा कर्नाटक पश्चिम बंगाल लक्ष्यदीप गोवा पांडुचेरी दमन एंड दीव

भारत दक्षिणी पूर्वी तथा दक्षिणी एशिया के संदर्भ में

दक्षिणी पूर्वी एशिया में म्यांमार थाईलैंड लाओस कंपूछेा वियतनाम मलेशिया सिंगापुर इंडोनेशिया फिलीपाइन आदि देश सम्मिलित है हाल ही में स्वतंत्र हुआ तिमिर देश देश दक्षिण पूर्व एशिया का ही भाग है यह विश्व का 192 देश है अराकान योमा पर्वत माला भारत को मेहमा से अलग करती है प्राचीन काल से ही इन देशों के साथ भारत के मैत्रीपूर्ण संबंध रहे हैं भारत माता इन देशों के बीच बहुत सी भौतिक राजनीतिक सामाजिक तथा आर्थिक समानता ही पाई जाती हैं भारत की भांति यह सभी देश विश्व के सबसे बड़े महाद्वीप एशिया का अभिन्न अंग है भारत की भांति लगभग सभी देशों में मानसून जलवायु पाई जाती है मानसूनी वर्षा के कारण इन देशों में चावल की जाती है भारत धर्म की जन्मभूमि है यहां से दक्षिण पूर्वी एशिया के कई देशों तक फैला हुआ है म्यांमार कंपूछेा इंडोनेशिया आदि देशों में कई प्राचीन भारतीय पूजा स्थल है इंडोनेशिया में रामलीला आज भी धूमधाम से मनाई जाती है यद्यपि यह एक मुस्लिम देश है दक्षिण पूर्व एशिया के लगभग सभी देशों से हमारे गणित व्यापारिक संबंध है वर्तमान समय में भारत की पूर्व की ओर देखो नीति से इन देशों के साथ भारत के संबंधों को और अधिक घनिष्ठा होने की संभावना है दक्षिण पूर्वी एशिया एक सुनिश्चित भौगोलिक इकाई है जिसे भारत सहित पाकिस्तान बांग्लादेश नेपाल तथा भूटान सम्मिलित किए जाते हैं समुद्र पार लंका हमारा निकटतम पड़ोसी देश है इसे पाक जलडमरूमध्य का समुद्री भारत की मुख्य भूमि से अलग करता है भारत के धनुषकोडी तथा श्रीलंका के तलाईमन्नार के बीच केवल 32 किलोमीटर चौड़ा समुद्री भाग है 1947 से पहले भारत पाकिस्तान बांग्लादेश एक देश भारत के अभिन्न अंग थे विभाजन के फल स्वरुप पश्चिमी पाकिस्तान तथा पूर्वी पाकिस्तान भारत से अलग हो गए सन 1971 में पूरी पाकिस्तान पश्चिमी पाकिस्तान से अलग हो गया और बांग्लादेश के नाम से नया देश बन गया बांग्लादेश के जन्म तथा विकास में भारत की मुख्य भूमिका रही है पाकिस्तान से भी हमारे प्राचीनतम संबंध रहे हैं जो मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा की खुदाई उचित प्रमाणित सिंधु घाटी की सभ्यता से प्रति लक्षित होते हैं भारत में प्रवाहित होने वाली महान नदियां पाकिस्तान और बांग्लादेश को जीवन प्रदान करती है सिंधु नदी भारत में प्रवाहित होने के पश्चात पाकिस्तान के उद्योग मैदान का निर्माण करती है तथा कराची के गिरने से बहुत बड़ा बनाती हैं यह 160 किलोमीटर है परंतु इसकी लंबाई बहुत अधिक है यह सैनाथ की पहाड़ियों से समुद्र तक लगभग 960 किलोमीटर लंबी है पूर्व की ओर गंगा तथा ब्रह्मपुत्र मिलकर विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा बनाती है यह देवता भारत के पश्चिम बंगाल राज्य तथा बांग्लादेश में फैला हुआ है भौगोलिक दृष्टिकोण से भारत पाकिस्तान तथा बांग्लादेश मिलकर एक बहुत बड़े भूभाग का निर्माण करते हैं जिसे भारतीय उपमहाद्वीप की संज्ञा दी जाती है पूरे उपमहाद्वीप को हिमालय पर्वत से से से से अलग करता है और इसे एक सुनिश्चित भौगोलिक स्वरूप प्रदान करता है समस्त उपमहाद्वीप में उसने मानसूनी जलवायु पाई जाती है उसे एकरूपता प्रदान करती है दुर्भाग्य से विभाजन के पश्चात पाकिस्तान के साथ हमारे राजनीतिक संबंध में त्रिपुर नहीं रहे जिससे भारत पाक सीमा पर तनाव की स्थिति बनी रहती है इन देशों के आर्थिक विकास में बाधा आती है अभी भी भारत के पाकिस्तान से संबंध घनिष्ठ नहीं है

भारत के पड़ोसी देश

भारत की अंतरराष्ट्रीय सीमाएं अधिकांशत प्राकृतिक है और मैं ऐतिहासिक रूप से निर्धारित हैं इस विशाल देश के तीनों और अरब सागर बंगाल की खाड़ी तथा हिंद महासागर स्थित है उत्तर तथा पूर्व में इसकी सीमाओं को हिमालय तथा उसकी शंख लाए निर्धारित करती हैं भारत की मुख्य भूमि के अतिरिक्त बंगाल की खाड़ी में अंडमान तथा निकोबार दीप समूह और अरब सागर में लक्ष्य दीप समूह स्थित है जो मुख्य भूमि से संबंधित द्वारा अलग किए गए हैं समुंदर पार भारत का सबसे निकटतम पड़ोसी देश श्रीलंका है पाक जलडमरूमध्य है भारत को श्रीलंका से अलग करता है हमारा दूसरा निकटतम पड़ोसी देश इंडोनेशिया है जो निकोबार दीप समूह के अंतिम दीप के दक्षिण में स्थित है भारत के पूर्व में बांग्लादेश म्यांमार लाओस मलेशिया कपासिया थाईलैंड इंडोनेशिया वियतनाम देश स्थित है हमारे पश्चिम में पाकिस्तान अफगानिस्तान ईरान इराक आज देश सम्मिलित हैं लक्षदीप के दक्षिण में स्थित है।

उत्तर में हमारी सीमा हिमालय पर्वत बनाता है यहां मुस्ताक अकील कुन लून तथा कराकोरम जम्मू कश्मीर की सीमा पर है इसके उत्तर में चीन का सियांग प्रदेश है इसके थोड़ा सा दक्षिण भारत की त्रिकोण का शीर्ष बिंदु बहुत ही महत्वपूर्ण है यह ऐसे के पांच प्रमुख देशों की अंतरराष्ट्रीय सीमा पर मिलती है यह देश हैं चीन भारत अफगानिस्तान पाकिस्तान तथा तजाकिस्तान इसके उत्तर पूर्व में तिब्बत का पठार है जो अब चीन के अधीन है यह कैलाश मानसरोवर की भूमि के नाम से विख्यात है तिब्बत की राजनीति तथा आध्यात्मिक राजधानी ल्हासा भारत की सीमा से 300 किलोमीटर से भी कम दूरी पर है इसके बाद भारतीय सीमा दक्षिण पूर्व की ओर बढ़ती है सिंधु नदी से ब्रह्मपुत्र नदी तक यह सीमा लगभग 2400 किलोमीटर लंबी है। इन्हीं नदियों के बीच वाले भाग में नेपाल सता भूटान हमारे पड़ोसी देश हैं भारत के संबंध नेपाल के साथ बहुत अच्छे रहे हैं अब एक अच्छी सड़क नेपाल की राजधानी काठमांडू को भारत से जोड़ती है कौन सी नदी पर भारत नेपाल संयुक्त परियोजनाओं से दोनों देशों के संबंध और कनिष्ठ हो गए हैं भारत के सुदूर दक्षिणी पूर्वी कोने पर उत्तरी पूर्वी की संधि है जहां पर भारत चीन तथा म्यांमार की सीमा आपस में मिलती हैं।

पूर्व में पहाड़ियां एवं पर्वतमाला की लंबी लेडी में हमें म्यांमार से अलग करती है उन पर वह तो एम पहाड़ियों में मिस मी पटकाई नागा बैरल पर्वतमाला लुशाई तथा अराकान योमा पर्वत माला है इस क्षेत्र में घने वन भारी वर्षा जटिल उत्सव तथा तिरंगा में नदियों के कारण भारत का म्यांमार के साथ स्थलीय संबंध अधिक सुदृढ़ नहीं बन पाया भारत से म्यांमर की हाय यार वाडी तक स्थल की अपेक्षा जलमार्ग से जाना अधिक सुविधाजनक है सन 1995 में मणिपुर की मोर तथा म्यांमार में टांगों के बीच व्यापारिक मार के खुल जाने के प्रसाद दोनों देशों के बीच या परिषद सांस्कृतिक संबंध मजबूत होने लगे हैं उत्तर में हिमालय पर्वत और उसकी संख्याओं की जटिलता तथा दुर्गमता के कारण प्राचीन काल चाहिए हमारा संपर्क अन्य देशों से कम हो पाया है परंतु पिछले कुछ वर्षों में इन पर्वतीय क्षेत्र में कुछ महत्वपूर्ण सड़कों का निर्माण हुआ है भारत तिब्बत मार्ग शत्रु दौड़ में से होकर जाता है इसी प्रकार संसार का सबसे ऊंचा सड़क मार्ग 3450 मीटर कश्मीर ले मार्ग है जो कराकोरम दर्रे को पार करता है तीसरा प्रमुख मार्ग से होकर जाता है आधुनिक हवाई मार्ग ओने इस पर्वती दीवार का महत्व कम कर दिया है महत्व कम कर दिय

सन 1947 का पूर्वी पाकिस्तान सन 1971 में बांग्लादेश के नाम से अलग राष्ट्र के रूप में स्थापित हो गया भारत के पश्चिम बंगाल असम मेघालय त्रिपुरा तथा मिजोरम राज्यों की सीमाएं बांग्लादेश के साथ मिलते हैं।

भारत का सामरिक महत्व

हिंद महासागर के उत्तरी छोर पर पूर्वी गोलार्ध कि केंद्र में भारत की स्थिति सामरिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है इसकी तटरेखा हिंद महासागर के तट पर स्थित किसी भी अन्य देश से अधिक लंबी है यह अपने आकार तथा प्राकृतिक संसाधनों के कारण वलांचरी देशों में सबसे महत्वपूर्ण देश बन गया है हिंद महासागर विश्व में एकमात्र महासागर है जिसका नाम किस देश आजाद हिंद भारत के नाम पर रखा गया है इससे उस काल में भारत की प्रभुसत्ता का प्रमाण मिलता है जब विश्व के महासागर ओके नाम रख जा रहे थे इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि हिंद महासागर वास्तव में हिना का महासागर है पूर्व तथा पश्चिम की ओर जाने वाली महासागरीय जल मार्गों को भारत की किसी न किसी बंदरगाह पर आना ही पड़ता है पश्चिम में यूरोप तथा पश्चिम एशिया एवं अफ्रीका तथा पूर्व में पूर्वी एशिया दक्षिण पूर्वी एशिया जापान तथा आस्ट्रेलिया के बीच हुआ मार्गों को भी भारत से होकर जाना पड़ता है इसे भारत के व्यापारिक आर्थिक तथा सांस्कृतिक महत्व का अनुमान लगाया जा सकता है।

भारत की केंद्रीय तथा हिंद महासागर के संदर्भ में से 2 राजनीतिक महत्व को सारा संसार मानता है अपनी सामरिक स्थिति के कारण भारत सोने की चिड़िया के लाया है और पश्चिमी एशियाई मुस्लिम तथा यूरोपीय उपनिवेश को के आकर्षण का केंद्र बना है भारत ब्रिटेन के विशाल साम्राज्य के ताज काहिरा के लाया आज भारत को इसकी सामरिक स्थिति का लाभ प्राप्त हो रहा है आज भारत अपने वो राजनीतिक महत्व के कारण एशिया का अगुआ बना हुआ है हाल ही के वर्षों में भारत सहित पड़ोसी देशों का संगठन दक्षिणी एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन की स्थापना का ज्वलंत उदाहरण है

विविधताओं का देश भारत

32.87 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्रफल के कारण भारत विश्व का सातवां बड़ा देश है इसकी उत्तर दक्षिण दिशा से लंबाई 3214 किलोमीटर तथा पूर्व से पश्चिम दिशा में चौड़ाई 2933 किलोमीटर है इतने बड़े देश में बहुत ही आर्थिक सामाजिक व राजनीतिक नेताओं का पाया जाना स्वाभाविक ही है

1. संरचनात्मक विविध बताएं

रचनात्मक दृष्टि से समस्त भारत को तीन प्रमुख भागों भागों में बांटा गया है यह तीनों भूभाग एक दूसरे के सर्वथा अलग हैं और अपनी अलग अलग पहचान बनाए हुए हैं।

(क) प्रायद्वीपीय पठार

भारत के दक्षिण भाग में प्राचीन पठार स्थित है जिसे दक्षिणी पठार कहते हैं तीनों दिशाओं में समुद्र से घिरा होने के कारण इसे प्रायद्वीपीय पठार भी कहते हैं वो वैज्ञानिकों का विचार है कि यह भारतीय उपमहाद्वीप का प्राचीनतम खंड है और मुंह पर पट्टी की मुख्य प्लेटों में से एक है जिसे भारतीय प्लेट कहते हैं यह पुरातन भूपर्पटी खेलों का बना हुआ है जो कि पूर्व चैंपियन महाकल्प निक्षेप अवसरों के समुद्र की सतह के ऊपर उठने के पश्चात फिर कभी समुंदर में नहीं दूंगा यह सपाट उच्च भूमि सारे समय में खंड के रूप में बनी रही है इसकी तुलना प्रखंड से की जाती है प्रायद्वीपीय पठार किस रचना तुम्हें इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण घटना तब घटी जब पूरा जीबी विंध्य महाकल्प मैं अरावली प्रदेश की बुआ अभी नीतियों से विशाल अरावली पर्वत का निर्माण हुआ आज की अवशिष्ट अरावली की पहाड़िया उस समय की विशाल अरावली पर्वत श्रेणी की तुलना में कुछ भी नहीं है अपरदन के विभिन्न कारणों मैं इसे किस कर छोटा कर दिया है भू वैज्ञानिकों का विश्वास है कि दक्षिण की नल्ला मलाई पर्वतमाला का वर्तमान स्वरूप भी संभव है उसी काल में विकसित हुआ जिस काल में अरावली पर्वत का निर्माण हुआ था इस घटना के पश्चात प्रायद्वीपीय पठार एक लंबे समय पर संतुलन तथा क्रियाओं से मुक्त रहा परंतु पृथ्वी में तनाव से संबंधित उर्दू मुखी तथा अधोमुखी हलचल के कारण तथा व्यंजन होते रहे स्थलों का उत्थान तथा होता रहा उत्थान तथा दबाव के कारण अपरदन प्रक्रियाओं का आयोजन होता रहा ऐसे नए स्थानों के प्रमाण पत्र नीलगिरी की पहाड़ी में देखे जाते हैं दूसरी ओर गोदावरी महानदी तथा दामोदर घाटी द्रोणी भी नर्मदा तापी नदी भ्रंश घाटी के प्रमुख प्रस्तुत करते हैं।

(ख) हिमालय पर्वत तथा उससे संबंधित पर्वत मालाएं

हिमालय पर्वत नवीन वलित पर्वत है विद्वानों का मत है कि आज से लगभग 7 करोड वर्ष पहले मध्य जी भी पूरा कला मैं वर्तमान हिमालय पर्वत के स्थान पर एक विशाल भू अभिनति थी जिसे टेडी सागर के नाम से पुकारते हैं यह विशाल सागर के उत्तर में अंगारा लैंड तथा दक्षिण में गोडाउन हॉलैंड नामक स्थलीय बाग स्थित है इसलिए बाबू से अनेक नदियों के तलछट की विशाल राशि काटी सागर में विकसित किया मध्य जी पूरा कल के अंत में कुछ भूगर्भीय हलचल के कारण गोंडवाना लैंड तथा अंगारा लैंड एक दूसरे के निकट आए और सागर में उत्पन्न होने लगा इस हिमालय का निर्माण हुआ हिमालय पर्वत के निर्माण के समय में प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत को अधिक मान्यता दी जाने लगी है सिद्धांत के अनुसार पर्वत निर्माण कार्य घटनाएं प्लेटो की गति से संबंध रहिए अतः भूअभि नीति सिद्धांत का स्थान प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत ने ले लिया प्लेटो के आपसी टकराव के कारण उनमें तथा ऊपरी मार दी तो चट्टानों में प्रति किलो का एक कतरन होता है जिसे बल अन्वेषण तथा अग्नि क्रिया होती हैं हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं का निर्माण उस समय हुआ जब भारतीय प्लेट उत्तर की ओर किसकी तथा उसकी टैबलेट के टकराव हुआ भारतीय प्लेट के उत्तर की ओर खिसकने से 6:30 से 7 करोड वर्ष पूर्व टेकसागर सिकुड़ने लगा लगभग 3 से 6 करोड वर्ष पूर्व भारतीय एमएससीआई प्लेट एक दूसरे के काफी निकट आ गई फल स्वरुप डेट निक्षेप करो में विभाजित होने लगा लगभग दो से तीन करोड़ वर्ष को हिमालय पर्वत बनने लगा भारत में भूकंप संबंधित विविधताओं का अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि विश्व के नवीनतम पर्वत हिमालय का प्राचीनतम पर्वत अरावली भारत में ही है और यह दोनों एक दूसरे के काफी निकट है अरावली पर्वत की शायद दिल्ली तक पहुंच जाती है और यह शिवालिक की पहाड़ियों से लगभग 200 किलोमीटर की दूरी पर है।

(ग) ब्रह्मपुत्र एम सिंधु गंगा का मैदान

भारत के उत्तर में हिमालय के दक्षिण में दक्षिणी पठार के बीच स्थित इस विशाल मैदान को भारत का उत्तरी मैदान भी कहते हैं यह मैदान अर्धचंद्राकार रूप में पश्चिम में सिंधु नदी के डेल्टा से पूर्व में गंगा नदी के डेल्टा तक विस्तृत है यह सिंधु गंगा एंड ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा निर्मित है इसका निर्माण मुखेते हिमालय से निकलने वाली नदियों तथा कुछ दक्षिणी पठार से उत्तर की ओर बहने वाली नदियों द्वारा निक्षेप से हुआ है हिमालय के निर्माण के बाद हिमालय पर्वत दक्षिणी पठार के बीच एक गलत बन गया जिसे 33 सागर के जल ने भर दिया कालांतर में इस व्रत को सिंधु गंगा ब्रह्मपुत्र तथा उनकी अनेक सहायक नदियों ने अपने निक्षेप से भर दिया और इस विश्व में विशाल मैदान का निर्माण हुआ कुछ वैज्ञानिकों का मत है कि इस मैदान की उत्पत्ति उस आरंभिक भ्रंश घाटी में तलछट के निक्षेप से हुई जो उत्तरी पर्वतीय से आपके सम्मुख फैली हुई थी तथा वो पृष्ठ में हुए विभिन्न जन से बनी थी सुंदरवन के निरंतर बढ़ते हुए डेल्टा से इस बात का प्रमाण मिलता है कि इस विशाल मैदान का निर्माण अभी भी जारी है।

2. वनस्पति संबंधी विविध बताएं

जलवायु संबंधी विविधता है शायद ही वनस्पति की विविधताओं से प्रतिबिंबित होती हैं 200 सेंटीमीटर से अधिक वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में उष्णकटिबंधीय सरदा पढ़नी बन जाते हैं 100 से 200 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र में उष्णकटिबंधीय पर्णपाती तथा मानसूनी वन उठते हैं इसके विपरीत राजस्थान की मरू भूमि में बबूल की कर तथा कांटेदार झाड़ियों बिकती है हिमालय प्रदेश में वनस्पति पर वर्षा की अपेक्षा तापमान का प्रभाव अधिक है ऊंचाई के साथ तापमान कम होने से वनस्पति में परिवर्तन आ जाता है अतः हिमालय में ऊंचाई के कर्म के अनुसार उष्णकटिबंधीय से लेकर अल्पाइन वनस्पति प्रदेश का अनुकरण पाया जाता है।

3. जनसंख्या वितरण में विविधताएँ

भौतिक तत्वों में विविधता के कारण जनसंख्या के वितरण में काफी विविधता पाई जाती है लखदातार की मरुभूमि लगभग मानव विन है तो दूसरी और नदियां घाटियों तथा देवताओं में अत्यधिक जनसंख्या पाई जाती है पर्वतों की उपेक्षा मैदानों में अधिक मानव बसा होता है सन 2011 की जनगणना के अनुसार अरुणाचल प्रदेश में जनसंख्या घनत्व केवल 17 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है जबकि बिहार में 1102 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर जनसंख्या पाई जाती है दिल्ली में सर्वाधिक 11000 297 प्रति व्यक्ति किलोमीटर जनसंख्या घनत्व है।

4. धरातल की विविधताएँ

हिमालय पर्वत श्रेणियों के बिल्कुल विपरीत भारत का उत्तरी मैदान है यह एकदम मंडल वाला सपाट मैदान है और कहीं पर भी इस की समुद्र तल से ऊंचाई 300 मीटर से अधिक नहीं है गंगा तोता सिंधु नदियों के प्रवाह क्षेत्र के बीच से जल विभाजक अंबाला के पास है और इसकी भी अधिकतम ऊंचाई 293 मीटर है यह भी एक नींबू भाग है और उत्तर प्रदेश में पंजाब हरियाणा के मैदान में प्रवेश करने पर भी इसके जल्दी वजन वाले लक्षण दिखाई नहीं देते सहारनपुर से कोलकाता तक के इस विशाल मैदान की दाल केवल 20 सेंटीमीटर प्रति किलोमीटर है और वाराणसी कोलकाता के बीच में तो यह जाती है प्रदेश में उत्पन्न होने वाले हैं नदियां पर्वतीय भाग मित्रों गति से चलती हैं मुख्यतः अपरदन का कार्य करती हैं परंतु जैसे ही नदियां पर्वतीय प्रदेश को छोड़कर विशाल मैदान में प्रवेश करती है ढाल एकदम बंद हो जाने से नदियों में जल बहाव की गति एकदम धीमी पड़ जाती है और इस भाग में नदियां मुख्य तो निक्षेप का कार्य करती है इस प्रकार यह मैदान नदियों के नीचे किया द्वारा बना है नदियों द्वारा उपजाऊ मिट्टी का निश्चित किया गया और इस मैदान में गणना विश्व के सबसे ऊंचा मैदानों में की जाती है धरातल संबंधी कविता जितनी भारत में पाई जाती है अन्य किसी देश में नहीं पाई जाती इसके उत्तर में गगनचुंबी इमारत श्रेणी है यह विश्व की सबसे ऊंची पर्वत श्रेणी में आता है किस का अधिकांश भाग बर्फ से ढका रहता है विश्व की अधिकांश ऊंची चोटिया इसी पर्वत प्रदेश में पाई जाती हैं बहुत सी छोटी 8000 मीटर से अधिक होती हैं प्रमुख चोटियों के नाम एवरेस्ट कंचनजंगा धौलागिरी मकालु मसालों अन्नपूर्णा है अतिथि ढाल वाली यह पर्वत श्रेणियां अवैध है इन्हें पार करना मनुष्य तथा पौधों के लिए अति कठिन है पर्वतों के कारण भारतीय उपमहाद्वीप से एशिया से भिन्न है और इसकी अपनी अलग भौगोलिक पहचान है उत्तरी मैदान के दक्षिण में भारत का प्रति भी पठारी भाग है यह विश्व के प्राचीनतम भागों में से एक है जान नदिया प्रौढ़ावस्था को प्राप्त कर चुकी हैं इसके विपरीत हिमालय से निकलने वाली नदियां अभी युवावस्था में है आगरा कैंट से बना हुआ की दृष्टि से बड़ा देश है भारत के अधिकांश मिलते हैं छोटा नागपुर पठार में भारत के अधिकांश खनिज पाए जाते हैं इसके विपरीत भारत के उत्तरी विशाल मैदान में खनिजों का पूर्ण अभाव है हिमालय पर्वत प्रदेश में अल्प मात्रा में खनिज मिलते हैं परंतु पर खबर भूमि तथा शीतल जलवायु भी कारण यहां पर परिवहन के साधनों का विकास नहीं हो पाया उसे खनिजों का दोहन होने में बाधाएं उत्पन्न होती हैं

तटवर्ती सीमावर्ती सागर

1. सीमावर्ती सागर- यह चित्र आधार रेखा से 12 नॉटिकल मील तक स्थित है इस चित्र में भारत का एकाधिकार है।

2. संलग्न सागर- यह चित्र आधार रेखा से 24 नॉटिकल मील तक स्थित है इस क्षेत्र में भारत के पास वित्तीय अधिकार हैं यहां भारत सीमा शुल्क वसूल कर सकता है।

3. अनन्य आर्थिक क्षेत्र- यह चेतना धारिता से 200 नॉटिकल मील ताकि स्थित है इस क्षेत्र में भारत के पास आर्थिक अधिकार है तथा यहां भारत संसाधनों का दोहन दीप निर्माण तथा अनुसंधान आदि कर सकता है।

उच्च सागर:- यहां सभी देशों का समान अधिकार होता है

तटवर्ती सीमा के लाभ :-

  • चतुर्थी सीमा दक्षिण भारत में शंकरी जलवायु का निर्माण करती है।
  • तटवर्ती सीमा बंदरगाह के निर्माण के लिए उपयोगी है इन बंदरगाह के माध्यम से आयात निर्यात व्यापार किया जाता है ।
  • तटवर्ती सीमा भारत को विभिन्न देशों से जोड़ती है ।
  • रिटर्न की दृष्टि से भी है उपयोगी होती है ।
  • महासागरीय संसाधनों तक तटवर्ती सीमा पहुंच बनाती है जिससे आयात निर्यात में आसानी रहती है।
  • सुरक्षा की दृष्टि से निकटवर्ती सीमा महत्वपूर्ण है ।

तटवर्ती सीमा के नुकसान :-

  • सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है ।
  • समुद्री लुटेरे तस्करी आदि का भी डर बना रहता है ।
  • तटवर्ती सीमा के रखरखाव एवं सुरक्षा के लिए अतिरिक्त क्या करना पड़ता है ।

PHYSIOGRAPHIC REGIONS

भारत की भूगर्भीय संरचना के कारण भारत में उच्चावच संबंधित विविध बताएं पाई जाती हैं

  1. पहाड़िया=10.5%
  2. पर्वत =18.6%
  3. पठार =27.7%
  4. मैदान =43.2%

उत्तरी पर्वतीय प्रदेश :-

  • यह भारत के उत्तरी भाग में पश्चिम से पूर्व तक एक चाप के रूप में विस्तृत प्रदेश है।
  • यह प्रदेश 500000 किलोमीटर स्क्वायर क्षेत्र में स्थित है
  • इस पर्वतीय प्रदेश का निर्माण हिमालय पर्वत से होता है
  • हिमालय पर्वत एक नवीन वलित पर्वत है जो टेरिटरी पीरियड मैं यूरिन तथा indo-australian प्लेट के अभिसरण से बना था
  • हिमालय पर्वत का निर्माण टेडी सागर के अवसरों से हुआ है ।
  • इस पर्वत का निर्माण मुख्य रूप से ग्रेनाइट से पहनी चट्टानों से हुआ है ।
  • यहां स्थित पर्वतों पर अल्पाइन हिम्मत पाए जाते हैं । जिनसे भारत की प्रमुख नदियों का उद्गम होता है।

इस पर्वतीय प्रदेश के तीन प्रमुख भाग हैं

1.टास हिमालय:-

  • यह उत्तरी पर्वतीय प्रदेश का सबसे उत्तरी भाग है।
  • यह भाग J&Kतथा तिब्बत में विस्तृत है।
  • मुख्य हिमालय के वृष्टि छाया क्षेत्रमें होने के कारण यहाँ शुष्क परिस्थितियाँ पाई जाती है ।
  • इस भाग में तीन प्रमुख पर्वत श्रेणियाँ हैं:-
  1. काराकोरम
  2. लद्दाख
  3. जासकर

1.काराकोरम श्रेणी:-

  • यह टास हिमालय की सबसे उत्तरी श्रेणी है ।
  • यह इस भाग की सबसे लम्बी तथा ऊँची श्रेणी है।
  • इस श्रेणी में भारत की सबसे ऊँची तथा विश्व की दूसरी सबसे ऊँची चोटी K2(गाॅडविन ऑस्टिन) स्थित है।
  • इस श्रेणी में बहुत से अल्पाइन पाए जाते हैं।

उदाहरण-हिसपर , बतुरा ,बालतोरो ,बियाफो,सियाचिन

  • सियाचिन हिमनद में नुबरा घाटी में स्थित है।
  • नुब्रा नदी का उद्गम सियाचिन हिमनद से होता है
  • सियाचिन हिमनद विश्व की सबसे ऊंची युद्ध भूमि है ।

2. लद्दाख श्रेणी:-

  1. इस श्रेणी को तिब्बत में कैलाश पर्वत कहते हैं।
  2. इसके दक्षिण में मानसरोवर झील स्थित है ।
  3. काराकोरम तथा लद्दाख श्रेणी के बीच लद्दाख का पठार स्थित है ।
  4. यह भारत का सबसे ऊँचा पठार (4800मी.) है।
  5. यह अन्त: पर्वतीय पठार है इसलिए यहाँ शुष्क परिस्थितियाँ पाई जाती है।
  6. यह भारत का ठण्डा मरुस्थल है।

3.जासकर श्रेणी:-

  • यह टास हिमालय की सबसे दक्षिणी श्रेणी है।
  • इस श्रेणी तथा लद्दाख श्रेणी के बीच सिन्धु नदी घाटी स्थित है।

2.मुख्य हिमालय :-

  • यह पर्वतीय प्रदेश का दूसरा मुख्य भाग है।
  • यह बाग सिंधु नदी घाटी से ब्रह्मपुत्र नदी घाटी तक स्थित है ।
  • इस बात के दोनों और एक संज्ञा मोड पाया जाता है ।
  • इस बात की चौड़ाई पश्चिमी भाग में अधिक तथा पूर्वी भाग में कम है।
  • यह लगभग 24 किलोमीटर की दूरी में विस्तृत है ।
  • इस भाग में तीन प्रमुख श्रेणियां हैं :-
  1. वृहद हिमालय
  2. मध्य हिमालय
  3. शिवालिक

1. वृहद हिमालय

  • यह श्रेणी नंगा पर्वत से नामचा बरवा के बीच स्थित है
  • यह कोई 2400 किलोमीटर की दूरी में है विस्तृत है तथा इसकी औसत चौड़ाई 25 किलोमीटर है एम औसत ऊंचाई 6100 मीटर है।
  • ऊंचाई अधिक होने के कारण यह पर्वत वर्ष पर बर्फ से ढका रहता है पता है इसे हिमाद्रि भी कहा जाता है ।
  • यह विश्व की सबसे ऊंची पर्वत श्रेणी है ।
  • इस श्रेणी में विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट (8848 )मीटर स्थित है ।
  • माउंट एवरेस्ट नेपाल और चीन सीमा पर स्थित है।
  • माउंट एवरेस्ट को नेपाल में सागरमाथा कहते हैं ।
  • इस पर्वत पर बहुत से प्रमुख हिमनद स्थित है जैसे गंगोत्री यमुनोत्री संतो पथ पिंडारी मिलान इत्यादि।
  • इस श्रेणी में बहुत से डरे हैं जिन्हें स्थानीय भाषा में लाया जाता है

वृहत् हिमालय के प्रमुख दर्रे :-

  1. बुजि॔ला
  2. जोजिला
  3. बारालचछा
  4. शिपकिला
  5. माना
  6. नीति
  7. लिपुलेख
  8. नाथू ला
  9. जेलीप ला
  10. बोमडिला

1 बुजि॔ला:-

  • यह श्रीनगर को pokसे जोड़ता है
  • इस दर्रे के माध्यम से घुसपैठ गतिविधियां होती हैं ।

2.जोजिला दरा:-

  • यह धरा श्रीनगर को लेह से जोड़ता है ।
  • इस धीरे से NH-1D भी गुजरता है ।

3. बारालच्छा:-

● यह धरा हिमाचल प्रदेश को लेह से जोड़ता है।

4. शिपकिला:-

  • यह धरा हिमाचल प्रदेश को तिब्बत से जोड़ता है
  • इस धरा का निर्माण सतलज नदी द्वारा किया गया है ।
  • इसी धरा के माध्यम से सतलज नदी भारत में प्रवेश करती है।
  • इस तरह के माध्यम से चीन के साथ व्यापार किया जा सकता है।

5.माना :-

यह धरा उत्तराखंड को तिब्बत से जोड़ता है।

6.नीति :-

यह धरा उत्तराखंड को तिब्बत से जोड़ता है।

7.नाथूला :-

  • यह धरा सिक्किम को तिब्बत से जोड़ता है ।
  • इस तरह से प्राचीन रेशम मार्ग गुजरता था ।
  • इस तरह का उपयोग चीन के साथ व्यापार एवं कैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए किया जाता है ।
  • मानसरोवर की यात्रा इस तरह के माध्यम से अधिक सुगम होती है ।

8.जलीप ला :-

यह धरा सिक्कम को तिब्बत से जोड़ता है।

9.लिपुलेख दरा :-

  • यह धरा उत्तराखंड को तिब्बत से जोड़ता है ।
  • इस तरह के माध्यम से कैलाश मानसरोवर की यात्रा की जाती है अतः इसे मानसरोवर का द्वार भी कहा जाता है ।
  • इस तरह के माध्यम से चीन के साथ व्यापार किया जाता है ।

10. बोमडिला:-

यह धरा अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत से जोड़ता है।

2. मध्य हिमालय:-

इसे हिमाचल हिमालया लघु हिमालय भी कहते हैं।यह श्रेणी 2400 किलोमीटर की दूरी में विस्तृत है ।इसकी औसत चौड़ाई 50 किलोमीटर है। इस श्रेणी की ऊंचाई लगभग 3700-4500 मीटर के बीच पाई जाती है।

इस श्रेणी की विभिन्न स्थानीय नाम है।

  1. जम्मू -कश्मीर = पीरपंजाल
  2. हिमाचल प्रदेश = धोलादा
  3. उत्तराखंड =नाग तिब्बा मंसूरी
  4. नेपाल =महाभारत
  5. सिक्किम = दोक्या
  6. भूटान =काला पर्वत

मध्य हिमालय की बहुत सी घाटी स्थित है पहली कश्मीर घाटी वृद्ध हिमालय और पीर पंजाल दूसरी कुल्लू घाटी व्रत हिमालय और दादर कांगड़ा घाटी हिमाचल प्रदेश हिमालय और मसूरी काठमांडू घाटी व्रत हिमालय और महाभारत इस श्रेणी पर ग्रीष्म ऋतु में उष्णकटिबंधीय घास के मैदान पाए जाते हैं जिन्हें जम्मू-कश्मीर में मर्द तथा उत्तराखंड में बुग्याल दयाला कहा जाता है शीत ऋतु के दौरान यह श्रेणी बर्फ से ढक जाती है इस श्रेणी पर स्थित घास के मैदानों का उपयोग स्थानीय समुदाय अपने पशुओं को चराने के लिए करते हैं इस श्रेणी में बहुत से पर्यटन स्थल पाए जाते हैं जैसे कुल्लू मनाली नैनीताल मसूरी इत्यादि इस श्रेणी में कुछ प्रमुख पाए जाते हैं जैसे पीर पंजाल दर्रा यह धरा श्रीनगर को पीओके से जोड़ता है। दूसरा बनिहाल दर्रा यह धरा श्रीनगर को जम्मू से दौड़ता है इस तरह से nh1a गुजरता है इस तरह में जवाहर सुरंग स्थित है।

ऋतु प्रवास :-

ऋतु में होने वाले परिवर्तन के साथ जब स्थानीय समुदाय अपने पशुओं के साथ सारे पतंजलि की तलाश खोज में एक स्थान से दूसरे स्थान तक पलायन करते हैं उसे ऋतु प्रवास कहा जाता है जम्मू कश्मीर में गुर्जर तथा बकरवाल समुदाय ऋतु प्रवास करते हैं ग्रीष्म ऋतु के दौरान यह प्रवृत्तियों की ओर तथा शीत ऋतु में घाटी क्षेत्र की और प्लान करते हैं।

करेवा :-

पीर पंजाल श्रेणी के निर्माण के कारण कश्मीर घाटी क्षेत्र में अस्थाई जिलों का निर्माण हुआ जो नदियों द्वारा लाए गए अवसादो से भर कर गई तथा इन्हीं अवसादो को करेवा कहते हैं करेवा कश्मीर घाटी क्षेत्र में पाए जाने वाले उपजाऊ हिमनद नदी एवं झील के अवसाद हैं इन अवसादो का उपयोग के सर्वे चावल की खेती के लिए किया जाता है।

3. शिवालिक:-

  • शिवालिक श्रेणी की ऊँचाई 500-1500Mके बीच पाई जाती है।
  • इसकी चौड़ाई 10-50 KM है।
  • शिवालिक को विभिन्न स्थानीय नामों से जाना जाता है।
  1. जम्मू-कश्म= जम्मू हिल्स
  2. उत्तराखंड =दुदवा/धांग
  3. नेपाल =चूडियाघाट
  4. अरूणाचल प्रदेश =दाफला,मिरी,अबोर,मिसमी।
  • शिवालिक श्रेणी के निर्माण के दौरान मध्य हिमालय तथा शिवालिक श्रेणी के बीच अस्थाई झीलों का निर्माण हुआ था।
  • यह झीले कालांतर में अवसादो से भर गई जिससे समतल घाटियों का निर्माण हुआ।
  • इन घाटियों को पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में ‘दून’ तथा पूर्वी हिमालय क्षेत्र में ‘द्वार’ कहते हैं । जैसे- देहरादून, कोटलीदून, पाटलीदून, हरिद्वार ,निहांगद्वार इत्यादि।
  • इन घाटियों का उपयोग चावल की खेती के लिए किया जाता है ।

चोस:-

हिमाचल से पंजाब में स्थित शिवालिक श्रेणी क्षेत्र में मानसून के दौरान अस्थाई धाराओं का निर्माण होता है जिन्हें स्थानीय भाषा में चोस कहते हैं।

यह धाराएं शिवाली को विभिन्न भागों में विभाजित कर देती हैं।

3. पूर्वांचल:-

  • उत्तर पूर्वी राज्यों में उत्तर से दक्षिण की ओर विस्तृत पहाड़ियों को पूर्वांचल कहते हैं ।
  • पूर्वांचल का निर्माण indo-australian तथा ब्रह्मा प्लेट के अभिसरण से हुआ है ।
  • यह बालू पत्र से निर्मित पहाड़ियां हैं।
  • दक्षिण पश्चिम मानसून दोनों द्वारा यहां भारी वर्षा प्राप्त होती है अतः यहां बहुत अधिक जैव विविधता पाई जाती है ।
  • यह विश्व के 36 हॉटस्पॉट में सम्मिलित है ।
  • नागा पहाड़ियों की सबसे ऊंची चोटी सलामती है ।
  • मिजो पहाड़ियों को लुशाई पहाड़ियां भी कहते हैं ।
  • मिजो पहाड़ियों की सबसे ऊंची चोटी है ब्लू माउंटेन है।
  • बराइल श्रेणी नागा पहाड़ियों एम मणिपुर पहाडियों को अलग करती है।

हिमालय पर्वतीय प्रदेश का प्रादेशिक विभाजन

1. कश्मीर/ पंजाब हिमालय:-

  • हिमालय का यह भाग सिंधु तथा सतलज नदी के बीच स्थित है ।
  • यह लगभग 560 किलोमीटर की दूरी में विस्तृत है।
  • इस भाग में जासकर, पीरपंजाल श्रेणी एवं जम्मू पहाड़ियां स्थित हैं।
  • इस भाग में हिमालय की चौड़ाई सर्वाधिक पाई जाती है जो लगभग 550 से 400 किलोमीटर के बीच पाई जाती है।
  • यहां हिमालय की ऊंचाई क्रमिक रूप से बढ़ने लगती है।

2. कुमायूं हिमालय:-

  • हिमालय का यह भाग सतलज से काली नदी के बीच स्थित है।
  • यह 320 किलोमीटर की दूरी में विस्तृत है।
  • यह भाग मुख्य रूप से उत्तराखंड में स्थित है ।
  • यहां कुछ प्रमुख चोटियां स्थित है जैसे नंदा देवी केदारनाथ बद्रीनाथ कामेट त्रिशूल इत्यादि।

3. नेपाल हिमालय:-

  • यह भाग काली दादा तीस्ता नदी के बीच स्थित है।
  • यह भाग 800 किलोमीटर की दूरी में विस्तृत है।
  • इस भाग में हिमालय की ऊंचाई सर्वाधिक पाई जाती है।
  • यहां कई प्रमुख ऊंची चोटियां पाई जाती है। जैसे -माउंट एवरेस्ट ,कंचनजंगा( 8598 मीटर)
  • यहां हिमालय की चौड़ाई अत्यधिक कम होती जाती है

4. असम हिमालय:-

  • यह भाग तीस्ता से देहांग नदी के बीच स्थित है।
  • यह 720 किलोमीटर की दूरी में विस्तृत है।
  • यहाँ हिमालय की चौड़ाई सबसे कम हो जाती है जो लगभग 150 किलोमीटर हो जाती है।
  • इस भाग में हिमालय की ऊंचाई क्रमिक रूप से कम होने लगती है।

हिमालय का महत्व :-

  • हिमालय पर्वत भारत को प्राकृतिक सीमा प्रदान करता है जिसके कारण भारत को एक उपमहाद्वीप की संख्या प्राप्त होती है।
  • भारत की जलवायु पर भी हिमालय पर्वत का प्रभाव रहता है ।हिमालय पर्वत साइबेरिया से आने वाले ठंडी पवनों को रोकता है।
  • यह मानसून दोनों को भारत में वर्षा करने के लिए बाध्य करते हैं।
  • हिमालय पर्वत के क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की वनस्पति पाई जाती है यहां बहुत अधिक जैव विविधता पाई जाती है।
  • यहां बहुत से हिम्मनद स्थित है ।जिनसे भारत की प्रमुख नदियों का उद्गम होता है।
  • हिमालय का धार्मिक महत्व भी है। हिमालय पर्वत क्षेत्र में बहुत से तीर्थ स्थल स्थित हैं।
  • पर्यटन की दृष्टि से यह महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां बहुत से पर्वतीय स्थल स्थित है।

उत्तरी मैदानी प्रदेश

  • इस मैदानी प्रदेश का निर्माण नदियों द्वारा जमा किए गए अवसरों से होता है।
  • यह विश्व के सबसे विस्तृत लोड मैदान है ।
  • यह भारत का नवीनतम प्रदेश है ।
  • इस अत्यधिक उपजाऊ मैदान को उपयोग करने के लिए किया जाता है तथा यहां सर्वाधिक जनसंख्या घनत्व पाया जाता है।
  • यह प्रदेश 700000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है ।
  • इन मैदानों प्रदेश की औसत चौड़ाई 240 से 320 किलोमीटर पाई जाती है।
  • इन मैदानों में जलोढ अवसादों का जमाव 2000 मी.की गहराई तक पाया जाता है।
  • यह समतल मैदान है जिनका ढाल मंद है।

(A).राजस्थान मैदान

( B). सतलज मैदान

(C).गंगा मैदान

(D).ब्रह्मपुत्र मैदान

A. राजस्थान के मैदान:-

  • यह अरावली पर्वत के पश्चिम में स्थित मैदान है
  • इन मैदानों की प्रमुख नदी लूनी है यहां अर्ध शुष्क तथा शुष्क परिस्थितियां पाई जाती हैं इस मैदानी क्षेत्र में बहुत सी लवणीय झील स्थित है वर्षा के आधार पर इस मैदानी प्रदेश के दो भाग हैं राजस्थान बांगर और मरुस्थली

1.राजस्थान बांगर:-

यह भाग अरावली पर्वत तथा 25 सेंटीमीटर सम वर्षा रेखा के बीच स्थित है क्षेत्र में लघु 25 सेंटीमीटर से 50 सेंटीमीटर वर्षा प्राप्त होती है अर्थ यहां अर्ध शुष्क परिस्थितियां पाई जाती हैं

2. मरुस्थली:-

  • यह बात 25 सेंटीमीटर सम वर्षा रेखा के पश्चिम में स्थित है मरुस्थली परिस्थितियां पाई जाती हैं।

B. सतलज के मैदान

  • इस मैदान का निर्माण रावी व्यास तथा सकल सतलज नदी द्वारा होता है यह मैदान मुख्य रूप से पंजाब तथा हरियाणा में स्थित है इस मैदानी प्रदेश में दुआ पाए जाते हैं जैसे बारी तथा 2017 छतरगढ़ नदी के बीच मालवा के मैदान स्थित हैं घर तथा यमुना के बीच हरियाणा भिवानी नगर स्थित है इसमें देश में सर्वाधिक उत्पादक पाई जाती है

C. गंगा के मैदान:-

इस मैदान का निर्माण गंगा तथा इसकी सहायक नदियों द्वारा होता है इस मैदान का ढाल एंड डब्लू से एसपी की ओर होता है यह मैदान मुख्य रूप से यूपी बिहार तथा पश्चिम बंगाल में स्थित है इस मैदान के विभिन्न प्रादेशिक नाम है यूपी के पश्चिम भाग में रोहिलखंड लखनऊ के पास अवध के मैदान बिहार के गंगा के उत्तर में मिथिला बिहार के गंगा के दक्षिण में मगध कोशी तथा महानंदा नदी के बीच बारिश दामोदर तथा सौंदर्य का नदी रेखा नदी के बीच कार यह भारत के सबसे विस्तृत मैदान है तथा यहां सर्वाधिक उत्पादकता पाई जाती है

D. ब्रह्मपुत्र के मैदान:-

  • किस मैदान का निर्माण ब्रह्मपुत्र तथा उसकी सहायक नदियों द्वारा होता है इस मैदान का ढाल उत्तर पूर्व से दक्षिण पश्चिम की ओर होता है यह मैदान मुख्य रूप से असम में स्थित है यह संघ के मैदान हैं इनमें दोनों को उपयोग चावल तथा पटसन की खेती के लिए किया जाता है।

सरकार के आधार पर मैदानों का विभाजन :-

अ. बाबर:-

यह मैदान पर हिमालय पर्वत के पदेन क्षेत्र में नदियों द्वारा लाए जाने वाले अपराधों से निर्मित होता है यह एक पट्टी के रूप में पर्वतों के पदेन क्षेत्र में पाए जाते हैं यह मैदान 8 से 15 किलो मीटर चौड़ाई में स्थित हैं इस मैदानी क्षेत्र में नदियां बड़े अफसरों के नीचे बहती हैं अतः सतह पर अदृश्य हो जाती है।

ब. तराई:-

यह बाबर के दक्षिण में 15 से 30 किलो मीटर चौड़ाई में विस्तृत मैदान है तराई नदी क्षेत्र में नदी पुण्यतिथि पर दिखने लगती है इस क्षेत्र में नदी के जल का प्रवाह अनियमित होता है अतः यहां दलदली परिस्थितियां पाई जाती हैं इस क्षेत्र में गहन वनस्पति तथा विभिन्न वन्य जीव पाए जाते हैं पंजाब तथा यूपी के तराई क्षेत्र में कृषि की जाती है भारत में अब तराई क्षेत्र मुख्य रूप से उत्तर पूर्वी राज्य में पाया जाता है

स. खादर:-

  • नदी के दोनों और बाढ़ के मैदान पाए जाने वाले नए अवसरों से निर्मित मैदान को खादर कहते हैं नदी हर वर्ष मानसून के दौरान यहां नई अवसाद जमा करती है यह मैदान अत्यधिक उपजाऊ है तोता यहां सर्वाधिक उत्पादक बताई जाती है पंजाब में खादर के मैदान को पेट कहते हैं

द. बांगर:-

  • यह खादर के पास ऊंचाई पर स्थित मैदान है जो पुराने जलोटा और शब्दों से निर्मित है यहां सर्वाधिक उत्पादक पर पाया जाता है बांगड़ क्षेत्र में कैल्शियम के पिंड पाए जाते हैं जिन्हें कंकरिया कंकर कहते हैं बांगर क्षेत्र में अत्यधिक अपरदन के कारणों पर की मुलायम मिट्टी नष्ट हो जाती है तथा पीछे कंकर युक्त भी रह जाती है जिसे कहते हैं

प्रायद्वीपीय पठारी प्रदेश :-

  • यह भारत के दक्षिण में प्रायद्वीप में स्थित भाग है यह गोडवाना लैंड का हिस्सा था यह भारत का सबसे पुराना भौतिक प्रदेश है यह शिल्ड पुराना पठार का उदाहरण है यह भारत का सबसे खनिज संपन्न प्रदेश है यह भारत का सबसे बड़ा भौतिक प्रदेश है जो 1600000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है इस पठारी प्रदेश की ऊंचाई लगभग 600 से 900 मीटर पाई जाती है इस प्रदेश में बहुत से पर्वत एवं पठार स्थित है।

प्रायद्वीपीय प्रदेश के पठार :-

  • मेवाड़ पठार मध्य भारत पठार बुंदेलखंड मालवा बघेलखंड दंडकारण्य छोटानागपुर मेघालय पठार कार्बी आंगलोंग दक्कन का पठार

1. मेवाड़ पठार:-

  • यह फटा राजस्थान में अरावली पर्वत के पूर्व में स्थित है इस प्रकार पर बनास नदी बहती है इस प्रकार का डायल पश्चिम से पूर्व की ओर है

2. मध्य भारत का पठार:-

  • यह मध्य प्रदेश में स्थित पठार है इस प्रकार का डाल दक्षिण पश्चिम से उत्तर पूर्व की ओर है इस प्रकार पर चंबल नदी बहती है जो अवनालिका अपरदन द्वारा यहां B.Ed का निर्माण करती है।

3. बुंदेलखंड का पठार:-

  • यह पठार यूपी तथा एमपी में स्थित है पटेल ब्रदर्स उस परिस्थितियां पाई जाती है इस प्रकार का डाल दक्षिण से उत्तर की ओर है इस प्रकार पर केंद्रित आवे तो नदियां बहती हैं यह नदिया गहरी घाटियां बनाती है यह नदियां इस प्रकार से गिरते समय जलप्रपात भी बनाती है।

4. मालवा के पठार:-

  • यह पठार मुख्य रूप से एमपी में स्थित है यह त्रिभुजाकार पठार है इस पठार पर लावा की परत पाई जाती है जिसके पक्ष से काली मिट्टी का निर्माण होता है इस पठार पर चंबल तथा शिप्रा नदी बहती है शिप्रा नदी के किनारे उज्जैन शहर स्थित है यहां कुंभ का मेला भी लगता है।

5. बघेलखंड पठार:-

  • यह पठार मध्य प्रदेश अध्यक्ष छत्तीसगढ़ में स्थित है यह कैमूर पार्टी के पूर्व में है यह प्रदर्शन तथा महानदी के अपवाह तंत्र कॉल करता है

6. दंडकारण्य पठार:-

  • यह पठार मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ उड़ीसा में स्थित है छत्तीसगढ़ में इस प्रकार को बस्तर का पठार कहते हैं इस पठार पर इंद्रावती नदी बहती है इस पठर पर लो ऑक्साइड के भंडार पाए जाते हैं छत्तीसगढ़ में लोएस्ट की विख्यात खान दल्ली राजहरा स्थित है उड़ीसा के बॉक्साइट के प्रमुख भंडार तीन प्रमुख जिलों में पाए जाते हैं जैसे पहला कालाहांडी दूसरा कोरापुट तीसरा बोलांगीर

7. छोटा नागपुर पठार:-

  • यह पठार मुख्य रूप से झारखंड राज्य में स्थित है इस पठार पर लो ऐसे में कोयले का भंडार पाए जाते हैं दामोदर नदी इस मैटर को दो भागों में बांटती है इस पठर के उत्तर बापू हजारीबाग और दक्षिणी भाग को रांची दामोदर नदी घाटी क्षेत्र में कोयले के भंडार पाए जाते हैं रांची के पठार से सुंदर का नदी का उद्गम होता है

8. मेघालय पठार:-

  • यह फटा छोटा नागपुर पठार का ही भाग माना जाता है यह मालदा बस द्वारा छोटा नागपुर पठार से अलग होता है उस पठार पर लकीरे नियम तथा कोयले के भंडार पाए जाते हैं गारो खासी जयंतिया पहाड़ियां किस पठार पर स्थित है काशी पाटिया पर चेरापूंजी तोताराम नामक स्थान पाया जाता है जहां बहुत अधिक वर्षा प्राप्त होती है मॉनसून म में विश्व की सर्वाधिक औसत वार्षिक वर्षा प्राप्त होती है

9. कार्बी आंगलोंग पठार:-

  • bf18 असम में स्थित है इस पठार पर मिकी तथा रेंगमा पहाड़ियां स्थित है

10. दक्कन का पठार:-

  • यह अपराधी पर भारत में स्थिति त्रिभुजाकार पठार है इस प्रकार पर लावा की परत पाई जाती है जिसके कारण यहां काली मृदा का निर्माण होता है काली मृदा की करणी है भारत का सबसे प्रमुख कपास उत्पादक क्षेत्र है इस पठार का डाल पश्चिम से पूर्व की ओर है इस पठार को तीन प्रमुख भागों में बांटा जा सकता है पहला महाराष्ट्र पठार दूसरा आंध्रा का पठार तीसरा कर्नाटका का पठार

अ. महाराष्ट्र का पठार:-

  • यह भारत का सबसे प्रमुख कपास उत्पादक क्षेत्र है इस पठार पर गोदावरी देता कटरा नदी बहती है

ब. आंध्र का पठार

कृष्ण नदी इस पठार को विभाजित करती है कृष्ण नदी की उत्तर में स्थित भाग तेलगाना दक्षिण में स्थित द्वारा सीमा पूरी भाव को सीमद्रा कहा जाता है

स. कर्नाटक पठार:-

अशोक मीटर कि समूचे लेखा इस पठार को दो भागों में बांटती है उत्तरी भाग बेंगलुरु का पठार दक्षिणी भाग मैसूर का पठार बेंगलुरु पठार पर कृष्णा तथा तुम भद्र नदी बहती है तथा मैसूर के पटल पर कावेरी नदी बहती है

प्रायद्वीपीय प्रदेश के पर्वत

1. अरावली पर्वत:-

यह पर्वत गुजरात में पालनपुर से दिल्ली की रायसीना पहाड़ी तक विस्तृत है यह प्राचीन वलित पर्वत है यह अवशिष्ट पर्वत का उदाहरण है यह 692 किलोमीटर की दूरी में विस्तृत का अधिकतम भाग राजस्थान 550 किलोमीटर में है इस पर्वत की औसत ऊंचाई 930 मीटर है गुरु शिखर की सबसे ऊंची चोटी की ऊंचाई 22 मीटर है इस क्षेत्र में पाए जाते हैं इस पर्वतीय क्षेत्र में बहुत से खनिज पाए जाते हैं जैसे सीसा जस्ता चांदी व्यस्तता तांबा लोहा अयस्क यह महान जल विभाजक का एक भाग है।

2. विंध्याचल:-

यह एक खंड पर्वत है यह पर्वत चुनाव पत्र से निर्मित है यह श्रेणी उत्तरी तथा दक्षिणी भारत को अलग करती है यह श्रेणी नर्मदा भ्रंश घाटी की उत्तरी सीमा का निर्माण करती है यह लगभग 1050 किलोमीटर की दूरी में गुजरात से छोटा नागपुर पठार क्षेत्र तक विस्तृत है इस श्रेणी में विभिन्न पहाड़ियां सम्मिलित है जैसे बाड़मेर कैमूर पारसनाथ इस श्रेणी में हीरे के लिए विख्यात क्षेत्र पन्ना मध्य प्रदेश में स्थित है।

3. सतपुरा:-

यह एक खंड पर्वत है यह नर्मदा ब्रिज घाटी की दक्षिणी सीमा तथा ताप्ती भ्रंश घाटी की उत्तरी सीमा का निर्माण करता है यह बालू पर पत्थर से निर्मित पर व्रत है यह मुख्य रूप से एमपी तथा गुजरात में स्थित है यह विभिन्न पार्टियों के रूप में विस्तृत है जैसे राजपीपला गोविंदगढ़ महादेव में काल महादेव पहाड़ियों में सतपुड़ा की सबसे ऊंची चोटी धूपगढ़ स्थित है 1350 मीटर महादेव पहाड़ियों में ही पंचमढ़ी स्थित है पंचमढ़ी एक जैव आरक्षित क्षेत्र है महादेव पहाड़ियों के दक्षिण में बेतूल का पठार स्थित है जहां से तापी नदी का उद्गम होता है निकाल पहाड़ियों की सबसे ऊंची चोटी अमरकंटक है जहां से सोना नदी तथा नर्मदा नदी क का उद्गम होता है

4. पश्चिमी घाट:-

यह तापी घाटी से एक कन्याकुमारी तक विस्तृत है यह लगभग 16 किलोमीटर की दूरी में विस्तृत है तथा इसकी औसत ऊंचाई 12 मीटर है इसे सह्याद्री पर्वत भी कहते हैं यह एक भ्रंश कंगार खंड पर्वत है पश्चिमी घाट का पश्चिमी डालती है तथा पूरी दाल बंद है दक्षिण पश्चिमी मानसून पवनों द्वारा इस पर्वत पर भारी वर्षा प्राप्त होती है अतः यहां उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन समिति पाई जाती है इस पर्वतीय क्षेत्र में बहुत अधिक देवता पाई जाती है बताइए विश्व के 36 हॉटस्पॉट में से एक है पश्चिमी घाट को तीन प्रमुख भागों में बांटा जा सकता है पहला उत्तरी से हरि दूसरा मध्य सदरी तीसरा दक्षिणी सदरी

अ. उत्तरी सहयाद्री

यह भाग तापी घाटी से 16 डिग्री नॉर्थ के बीच स्थित है यह मुख्य रूप से महाराष्ट्र में स्थित है इस बात की सबसे ऊंची चोटी कलसुबाई है जिससे गोदावरी नदी का उद्गम होता है यहां की अन्य प्रमुख छोटी महाबलेश्वर है महाबलेश्वर को किशोर कृष्ण नदी का उद्गम होता है।

ब. मध्य सहयाद्री:-

यह 16 डिग्री नॉर्थ से नीलगिरी पहाड़ियों के बीच स्थित है यह मुख्य रूप से गोवा तथा कर्नाटक में स्थित है इस बार की सबसे ऊंची चोटी कौन द्रमुक है कुंदन मुक्त छोटी लोस्की के भंडार के लिए विख्यात है यहां बाबा बुदन पहाड़ियों की पाई जाती है जो कहुआ के उत्पादन के लिए विख्यात है।

स. दक्षिणी सहयाद्री:-

दक्षिणी सह्याद्रि नीलगिरी पहाड़ियों तथा कन्याकुमारी के बीच स्थित है इस बाग में तीन प्रमुख पहाड़ियां स्थित है पहली अन्नामलाई पहाड़ी इन पहाड़ियों की सबसे ऊंची चोटी अनाईमुडी केरल 2695 मीटर है अनाईमुडी दक्षिण भारत की सबसे ऊंची चोटी है दूसरी इलायची पहाड़ियां यह पाटया मसाले की खेती के लिए विख्यात है मुख्य रूप से इलायची के लिए इन पहाड़ियों की सबसे ऊंची चोटी अगस्त मलाई है यह एक जीव आरक्षित क्षेत्र भी है तीसरी पालवी पहाड़ियां इन पार्टियों में तमिलनाडु का विख्यात हिल स्टेशन कोडाईकनाल स्थित है

पश्चिमी घाट के दरे

थाल घाट मुंबई से नासिक nh3

भोर घाट मुंबई से पुणे nh4

पालघाट कोची से कोयंबटूर एनएच 47

सेनकोटा तिरुवंतपुरम से मदुरई nh-49

पूर्वी घाट

यह प्रवत महानदी से नीलगिरी पहाड़ियों के बीच विस्तृत है यह एक प्राचीन वलित पर्वत है इसकी औसत ऊंचाई 900 मीटर है यह पर्वत महानदी से गोदावरी नदी तक सतत है तथा इसके बाद यह पर्वत नदियों द्वारा अपठित हो जाता है इसकी सबसे ऊंची चोटी आरामा कोंडा आंध्र प्रदेश है 1680 मीटर यहां की अन्य प्रमुख छोटी महेंद्र गिरी तथा जिंदा गाढ़ा है पूरी घाट में आंध्र प्रदेश तमिलनाडु में स्थित पहाड़ियां भी सम्मिलित है जैसे नल्ला मल्ला मल्ला वेलीकोंडा बालकोंडा जवादी सिरोही

नीलगिरी पहाड़ियां

यह पाटिया कर्नाटक केरल तथा तमिलनाडु के सीमा क्षेत्र पर स्थित है यह एक खंड पर्वत है इस विरोध की सबसे ऊंची चोटी डोडा बेटा है जिसकी ऊंचाई 36 2637 मीटर है यह दक्षिण भारत की दूसरी सबसे ऊंची चोटी है इन पहाड़ियों पर पूर्वी तथा पश्चिमी घाट आकर मिलते हैं यह पहाड़िया जैव विविधता के लिए विख्यात है यहां भारत का पहला जैव आरक्षित क्षेत्र स्थित है तमिलनाडु का प्रसिद्ध हिल स्टेशन ऊटी यहां स्थित है यह पहाड़ियां चाय की रोपण कृषि के लिए विख्यात है इन पहाड़ियों पर डोडा जनजाति निवास करती है जो भैंस पालन के लिए विख्यात है

प्रायद्वीपीय पठारी प्रदेश का महत्व

  • यह गोंडवाना लैंड का हिस्सा है अतः यह स्थाई भूभाग है यहां गोडवाना कोयले का 98% भाग पाया जाता है यहां बहुत से खनिज पाए जाते हैं जैसे लोहा को पर कॉपर सीसा जस्ता चांदी यूरेनियम गुड नाइट यह इमारती पत्र भी पाए जाते हैं जैसे लाइमसन सैंड स्टोन मार्बल इत्यादि यहां लावा की परत के कारण काली मिट्टी का निर्माण होता है जो कपास की खेती के लिए उपयोगी होती है यहां स्थित पर्वत श्रेणियां महान जल विभाजक का कार्य करती है या स्थित पर्वत उसे विभिन्न नदियों का उद्गम होता है यहां बहुत से पर्वतीय स्थल स्थित है स्थित पर्वतीय क्षेत्र में बहुत अधिक देवता पाई जाती है यहां के पर्वतीय क्षेत्र में रोपण कृषि की जाती है इस पठारी पर्वती क्षेत्र से गिरने वाली नदियां जलप्रपात बनाती है जिनका उपयोग जल विद्युत उत्पादन के लिए किया जाता है

तटवर्ती मैदानी प्रदेश

यह मैदान कच्छ प्रदीप से लेकर स्वर्णरेखा नदी तक 6000 किलोमीटर की दूरी में विस्तृत है इस मैदान का निर्माण नदियों द्वारा जमा किए गए अवसाद उसे होता है इस मैदानी प्रदेश को दो प्रमुख भागों में विभाजित किया जाता है वेस्टर्न कोस्टल प्लेन और ईस्टर्न कोस्टल प्लेन

1. पश्चिमी तटवर्ती मैदान:-

यह मैदान कब से कन्याकुमारी तक विस्तृत है यह सक्रिय मैदान है क्योंकि इस क्षेत्र की नदियां नंद बुक का निर्माण करती है अद्भुत निर्माण के प्रमुख कारण है नदी का छोटा मार्ग उच्च गति कठोर चट्टानों वाला तलवारी गतिविधियां यह मैदान लगभग 50 से 100 किलोमीटर छोड़े हैं इसकी औसत चौड़ाई 64 किलोमीटर है इस मैदानी भाग के विभिन्न प्रादेशिक विभाजन पाए जाते हैं

क. कच्छ के मैदान:-

इस मैदान का निर्माण सिंधु नदी द्वारा जमा किए गए अवसाद उसे होता है यह सोडियम समतल मैदान है जो वाली गतिविधियों के कारण यहां की मृदा में बहुत अधिक लोग नेता पाई जाती है तथा यह मैदान कृषि के लिए उपयोगी नहीं है

. काठियावाड़ के मैदान:-

इन मैदानों का निर्माण मांडव पहाड़ियों से निकलने वाली नदियों द्वारा होता है यह शंकर मैदान है

ग. गुजरात के मैदान:-

यह गुजरात के दक्षिण भाग में स्थित मैदान है इस मैदान का निर्माण माही साबरमती नर्मदा एवं तापी जैसी नदियों द्वारा होता है यह सोडियम समतल मैदान है जिनका उपयोग करने के लिए किया जाता है

घ. कोकण के मैदान:-

यह मैदान मुख्य रूप से महाराष्ट्र तथा गोवा में स्थित है यह संकरे पथरीले तथा उबर खबर मैदान है इस मैदान क्षेत्र में आम नारियल तथा काजू की खेती की जाती है इस बाग में होने वाली मानसून पूर्व वर्षा को अमर वर्षा कहते हैं जो आम की खेती के लिए लाभदायक होती है आम्र वर्षा कर्नाटक व केरल में होती है।

ङ. कन्नड़ के मैदान:-

यह मैदान मुख्य रूप से कर्नाटक में स्थित है इस मैदानी क्षेत्र में गिरते समय नदिया जलप्रपात बनाती हैं जैसे शरावती नदी यहां जोग जलप्रपात का निर्माण करती है जोग जलप्रपात को 0 सफाया महात्मा गांधी जलप्रपात भी कहते हैं इस मैदानी क्षेत्र में होने वाली मानसून पूर्व वर्षा को चेरी ब्लॉक में कहते हैं जो कॉफी की खेती के लिए लाभदायक होती है।

च. मालाबार के मैदान:-

यह मैदान मुख्य रूप से केरल में स्थित है यह छोड़े मैदान है तथा इनके चक्रवर्ती क्षेत्रों में लैगून जिले पाई जाती हैं जिन्हें स्थानीय भाषा में क्या कहते हैं यहां की प्रमुख जिले हैं वह बनाड़ अष्टम बूढ़ी पुन्नामाडा यहां प्रतिवर्ष नेहरू ट्रॉफी वल्लमकाली नौका दौड़ होती है

2. पूर्वी तटवर्ती मैदान:-

पूर्वी तटवर्ती मैदान स्वर्णरेखा से कन्याकुमारी तक स्थित है यह मैदान छोड़े हैं क्योंकि यहां की नदियां डेल्टा का निर्माण करती है इन मैदानों की चौड़ाई लगभग 100 से डेट 100 किलोमीटर या इससे अधिक पाई जाती है स्वर्णरेखा से कृष्णा नदी के बीच स्थित मैदान को उत्तरी सरकार कहते हैं कृष्णा नदी से कन्याकुमारी के बीच स्थित मैदान को कोरोमंडल तट कहते हैं इस मैदानी क्षेत्र के प्रादेशिक भाग भी हैं जैसे उत्कल के मैदान आंध्रा के मैदान तमिलनाडु के मैदान इत्यादि।

क. उत्कल के मैदान:-

यह मैदान मुख्य रूप से उड़ीसा में स्थित है इन मैदानों का निर्माण महानदी द्वारा होता है इन मैदानों के दक्षिण भाग में चिलिका झील स्थित है यह एक लैगून झील है यह भारत की सबसे बड़ी लवणीय झील है चिलिका झील एक प्रमुख आद्र भूमि क्षेत्र है अतः यहां रामसर सूची में सम्मिलित है।

ख. आंध्रा के मैदान:-

इन मैदानों का निर्माण गोदावरी तथा कृष्णा नदी जी द्वारा जमा किए गए अवसादो से होता है इनमें दोनों के मध्य भाग में मीठे पानी की झीले कोलेरू झील स्थित है इस मैदान के दक्षिण भाग में पुलिकट नामक लैगून झील स्थित है पुलिकट झील में श्रीहरिकोटा द्वीप स्थित है जिस पर सतीश धवन स्पेस सेंटर स्थित है

ग. तमिलनाडु के मैदान:-

इस मैदान का निर्माण कावेरी नदी द्वारा होता है कावेरी नदी के डेल्टा क्षेत्र का उपयोग चावल की खेती के लिए किया जाता है अतः इस मैदान को दक्षिण भारत का खाद्यान्न में कटोरा भी कहते हैं

दीप समूह प्रदेश

इस प्रदेश का निर्माण लक्षदीप तथा अंडमान निकोबार दीप समूह से होता है

1. अंडमान निकोबार दीप समूह:-

यह बंगाल की खाड़ी में स्थित 572 दीपों का समूह है यह ज्वालामुखी दीप है हिंदी पोको अराकान योमा पर्वत का ही भाग माना जाता है यह दीपेश्वरी के क्षेत्र के पास स्थित है तो यहां सदाबहार वन पाए जाते हैं यहां बहुत अधिक जैव विविधता पाई जाती है अतः यह हॉटस्पॉट में सम्मिलित है या बहुत सी जनजाति पाई जाती हैं जैसे जरावा सॉन्ग अंडमानी निकोबारी सेंटेंस प्लीज

2. लक्षदीप( प्रवाल दीप):-

कोरल पॉलिप नामक महासागरीय जीव जैक्सन ठेले एलॉय के साथ सहजीवी संबंध में रहता है यह जीव जयंती नीचे वालों को आवास व सेवाल इसे पोषण उपलब्ध करवाता है 200 मीटर की गहराई तक पाए जाने वाले इस जीव के कंकाल से बनी चट्टान प्रवाल भित्ति कहलाती है यह प्रवाल भित्ति महासागर के ऊपर दृश्य हो तो उन्हें कोरल आइसलैंड कहते हैं यह 36 दीपों का समूह है जो अरब सागर में स्थित है यह प्रवाल दीप है लक्ष्य दे में तीन प्रमुख दीप समूह है आमीन देवी कन्नौज और मिनी को मिनिकॉय

भारतीय मानसून

  1. मानसून शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के शब्द मौसम से हुई है जिसका अर्थ रितु होता है परंतु मानसून वास्तव में एक रितु नहीं बल्कि यह अर्ध स्थाई पवने होती है जो हर 6 महीने में अपनी दिशा में परिवर्तन करती है मानसून दोनों से प्रभावित क्षेत्रों में उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु पाई जाती है इस प्रकार की जलवायु वाले क्षेत्र में वार्षिक वर्षा का 80% गिरीश मृत्यु के दौरान 2 से 3 महीनों में प्राप्त होती है इन क्षेत्रों में उष्णकटिबंधीय वनस्पति पाई जाती है यह जलवायु मुख्य रूप से दक्षिण एशिया दक्षिण पूर्वी एशिया तथा उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में पाई जाती है मानसून निर्माण की प्रक्रिया को समझाने के लिए कई सिद्धांत दिए गए हैं पहला पहला सिद्धांत सिरसम और स्थापित परिकल्पना यह मानसून निर्माण की प्रक्रिया को समझाने के लिए दी गई पहली परिकल्पना है यह सिद्धांत एडमंड हैली द्वारा दिया गया है इसे उसमें सिद्धांत भी कहते हैं इस सिद्धांत के अनुसार मानसून निर्माण का प्रमुख कारण जल तथा स्थल का विवादित आपन है

ग्रीष्म ऋतु के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप हिंद महासागर की अपेक्षा अधिक गर्म हो जाता है अतः भारतीय उपमहाद्वीप पर निम्न दाब तथा हिंद महासागर पुस्तक का निर्माण होता है ताप प्रवणता के कारण मानसून होने दक्षिण पश्चिम से उत्तर पूर्व की ओर चलने लगती है यह दक्षिण पश्चिम मानसून को निकल आती है यह पुणे हिंद महासागर से भारतीय उपमहाद्वीप की ओर चलती है तथा वर्षा उत्पन्न करती है गिरीश में शीत ऋतु के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप के ठंडे हो जाने के कारण वहां उस गांव का निर्माण होता है इसकी तुलना में हिंद महासागर पर निम्मदा परिस्थितियां पाई जाती हैं तो उन्हें भारतीय उपमहाद्वीप से सागर की ओर चलती हैं इन्हें दक्षिण पूर्वी मानसून कहते हैं यह पवन ए शुष्क होती हैं तथा वर्षा उत्पन्न नहीं करती इन दोनों की एक शाखा बंगाल की खाड़ी से जल वास्तु ग्रहण करके कोरोमंडल तट पर शीत ऋतु के दौरान वर्षा उत्पन्न करती है इसे शीतकालीन मानसून कहते हैं।

सन स्थापित परिकल्पना की सीमाएं

  • यह परिकल्पना निम्नलिखित पर घटनाओं को समझा नहीं पाई-
  • भारतीय उपमहाद्वीप पर अप्रैल 10 मई के महीने के दौरान निम्न दाब बन चुका होता है परंतु इन महीनों में भारतीय उपमहाद्वीप पर वर्षा नहीं होती मानसून के आगमन की कोई तिथि निर्धारित नहीं है कभी मानसून जल्दी तो कभी देरी से प्रारंभ होता है भारतीय उपमहाद्वीप तथा हिंद महासागर के बीच हर वर्ष समानता पर उनका पाई जाती है परंतु हर वर्ष मानसून पौधों की तीव्रता तथा वर्षा की मात्रा में अंतर होता है।

इस परिकल्पना की सीमाओं को दूर करने के लिए नए सिद्धांत दिए गए हैं

2. आधुनिक परिकल्पना

1950 के दशक में फुल ऑन द्वारा आधुनिक प्रक्रिया दी गई थी सलोन के सिद्धांत को आईटीसी जैन सिद्धांत कहते हैं यह सिद्धांत के अनुसार मानसून निर्माण का प्रमुख कारण था परसों का विस्थापन है ग्रीष्म ऋतु के दौरान जून में आईटीसी ग्रैंड भारत के मध्य भाग पर 20 डिग्री से 25 डिग्री नॉर्थ अक्षांश के बीच स्थापित हो जाता है उत्तरी गोलार्ध की एचटीएचपी भी 40 डिग्री से 45 डिग्री नार्थ अक्षांश के बीच स्थापित हो जाती है दक्षिणी गोलार्ध की एचटीएचपी डिग्री से 15 डिग्री दक्षिणी स्थापित हो जाती है एचपी से आए है

दक्षिणी गोलार्ध की एच डी एच पी बी से आई पी सी जेड की और अपनी चलती हैं दक्षिणी गोलार्ध जब यह पहने उत्तरी गोलार्ध में प्रवेश करती हैं तो कोरिओलिस बल के कारण इनकी दिशा दक्षिण पश्चिम से उत्तर पूर्व हो जाती है यह पवने महासागर महासागर से उपमहाद्वीप चलती हैं तथा जलवा स्कोर ग्रहण करके ग्रीष्म ऋतु में वर्षा उत्पन्न करती हैं शीत ऋतु के दौरान भारत पर उतरी गोलार्ध की एचटीएचपी भी स्थापित हो जाती है तथा जब पहने एचटीएचपी भी से आईटीसी जेड की ओर चलती है तो वह उपमहाद्वीप से महासागर की ओर चलना प्रारंभ कर देती है यह पवनेश उसको होती हैं अजीत दौरान नहीं करती इन्हें उत्तर-पूर्वी मानसून करते हैं।

मानसून को प्रभावित करने वाले कारक

1. जेट स्ट्रीम:-

यह उच्च वायुमंडल में चलने वाली पवने है जो अत्यधिक तिरुपति वाली होती हैं तथा पश्चिम से पूर्व की ओर विसापुर सर्पाकार मार्ग में चलती हैं यह तो 29 डिग्री तथा 7 डिग्री अक्षांश क्षेत्रों के ऊपर बैठती हैं शीत ऋतु में लेटेस्ट की गति बहुत अधिक होती है तथा यह अत्यधिक प्रबल होती है भारतीय मानसून को उष्णकटिबंधीय जेट स्ट्रीम प्रभावित करती है

उपोषणीय कटिबंधीय पश्चिमी जेट स्ट्रीम

भारतीय मानसून उपोष्ण कटिबंधीय पांचवा जेटस्ट्रीम के प्रभाव को एमटीएन ने समझाया

यह जेटस्ट्रीम शीत ऋतु के दौरान पश्चिम से पूर्व बहते हुए हिमालय पर्वत से टकराती है

हिमालय पर्वत से टकराने के बाद यह दो शाखाओं में बढ़ जाती है इसकी उतरी साका तिब्बत के पठार पर बहती है तथा इसकी दक्षिणी शाखा भारत की उत्तरी मैदानों पर बहती है यह जेट स्ट्रीम भारतीय उपमहाद्वीप पर उस दांत की तीव्रता को बढ़ती है

इस प्रबल उच्च दाब के कारण वायु का अवतरण होता है जो शीत ऋतु के दौरान उसके परिस्थितियों का निर्माण करती है अतः शीत ऋतु के दौरान भारत में वर्षा नहीं होती ग्रीष्म ऋतु के आगमन के साथ जेटस्ट्रीम उत्तर की ओर स्थापित हो जाती है जून के महीने में यह जेटस्ट्रीम पूर्ण रूप से भारत के उत्तर में विस्थापित हो जाती है अतः जून के महीने में मानसून प्रारंभ होता है क्योंकि भारत में बरसात तब तक नहीं हो पाती जब तक जेटस्ट्रीम दक्षिण शाखा का प्रभाव भारत से नहीं हटता।

अप्रैल तथा मई के महीने के दौरान निम्न दाग होने के बावजूद जेटस्ट्रीम की दक्षिणी शाखा के कारण वर्षा नहीं हो पाती

मानसून उस तिथि को प्रारंभ होता है जब जेटस्ट्रीम भारत से हट जाती है।

पश्चिमी विक्षोभ :-

शीत ऋतु के दौरान STWJS भूमध्य सागर पर बनने वाले फोटो चक्रवर्ती को पश्चिम से पूर्व स्थापित करते हुए पश्चिम एशिया तथा भारतीय उपमहाद्वीप की ओर ले जाती है इन छोटे चक्रवर्ती के कारण उत्तर पश्चिम भारत में वर्षा एवं बर्फबारी होती है शीत ऋतु में होने वाली उस वर्षा को माउथ कहते हैं माउंट रवि की फसलों के लिए लाभदायक होती है इस परिघटना को पश्चिमी विक्षोभ कहते हैं।

2. तिब्बत का पठार:-

तिब्बत का पठार हिमालय पर्वत बताओ कुल्लू इंसान पर्वत चीन के बीच स्थित है

ग्रीष्म ऋतु के दौरान यह पठार विस्तृत क्षेत्र होने के कारण अत्यधिक गर्म हो जाता है अतः इस पठारी क्षेत्र से वायु का संगठन होने लगता है यह वायु तिब्बत के पठार के ऊपर वायुमंडल में एकत्रित हो जाती है तथा यह वायु विश्वरी के चित्र की ओर बढ़ने लगती है यह वायु दक्षिण में हिंद महासागर पर जाकर अवतरित होती है तथा अवतरित होने के बाद है वायु मानसून पौधों के साथ भारतीय उपमहाद्वीप की ओर बढ़ती है बताइए भारतीय मानसून की तीव्रता को बढ़ाती है तिब्बत के पठार से उतरे के क्षेत्र की ओर बढ़ने वाली वायु की एक शाखा को पुलिस बल के प्रभाव के कारण पूर्व से पश्चिम बहने लगती है इससे पूर्व आर्टिस्ट का निर्माण होता है यह अस्थाई जेटस्ट्रीम है जो हिंद महासागर तथा भारतीय उपमहाद्वीप के बीच पाई जाने वाली जनता को पढ़ाती है आगे बढ़ने के कारण मानसून की गति बढ़ जाती है जो मानसून को बढ़ाने में सहायक होती है तथा प्रभाव के बारे में पी कोटेश्वर हमने बताया

3. अल नीनो:-

यह स्पेनिश भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है बालक

हर 2 से 5 साल के बाद ठंडी पेरू धारा के स्थान पर एक गर्म महासागरीय धारा प्रतिस्थापित हो जाती है जिसे अलनीनो कहते हैं

अलनीनो की परिघटना क्रिसमस के आसपास होती है अतः इसे यीशु का शिशु भी कहा जाता है

अलनीनो के दौरान प्रशांत महासागर तथा हिंद महासागर में पाई जाने वाली दाग परिस्थितियों में परिवर्तन होता है जिसके कारण भारतीय मानसून पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है

सामान्य परिस्थितियां:-

सामान्य परिस्थितियों के दौरान दक्षिणी अमेरिका के पश्चिम तट के पास ठंडी पर उतारा तथा आस्ट्रेलिया के पूर्व तट के पास गरम ऐसी पाई जाती है अतः दक्षिणी प्रशांत महासागर के पूर्वी भाग में उसका तथा पश्चिमी भाग में निम्न दाब परिस्थितियां पाई जाती हैं

इस दौरान दक्षिणी हिंद महासागर में निम्न दाब परिस्थितियां होती हैं अतः दक्षिणी प्रशांत महासागर के पूर्वी भाग में वायु का अवतरण तथा पश्चिमी भाग में वायु का सम्मान होता है इस दौरान दक्षिण हिंद महासागर में भी वायु का सम्मान होता है अतः यहां से गुजरने वाली मानसून पहुंचने जलवाष्प ग्रहण कर लेती है तथा दक्षिण एशिया एवं दक्षिण पूर्वी एशिया में भारी वर्षा उत्पन्न करती है

अलनीनो की परिस्थिति :-

अलनीनो के दौरान दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तट के पास गर्म महासागरीय धारा स्थापित हो जाती है इस धारा के कारण दक्षिण प्रशांत महासागर तथा दक्षिणी हिंद महासागर में दाब परिस्थितियां परिवर्तित हो जाती हैं पूर्वी प्रशांत महासागर में निम्न दाब तथा पश्चिमी प्रशांत महासागर में उच्च दाब परिस्थितियां पहनती हैं।

एयरटेल दक्षिण अमेरिका के तट के पास वायु का संवहन होता है एवं आस्ट्रेलिया के पूर्व पति के पास वायु का अवतरण होता है अतः दक्षिण हिंद महासागर में भी हवाई का अवतरण होता है अल नीनो की परिस्थिति के दौरान दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी भाग में वर्षा उत्पन्न होती है तथा पूर्व आस्ट्रेलिया में सूखे की स्थिति का निर्माण होता है इस दौरान हिंद महासागर से गुजरने वाले मानसून पुणे अधिक जलवाष्प ग्रहण नहीं कर पाती अतः दक्षिणी एशिया तथा दक्षिण पूर्व एशिया में मानसून वर्षा की मात्रा कम हो जाती है अलनीनो का भारतीय मानसून पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है

वॉकर चक्र:-

दक्षिणी प्रशांत महासागर के पूर्वी तथा पश्चिमी भाग के बीच पाए जाने वाले दा प्रवणता के कारण दक्षिण अमेरिका तथा आस्ट्रेलिया के बीच होकर चक्र का निर्माण होता है सामान्य परिस्थितियों के दौरान वह कब चक्र की दिशा क्लॉक वाइज होती है तथा अलनीनो के दौरान को पर चक्कर में वायु का चक्र घड़ी की विपरीत दिशा में होता है वह कर चक्र की दिशा में परिवर्तन अलनीनो के कारण होता है आता है इसे अलनीनो दक्षिणी दोलन कहते हैं

दक्षिणी दोलन सूची का :-

यह सूचकांक अलनीनो के निर्माण एवं त्रिविता के बारे में बताता है इस सूचकांक के अंतर्गत ताहिती के दाग में से डार्विन के दाग को घटाया जाता है यदि उत्तर जीरो या 0 से अधिक होता है तो वह सामान्य परिस्थितियों का सूचक होता है सुनने से कम उत्तर आने पर अल्लीनों के निर्माण का संकेत मिलता है।

अलनीनो का प्रभाव :-

  1. विषुवत रेखीय वायुमंडलीय परिसंचरण में विकृति आ जाती है वह कर चक्र की दिशा बदलना
  2. दक्षिण हिंद महासागर तथा दक्षिण प्रशांत महासागर के जल के वाष्पीकरण में अनियमितता आ जाती है
  3. मानसून प्रभावित क्षेत्रों में सामान्य से कम वर्षा प्राप्त होती है
  4. दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी तट के पास भारी वर्षा प्राप्त होती है
  5. दक्षिण प्रशांत महासागर के पूर्वी भाग में जल का तापन तापमान बढ़ने के कारण पादप बलवा को की मात्रा कम हो जाती है जिसके कारण मछलियों की संख्या कम हो जाती है अतः अलनीनो दक्षिण अमेरिका के मत्स्य उद्योग को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है
  6. मानसून प्रभावित क्षेत्र में कृषि उत्पादन कम होता है जिसके कारण कृषि आधारित उद्योगों को नुकसान होता है

4. ला निना:-

  • यह स्पेनिश भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है बालिका
  • लनीना के दौरान पेरू धारा के स्थान पर सामान्य से अधिक ठंडी धारा आकर स्थापित हो जाती है अतः मानसून प्रभावित क्षेत्रों में सामान्य से अधिक वर्षा प्राप्त होती है
  • ला नीना की परिघटना सामान्यत अलनीनो के बाद होती है

ला नीना के निर्माण की प्रक्रिया :-

  1. अलनीनो के दौरान प्रशांत महासागर के पूर्वी भाग में भारी वर्षा है मंत्रियों के तीसर वायु का संवहन होता है
  2. और कर चक्कर की गति बहुत तेज होती है जिसके कारण व्यापारिक पवनें कमजोर पड़ जाती है
  3. भारी वर्षा के कारण दक्षिण प्रशांत महासागर के पूर्वी भाग में जलस्तर अत्यधिक बढ़ जाता है अतः जल पूर्व से पश्चिम की ओर बहना प्रारंभ करता है
  4. कुछ गर्म जल के विस्थापन से सम्मोहन की गति कम हो जाती है तथा अलनीनो कमजोर पड़ जाती है
  5. व्यापारिक पवने पुन स्थापित हो जाती है एवं दक्षिणी प्रशांत महासागर के पूर्व भाग से गर्म जल को पूर्ण रूप से विस्थापित कर देती है
  6. गरम दल के विस्थापन के बाद महासागर के आंतरिक भाग से ठंडे जल का अवकलन होता है अतः पेरू धारा के स्थान पर सामान्य से अधिक ठंडा जल स्थापित हो जाता है
  7. ला नीना के दौरान दक्षिणी प्रशांत महासागर के पूर्वी भाग में अत्यधिक त्रिभुज दा परिस्थितियों का निर्माण होता है अतः आस्ट्रेलिया के पूर्व तट के पास तथा दक्षिण हिंद महासागर के प्रबल निम्न दाब का निर्माण होता है
  8. यहां से गुजरने वाली मानसून कौन है बहुत अधिक मात्रा में जलवाष्प ले जाती है तथा मानसून प्रभावित क्षेत्रों में सामान्य से अधिक वर्षा प्राप्त होती है

5. हिंद महासागरीय दिध्रुव:-

  • हिंद महासागर के पूर्वी तथा पश्चिमी भाग में विवादित आपन पाया जाता है अतः जब हिंद महासागर के पूरी भाग में गर्म जल होता है तो पश्चिमी भाग में उसकी उपेक्षा ठंडा जल स्थित होता है तथा जब पश्चिमी भाग में गर्म जल होता है तथा पूरी भागवत ठंडा जल पाया जाता है।
  • अलनीनो की स्थिति के दौरान यदि हिंद महासागर के पश्चिम भाग में गर्म जल स्थित होता है तो भारत तथा पूर्वी अफ्रीका में सामान्य वर्षा प्राप्त होती है अतः यदि हिंद महासागरीय दीपू भारत के पक्ष में होता है तो भारत पर अल्लीनों का नकारात्मक प्रभाव नहीं नजर आता परंतु इस दौरान दक्षिणी पूर्वी एशिया तथा उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में सूखे की स्थिति का निर्माण होता है

उष्णकटिबंधीय चक्रवात

उष्णकटिबंधीय महासागर में बनने वाले निम्न दाब केंद्र होते हैं जिनके चारों ओर वायु चक्रवात गति करते हुए ऊपर की ओर उठती है जिससे बादल निर्माण एवं भारी वर्षा प्राप्त होती है

चक्रवात के निर्माण की प्रक्रिया

  1. उष्णकटिबंधीय चक्रवात का निर्माण महासागर में स्थित दीप ऊपर होता है बीट क्षेत्र महासागरीय क्षेत्र की अपेक्षा अधिक गर्म हो जाते हैं अतः दीपू पर निम्न दाब केंद्र बनता है तथा महासागर क्षेत्र में इसकी अपेक्षा उच्च दाब पाया जाता है दाब प्रवणता के कारण वायु उस गांव से कम दाम की ओर बढ़ती है।
  2. उच्च दाब से निम्न दाब की ओर बढ़ने वाली वायु पर कोरिओलिस बल लगता है जिसके कारण यह निम्न दाब केंद्र के चारों ओर चक्रवात गति करने लगती है उत्तरी गोलार्ध में चक्रवात की दिशा घड़ी की विपरीत दिशा में होती है तथा दक्षिणी गोलार्ध में चक्रवार्थी गति घड़ी की दिशा में होती है।
  3. चक्रवात गति करते हुए वायु गर्म होकर ऊपर की ओर उठने लगती है ऊपर उठने वाली वायु जल वास्तु लेकर जाती है जिसके कारण संगठन की क्रिया एवं वादल निर्माण होता है
  4. संघनन के दौरान गुप्त उस्मा मुक्त होती है जिसके कारण चक्रवार्थी गति एवं क्रूरता बढ़ जाती है उसमें कटिबंधीय चक्रवात गुप्त उस्मा से ऊर्जा प्राप्त करते हैं अतः उन्हें उसमें इंजन भी कहते हैं अतः चक्रवात का प्रभाव गुप्त उस्मा के कारण केवल तटवर्ती क्षेत्रों में रहता है
  5. इस प्रकार दी पर एक निम्न त्रिविता के चक्रवात का निर्माण होता है जिसे अव दाब कहते हैं व्यापारियों के कारण यह चक्रवात महासागरीय क्षेत्रों पर विस्थापित हो जाता है महासागरीय क्षेत्र में चक्रवात को मिलने वाली जलवाष्प की मात्रा बढ़ जाती है जिसके कारण संगठन के दौरान अत्यधिक गुप्त ऊष्मा मुक्त होती है अधिक गुप्त उस्मा के कारण चक्रवात की तीव्रता बढ़ जाती है चक्रवार्थी की गति लगभग 180 से 250 किलोमीटर प्रति घंटा हो जाती है।
  6. यह उचित रिता का चक्रवात व्यापारी पवनों के प्रभाव के कारण महाद्वीपों के पूर्व चैट से टकराता है। यह चक्रवात तटवर्ती क्षेत्र में भारी वर्षा उत्पन्न करते हैं गुप्त उस्मा के अभाव के कारण यह चक्रवाढ धीरे-धीरे समाप्त होने लगते हैं।

चक्रवात की दीवार

चक्रवात के निम्न दाब केंद्र के चारों ओर स्थित परिधि क्षेत्र को चक्रवात की दीवार कहते हैं वायु का संवहन बादल निर्माण आदि चक्रवार्थिकी दीवार वाले क्षेत्र में होते हैं अतः चक्रवात के दौरान प्राप्त होने वाली वर्षा चक्रवात की दीवार वाली क्षेत्र में होती है

चक्रवात की आंख

यह निम्न दाब केंद्र होता है जिसका व्यास 50 से 80 किलोमीटर होता है इस चित्र में सामान्यतः मौसम परिस्थितियां पाई जाती है अतः चक्रवात के केंद्र में स्थित शांत चित्र को चक्रवात की आंख कहते हैं

चक्रवात का लैंडफॉल:-

जब चक्रवात तटवर्ती क्षेत्रों से आकर टकराता है तो उसे चक्रवात का लैंडफाॅल कहते हैं।

चक्रवात के विभिन्न नाम

  • हिंद महासागर =चक्रवात
  • अटलांटिक महासागर= हरिकेन
  • प्रशांत महासागर= टाइफून
  • ऑस्ट्रेलिया= विल्ली विल्ली

चक्रवात के प्रभाव

  1. चक्रवात में वायु की तीव्रता अधिक होने के कारण बहुत अधिक विनाश होता है
  2. चक्रवर्ती के दौरान बहुत अधिक मात्रा में सम्मोहन होता है जिसके कारण कम समय में भारी वर्षा प्राप्त होती है जो अत्यधिक नुकसानदायक होती है
  3. चक्रवर्ती के कारण महासागर क्षेत्रों में ऊंची लहरें उठती हैं जो टाटावर्ती क्षेत्र पर बाढ़ लेकर आती हैं इस परिघटना को बढ़ता तूफान कहते हैं। भारत में अधिकतर चक्रवात अक्टूबर-नवंबर में आते हैं।

मृदा एंड मिट्टी

  • मृदा का निर्माण चट्टानों के अपक्षय से होता है
  • मर्दा में कार्बनिक तथा अकार्बनिक तत्व पाए जाते हैं।
  • मर्दा के मुख्य घटक जो पदार्थ खनिज जल तथा वायु होते हैं
    • मृदा के निर्माण को बहुत से कार्य प्रभावित करते हैं जो निम्नलिखित हैं

1.जनक सामग्री:-

जिन चट्टानों से मृदा का निर्माण होता है उस चट्टान के गुण मर्दा में पाए जाते हैं जैसे लावा की चट्टानों के अपेक्षित से काली मृदा का तथा अग्नि एवं कांति चट्टानों से लोहे तत्व युक्त लाल मर्दा का निर्माण होता है

2. स्थिति:-

स्थिति के आधार पर मरदा दो प्रकार की होती है

अ. क्षेत्रीय

ब. क्षेत्रीय

अ. क्षेत्रीय मृदा:-

क्षेत्रीय मृदा में जनक सामग्री के गुना अधिक पाए जाते हैं क्षत्रिय मतदान के कण मोटे होते हैं इस मृदा में मृदा परिच्छेदिका का निर्माण होता है

ब. अक्षेत्रीय मृदा:-

इस मृदा में जनक सामग्री के गुण पाए जाते हैं इस मृदा की परिवारिक होते हैं उसकी जलग्रहण क्षमता अधिक होती है। इस मृदा में मृदा परिच्छेदिका का निर्माण नहीं हो पाता।

3. जैव पदार्थ:-

मृदा में मृतक जीव जंतु एवं पेड़ पौधों के अवशेष पाए जाते हैं मृदा में पाए जाने वाले जीवाणु इंजॉय पदार्थों का उद्घाटन करते हैं जिससे उमस का निर्माण होता है उमेश मर्दा की उत्पादकता को बढ़ाता है।

4. उच्चावच:-

पर्वतों के डाल वाले क्षेत्र में मरदह की पतली पाई जाती है तथा मैदानी क्षेत्रों में अधिक जमाव के कारण बढ़ता है कि प्रथम उठी पाई जाती है मर्दा के संख्या को प्रभावित करता है

5. जलवायु:-

जनवरी के दोनों कटक तापमान तथा वर्षा मुर्दा को प्रवाहित करते हैं। जिन क्षेत्रों में तापमान अधिक होता है वहां जीवन और अधिक सक्रिय कर रखो बस का निर्माण करते हैं कम तापमान वाला क्षेत्र में जीवाणु कम सक्रिय हो जाते हैं इस कारण उमस अमल का निर्माण होता है। वर्षा- अधिक वर्षा वाले क्षेत्र में जल में घुलनशील तत्व मर्दा की निचली परतो में चले जाते हैं जिसके कारण मृदा की उत्पादकता कम हो जाती है कम वर्षा वाले क्षेत्र में वाष्पीकरण अधिक होता है जिसके कारण बढ़ता गिला नेता बढ़ जाती है अधिक तापमान तथा अधिक वर्षा वाले क्षेत्र में दोनों अत्यधिक सक्रिय हो जाते हैं उसका निर्माण करने के बाद उसे नष्ट कर देते हैं।

6.समय:

समय मरदा की परिपक्वता तथा मरदा की परिच्छेदिका के निर्माण को प्रभावित करता है

मृदा निर्माण में कितना समय लगता है मरद उतनी ही परिपक्व होती है

7. मानवीय गतिविधियां:-

मानव गतिविधियों के कारण मृदा की गुणवत्ता खराब होती जा रही है। निम्नीकरण और वनोन्मूलन के कारण मृदा का अपरदन अधिक होने लगा है अधिक सिंचाई के कारण मृदा की लवणता शुष्क क्षेत्रों में बढ़ती जा रही है अति चारण अति पशु चारण के कारण भी मृदा का अपरदन बढ़ गया है।

मृदा के प्रकार :-

1. जलोढ़ मृदा:-

  • इस मृदा का निर्माण जल्द द्वारा लाए गए अवसादो से होता है इसे निक्षेपण मर्द अभी कहते हैं यह क्षेत्रीय मर्दा है इस मृदा के कन बारिक होते हैं अतः इसकी जल ग्रहण क्षमता अधिक होती है इस मृदा में मृदा परिच्छेदिका का निर्माण नहीं हो पाता खादर तथा बांगर इस मृदा के दो उपकार हैं इस मृदा में नाइट्रोजन व पोटाश तथा उमेश की मात्रा सीमित होती है इस मृदा में पोटाश की उचित मात्रा पाई जाती है यह मरदा मुख्य रूप से उतरी मैदानी प्रदेश तटवर्ती मैदानी प्रदेश में पाई जाती है यह भारत का सबसे बड़ा ब्रदर समूह है।

2. काली मृदा:-

  • इस मृदा का निर्माण लावा के अपेक्षा से होता है यह मृदा कपास की खेती के लिए उपयोगी होती है अतः इसे कपाशी मरता तथा रैंकर भी कहते हैं यह मरण में मरता है या मृदा जल ग्रहण करने तथा छोड़ने में समय लेती है जल ग्रहण करने के बाद यह लंबे समय तक जल धारण करके रखती है यह मृदा वर्षा आधारित प्रश्नों को उसको ऋतु के दौरान नाम उपलब्ध करवाती है जल ग्रहण करने पर यह मुद्दा खुलकर चिपचिपी हो जाती है तथा सूखने पर यह मृदा सिकुड़ जाती है तब उसके ऋतु के दौरान इस मृदा का निर्माण होता है इसलिए इस मृदा को स्वस्थ जुदाई वाली मर्दा भी कहते हैं इस मृदा में नाइट्रोजन कोटा अस्पताल उमस की मात्रा सीमित पाई जाती है इस मृदा में पोटाश की मात्रा उचित पाई जाती है इस मृदा में अन्य तत्व पाए जाते हैं मैग्नीशियम एलुमिनियम लाइन आयरन आदि यह मुख्य रूप से प्रायद्वीपीय भारत के उत्तर पश्चिम भाग में पाई जाती है इस मृदा का रंग काला रंग टाइटैनिफरस मैग्नेटाइट के कारण होता है।

3. लाल पीली मृदा:-

  • इस मृदा का निर्माण अग्नि तथा कायांतरित चट्टानों से होता है इसमें लौह तत्व की मात्रा अधिक पाई जाती है जिसके कारण इसका रंग लाल नजर आता है जल ग्रहण करने पर यह मर्दा पीले रंग की नजर आती है इस मृदा में नाइट्रोजन पोटाश की मात्रा सीमित पाई जाती है इस मृदा में पोटाश की मात्रा उचित पाई जाती है यह मुख्य रूप से उत्तरी पूर्वी राज्य भारत के दक्षिणी भाग में पाई जाती है मोटे कन वाली लाल पीली मृदा अधिक उपजाऊ नहीं होती तथा भारी कव्वाली लाल पीली मृदा उपजाऊ होती है।

4. लेटराइट मरदा:-

  • यह मृदा अधिक तापमान तथा अधिक वर्षा वाले क्षेत्र में पाई जाती है इस मृदा का निर्माण निक्षालन की प्रक्रिया द्वारा होता है इससे प्रक्रिया के दौरान जल में घुलनशील तक तत्व मृदा की निचली परतो में चले जाते हैं जिसके कारण ऊपरी परत में लौह एवं एलुमिनियम के ऑक्साइड की मात्रा अधिक पाई जाती है इस मृदा में नाइट्रोजन पोटाश की मात्रा सीमित पाई जाती है ऑक्साइड की मात्रा अधिक होने के कारण सूखने पर यह मुद्दा कठोर हो जाती है अतः इस मृदा का उपयोग ईटों के निर्माण के लिए किया जाता है इस मृदा का नाम लेटिन भाषा के शब्द लेटर से बना है जिसका अर्थ होता है ईद यह मृदा मुख्य रूप से मेघालय पठारी क्षेत्र तथा पश्चिमी घाट के ढाल वाले चित्र में पाई जाती है।

5. शुष्क मृदा:-

  • यह मृदा उच्च तापमान तथा कम वर्षा वाले शुष्क तथा अर्ध शुष्क क्षेत्रों में पाई जाती है यह बालू प्रकृति की मृदा होती है अतः इस मृदा की जलग्रहण क्षमता कम होती है इस मृदा में नाइट्रोजन कैल्शियम तथा उमेश की मात्रा सीमित होती है तथा इस में कोटेशन की मात्रा अधिक पाई जाती है निचली परतो में सोने की मात्रा बढ़ने के कारण कंकर की एक परत पाई जाती है जिसके कारण निचले पदों में जल का रिसाव सीमित होता है नियमित सिंचाई सुविधा उपलब्ध करवाने पर इस मृदा का उपयोग कृषि के लिए किया जा सकता है यह मुख्य रूप से पश्चिमी राजस्थान पंजाब हरियाणा तथा गुजरात के कुछ भागों में पाई जाती है

6. लवणीय तथा क्षारीय मृदा:-

  • यह मृदा उन शुष्क क्षेत्र में पाई जाती है जहां सिंचाई सुविधा एवं रासायनिक उर्वरकों का उपयोग अधिक किया जाता है इस मृदा को रेड कलर तथा उसे भी कहते हैं इस मृदा में किसी का तो क्रिया के कारण ऊपरी परत में लोगों की सांद्रता अधिक पाई जाती है तथा एक सफेद परत का निर्माण होता है इस मृदा में नाइट्रोजन कैल्शियम की मात्रा अधिक पाई जाती है तथा नाइट्रोजन पोटेशियम की मात्रा अधिक पाई जाती है तथा नाइट्रोजन पोटेशियम उसकी मात्रा सीमित पाई जाती है इस प्रकार की मृदा उन तटवर्ती क्षेत्रों में पाई जाती है जहां जवारे गतिविधियां अधिक होती है जैसे कच्छ का रण यह मुद्दा मुख्य रूप से हरित क्रांति से प्रभावित क्षेत्र में पाई जाती है जैसे पंजाब हरियाणा यूपी जिप्सम तथा रॉक फास्फेट के उपयोग द्वारा इस मृदा की लवणता एम सरिता को कम किया जा सकता है।

7. पीटमय मृदा:-

  • यह मृदा जलमग्न स्थिति में पाई जाती है इसे दलदली मर्दा भी कहते हैं जल मग्न स्थिति में होने के कारण इस मृदा में वायुमंडल से ऑक्सीजन का आदान-प्रदान नहीं हो पाता इस मृदा में वनस्पति का विकास अधिक होता है इसलिए यहां जैव पदार्थों की मात्रा एवं अधिक पाया जाता है इस मृदा में नाइट्रोजन पोटेशियम की मात्रा सीमित है में पोटाश की मात्रा अधिक पाई जाती है यह मर्दा मुख्य रूप से तराई क्षेत्र और डेल्टा क्षेत्र तटवर्ती क्षेत्र मातृभूमि क्षेत्र में पाई जाती है इस मृदा का उपयोग मुख्य रूप से चावल की खेती के लिए किया जाता है जैसे उत्तराखंड का दक्षिणी भाग बिहार की उत्तरी भाग तटवर्ती क्षेत्र।

8. पर्वतीय एवं वन मृदा:-

  • पर्वतीय क्षेत्र में ऊंचाई बढ़ने के साथ जलवायु परिस्थितियां बदलती है जिसके कारण विभिन्न प्रकार की मृदा पाई जाती है पर्वतों के हिमाचली क्षेत्रों में मृदा में हुमिक एसिड की मात्रा अधिक पाई जाती है पर्वतों के वनाच्छादित क्षेत्र में मृदा में उमस पाया जाता है पर्वतों के ढाल वाले क्षेत्रों में मृदा की परत पतली पाई जाती है अतः पर्वतों के डाल पर रोपण कृषि की जाती है गाड़ी क्षेत्रों में उपजाऊ मोटी परत वाली मृदा पाई जाती है पर्वतीय एवं वन वर्धा में नाइट्रोजन पोटाश की मात्रा से मित्रता पोटाश की मात्रा अधिक पाई जाती है यह मृदा मुख्य रूप से उत्तरी तथा दक्षिणी भारत के पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती है।

मृदा सरक्षण

मृदा के निर्माण में अत्यधिक लंबा समय लगता है अतः मृदा संरक मृदा की प्रमुख समस्याएं अपरदन निम्नीकरण है जो प्रकृति कारणों एवं मानव गतिविधियों के कारण होता है जैसे वर्षा दोहन भूस्खलन वनोन्मूलन अत्यधिक सिंचाई तथा अति चारण ण करना आवश्यक है

मृदा सरक्षण के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं

1. मल्च बनाना:-

इस पद्धति के अंतर्गत अनावृत भूमि को जैव पदार्थों से ढका जा सकता है जैसे घास फूस आदि इससे मर्दा में नमी बनी रहती है तथा मृदा का अपरदन भी कम होता है।

2. समोचरेखीय जुताई:-

पर्वतों के डायल वाले क्षेत्र में संबोध रेखा के समांतर जुताई की जाती है इससे जल के बहाव के कारण होने वाला मृदा अपरदन कम होता है।

3. अंतर फसली करण:-

इस पद्धति के अंतर्गत एकांतर कतारों में विभिन्न प्रकार की फसलें उगाई जाती है यह पद्धति मृदा की गुणवत्ता को बनाए रखती है तथा मृदा संरक्षण में सहायक होती है।

4. वेदिका कृषि:-

इस पद्धति के अंतर्गत पर्वतों की डाल पर सीडी नुमा कृषि की जाती है इससे पर्वतीय क्षेत्र में कृषि भूमि प्राप्त होती है तथा मृदा सरक्षण होता है

5. समोचरेखीय रोधिकाएँ:-

पर्वतों के ढाल वाले क्षेत्रों में समोच रेखा पर पत्थर या मिट्टी द्वारा रोधिका बनाई जाती है। इस रोधिका के ठीक आगे खाई बनाई जाती है। इस पद्धति से ढाल वाले क्षेत्रों में जल के बहाव होने वाला मृदा अपरदन कम होता है।

6. पट्टीदार कृषि:-

इस पद्धति के अंतर्गत फसल के बीच में घास कि पटिया विकसित की जाती है।यह पद्धति उन क्षेत्रों में उपयोग में ली जाती है जहां पवनों की गति बहुत तीव्र होती है।इससे पवनों द्वारा होने वाला मृदा अपरदन कम होता है ।यह पद्धति मुख्य रूप से शुष्क एवं तटवर्ती क्षेत्रों में उपयोग की जाती है।

7.रक्षक मेखलाएँ:-

इसके अंतर्गत वृक्षों की एक कतार विकसित की जाती है। इससे पौधों की गति के कारण होने वाला मृदा अपरदन कम होता है।

वनस्पति

वनस्पति के विकास को विभिन्न कार्य प्रभावित करते हैं जैसे

1.उच्चावच:-

मैदानी क्षेत्र में वनस्पति का विकास अधिक होता है पथरीली उबर खबर क्षेत्र में वनस्पति का विकास कम होता है और तटवर्ती क्षेत्रों में विशेष प्रकार की वनस्पति पाई जाती है जैसे मेग्रोव।

2. मृदा:-

लेटराइट मर्दा में वनस्पति का विकास कम होता है तथा शुष्क मृदा में कांटेदार वनस्पति का विकास होता है वह जलोढ़ मृदा में वनस्पति का विकास अधिक होता है।

3. जलवायु:-

तापमान तथा वर्षा वनस्पति के विकास को प्रभावित करते हैं वह अधिक तापमान वाले क्षेत्रों में उष्णकटिबंधीय वनस्पति का विकास होता है जैसे सागवान , साल।

4. सूर्य का प्रकाश:-

जहां सूर्य का प्रकाश अधिक प्राप्त होता है वहां वनस्पति का विकास अधिक होता है उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में शीतोष्ण कटिबंध क्षेत्रों से अधिक वनस्पति का विकास होता है इसी कारण से हिमालय के दक्षिण डाल पर वनस्पति का विकास उतरी दाल की अपेक्षा अधिक होता है।

क. उष्णकटिबंधीय सदाबहार वनस्पति:-

यह वनस्पति अधिक तापमान 26 डिग्री से 27 डिग्री सेंटीग्रेड तथा अधिक वर्षा 200 सेंटीमीटर वाले क्षेत्र में पाई जाती है यह वनस्पति किसी एक ऋतु में एक साथ अपने पत्ते नहीं गिराती अतः यह सदाबहार बनी रहती है अनुकूल परिस्थितियों होने के कारण यहां सगन वनस्पति का विकास होता है एवं बहुत अधिक जैव विविधता पाई जाती है वनस्पति अधिक होने के कारण आपके लिए प्रतिस्पर्धा करती है यहां ऊंचे वृक्षों 45 मीटर का विकास होता है यहां कठोर लकड़ी वाले वृक्ष पाए जाते हैं इस वनस्पति का वाणिज्यिक संभव नहीं है इस वनस्पति की प्रजातियां हैं जैसे महोगनी एबोनी रोजवड सफेद केदार आदि आदि यह वनस्पति मुख्य रूप से उत्तरी पूर्वी राज्य तथा पश्चिमी घाट में पाए जाते हैं यह अंडमान निकोबार दीप समूह में भी पाई जाती है।

ख. उष्णकटिबंधीय पतझड़ वनस्पति:-

यह वनस्पति उच्च तापमान तथा 75 से 200 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्र में पाई जाती है इसे मानसून वनस्पति भी कहते हैं यह वनस्पति प्रजातियां एक साथ इस ग्रुप में अपनी पत्नी गिराती हैं अतः उन्हें पतझड़ वनस्पति भी कहते हैं यह रूप से अधिक महत्वपूर्ण वनस्पति है वर्षा के आधार पर विश्व अनुसूची को दो प्रकार आ जाते हैं जैसे:-

1. उष्णकटिबंधीय आदर पतझड वनस्पति:-

यह वनस्पति 100 से 200 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्र में पाई जाती है यहां की प्रमुख वनस्पति प्रजाति सागवान है।

2.उष्णकटिबंधीय शुष्क पतझड वनस्पति:-

यह वनस्पति 75 से 100 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्र में पाई जाती है यहां की मुख्य वनस्पति प्रजाति साल है तथा आदर पतझड़ वनस्पति शिवालिक पर्वतीय क्षेत्र उत्तरी पूर्वी राज्य झारखंड पश्चिम बंगाल पूर्वी मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ उड़ीसा कोरोमंडल तट तथा पश्चिमी घाट के पुल पर पाई जाती है शुष्क पत्र वनस्पति पंजाब हरियाणा उत्तर प्रदेश पूर्वी राजस्थान पश्चिमी मध्य प्रदेश गुजरात रात्रि में भारत के सभी राज्य में पाई जाती है।

ग.उष्णकटिबंधीय कांटेदार वनस्पति:-

यह वनस्पति उच्च तापमान तथा 25 से 75 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्र में पाई जाती है शुष्क परिस्थितियां होने के कारण इस वनस्पति प्रजाति की पत्तियां आंखों की होती हैं एवं उनमें काटे पाए जाते हैं छोटी पत्तियां कांट जल के हाथ को कम करने के लिए होते हैं इस वनस्पति की प्रमुख प्रजातियां हैं जैसे खेजड़ी बबूल केयर इत्यादि जिन क्षेत्रों में 25 सेंटीमीटर से कम वर्षा प्राप्त होती है वहां अमरुद विद वनस्पति पाई जाती है यह वनस्पति मुख्य रूप से पंजाब हरियाणा पश्चिम राजस्थान गुजरात अपराधी पर भारत के आंतरिक भाग में पाई जाती है।

घ. मैंग्रोव वनस्पति:-

यह वनस्पति तटवर्ती डेल्टा क्षेत्र में पाई जाती है तथा यह मीठे तथा खारे दोनों प्रकार के जल में जीवित रह सकती है क्योंकि इस वनस्पति में न्यूमेटाफोरस पाई जाती है यह जड़े सतह से ऊपर की ओर उठती हैं तथा सीधे वायुमंडल में ऑक्सीजन का ऑपरेशन करते हैं विश्व की कुल मैंग्रोव वनस्पति प्रजातियों का 3 प्रतिशत भाग भारत में पाया जाता है मैंग्रोव उत्पादक पारिस्थितिकी तंत्र होते हैं जहां बहुत अधिक विविधता पाई जाती है सुंदरवन डेल्टा क्षेत्र में सुंदरी नामक मैंग्रोव प्रजाति पाई जाती है यह वनस्पति मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल उड़ीसा आंध्रप्रदेश तमिलनाडु गोवा महाराष्ट्र एवं गुजरात में पाई जाती है।

ङ. पर्वतीय वनस्पति:-

पर्वतीय क्षेत्रों में ऊंचाई बढ़ने के साथ तापमान तथा वर्षा की मात्रा में परिवर्तन होता है अतः पर्वतीय क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की वनस्पति पाई जाती है जैसे- उपोषण कटिबंध पर्वतीय वनस्पति यह वनस्पति 1000 से 2000 मीटर की ऊंचाई के बीच पाई जाती है।

वर्षा के आधार पर इस वनस्पति को दो प्रकारों में बांटा जाता है

अ. उपोषण कटिबंधीय चौड़ी पत्ती वाली सदाबहार वनस्पति:-

यह वनस्पति 88 डिग्री ईस्ट के पूर्व में पाई जाती है। यहां लगभग 125 सेंटीमीटर वर्षा प्राप्त होती है यहां की मुख्य वनस्पति प्रजातियां मेपल ओक चेस्टनट है।

ब. उपोषण कटिबंधीय चीड़ वनस्पति:-

यह वनस्पति 88 डिग्री ईस्ट के पश्चिम में पाई जाती है यहाॅ लगभग 75 से 100 सेंटीमीटर वर्षा प्राप्त होती है यहां की मुख्य वनस्पति प्रजातियां चीड एवं देवदार है।

कोंणधारी पर्वतीय वनस्पति :-

यह वनस्पति 1800 मी. से 3000 मीटर के बीच पाई जाती है।इस ऊंचाई पर तापमान कम हो जाता है तो वर्षा की मात्रा बढ़ जाती है यहां लगभग 150 से 200 सेंटीमीटर वर्षा प्राप्त होती है यहां कोमल लकड़ी वाले वृक्ष पाए जाते हैं। यह वृक्ष वाणिज्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं। इस वनस्पति को दक्षिण भारत में शोला कहते हैं। इस वनस्पति की प्रमुख प्रजातियां फर पाइन तथा केदार है।

अल्पाइन पर्वतीय वनस्पति:-

यह वनस्पति 3000 से 4000 मीटर की ऊंचाई के बीच पाई जाती है इस ऊंचाई पर तापमान तथा वर्षा की मात्रा कम हो जाती है अतः इस ऊंचाई पर शीतोष्ण कटिबंधीय घास के मैदान तथा छोटे पेड़ पौधों का विकास होता है इस क्षेत्र की प्रमुख प्रजातियां लाइकेन हनीसकल जुनीपर है।

जलवायु

जलवायु की प्रमुख तत्व तापमान दाग होने तथा वर्षा हैं ।भारत में उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु पाई जाती है ।इस प्रकार की जलवायु क्षेत्रों में ऋतु के अनुसार पवनों की दिशा में उत्क्रमण होता है। इस जलवायु के अंतर्गत अधिकतम वर्षा ऋतु में प्राप्त होती है। भारत की जलवायु को बहुत से कारक प्रभावित करते हैं जिन्हें दो प्रमुख वर्गों में बांटा जा सकता है :-(1 )स्थिति व उच्चावच से संबंधित कारक (2 )वायुमंडलीय दाब एवं पवनों से संबंधित कारक

1. स्थिति व उच्चावच से संबंधित कारक:-

क. अक्षांशीय विस्तार:-

भारत का अक्षांशीय विस्तार लगभग 30 डिग्री है जिसके कारण भारत के विभिन्न क्षेत्र में जलवायु संबंधित विविधता पाई जाती है कर्क रेखा भारत के मध्य भाग से गुजरती है जो भारत को दो क्षेत्रों विभाजित करती है। 1.दक्षिण भारत में उष्णकटिबंधीय क्षेत्र 2. उत्तरी भारत में शीतोष्ण कटिबंध क्षेत्र स्थिति के कारण भारत के उत्तरी भाग में दैनिक तथा वार्षिक तापांतर अधिक पाया जाता है।

ख. जल तथा स्थल का वितरण:-

भारत के दक्षिणी प्रायद्वीप विभाग के तीन और जल स्थित है जल और स्थल में विविधता पर होने के कारण विभिन्न ऋतु में जल और स्थल के बीच दाब प्रवणता का निर्माण होता है इस दा प्रवक्ता के कारण ऋतु के अनुसार पवनों की दिशा में परिवर्तन होता है जिसके कारण वर्षा प्राप्त होती है।

ग. समुद्र तट से दूरी:-

समुद्र तट से बढ़ती दूरी के साथ वर्षा की मात्रा कम हो जाती है तथा विषम जलवायु परिस्थितियों का निर्माण होता है इसे महाद्वीपीय प्रभाव कहते हैं। इस प्रकार की विषम जलवायु उत्तर भारत में पाई जाती है ।दक्षिण भारत के पास समुद्र तट स्थित होने के कारण यहाॅ समकारी जलवायु पाई जाती है

घ. समुद्र तल से ऊंचाई:-

ऊंचाई के साथ किसी भी स्थान की जलवायु परिस्थितियां परिवर्तित हो जाती है। उसे बढ़ने के साथ तापमान कम होता है आगरा तथा दार्जिलिंग एक ही अक्षांश पर स्थित है परंतु आगरा का तापमान दार्जिलिंग से अधिक पाया जाता है।

ङ. उच्चावच:-

भारत की उच्चावच परिस्थिति तापमान पवनों की दिशा में गति तथा वर्षा की मात्रा को प्रभावित करती है उच्चावच में मुख्य रूप से पर्वत भारत की जलवायु को प्रभावित करते हैं।

1.हिमालय पर्वत:-

यह पर्वत उत्तर से आने वाली ठंडी पवनो को अवरुद्ध करता है तथा यह मानसून पवनों को भारत में वर्षा करने के लिए बाध्य करता हैं।

2. अरावली पर्वत:-

अरावली पर्वत अरब सागर की मानसून शाखा के समांतर स्थित है अतः इस पर्वत के कारण पश्चिम राजस्थान में शुष्क परिस्थितियों का निर्माण होता है अरावली के कारण पूर्वी राजस्थान में वर्षा प्राप्त होती है (बंगाल की खाड़ी मानसून शाखा के कारण)

3 पश्चिमी घाट:-

पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढाल के पवनाभिमुखी होने के कारण यहां अधिक वर्षा प्राप्त होती है। पश्चिमी घाट के पूर्व ढाल पवनविमुखी है अतः यहां कम वर्षा प्राप्त होती है। पश्चिमी घाट के पीछे प्रायद्वीपीय भारत में एक वृष्टि छाया क्षेत्र का निर्माण होता है।

2. वायुमंडलीय दाब तथा पवनों से संबंधित कारक:-

क. वायुमंडलीय दाब एवं धरातलीय पवनें:-

ग्रीष्म तथा शीत ऋतु में भारत में विभिन्न दा परिस्थितियों का निर्माण होता है जिसके कारण दर्द लिए पवनों की दिशा निर्धारित होती है यह मानसून पवने है जिनकी दिशा ग्रीष्म ऋतु में साउथ से व्यस्तता शीत ऋतु में नोट से ईस्ट वह साउथ से वेस्ट होती है।

ख. ऊपरी वायु परिसंचरण:-

भारत की जलवायु को दो प्रमुख जेटस्ट्रीम प्रभावित करती है । 1 उपोष्ण कटिबंधीय पांचवा जेटस्ट्रीम 2 पुरवा जेट स्ट्रीम

ग. चक्रवात:-

भारत की जलवायु को दो प्रमुख चक्रवात प्रभावित करते हैं जैसे 1उष्णकटिबंधीय चक्रवात 2 पश्चिमी विक्षोभ भूमध्यसागरीय चक्रवर्ती गतिविधियां

भारत की जलवायु:-

भारत की जलवायु रितु एवं जलवायु प्रदेशों के आधार पर देखी जाती है

ऋतु के अनुसार जलवायु:-

भारतीय मौसम विभाग द्वारा भारत की वार्षिक जलवायु परिस्थितियों के अनुसार भारत के 1 वर्ष को चार ऋतु में विभाजित किया गया है।

1 शीत ऋतु दिसंबर से फरवरी

2 ग्रीष्म ऋतु मार्च से मई

3 दक्षिण पश्चिम मानसून ऋतु जून से अगस्त

4 मानसून निवर्तन की ऋत सितंबर से नवंबर

1.शीत ऋतु:-

शीत ऋतु का निर्माण नवंबर से होने लगता है भारत के उत्तरी भाग में सबसे ठंडे महीने दिसंबर तथा जनवरी में होते हैं शीत ऋतु के दौरान कम तापमान उच्च दाब शुष्क नॉर्थ ईस्ट पवने तथा स्वच्छ आकाश पाया जाता है द्रास घाटी क्षेत्र में शीत ऋतु के दौरान सबसे कम तापमान पाया जाता है

शीत ऋतु का तापमान –

शीत ऋतु के दौरान 20 डिग्री सेंटीग्रेड की समताप रेखा कर्क रेखा के लगभग समांतर चलती है अतः भारत के उत्तरी भाग में तापमान 20 डिग्री से कम एवं दक्षिण भारत में तापमान 20 डिग्री से अधिक पाया जाता है पर्वतीय क्षेत्रों में तापमान अत्यधिक कम होता है उत्तरी भारत के अधिक ठंडे होने के निम्नलिखित कारण हैं पहला माधवी पर प्रभाव के कारण विषम जलवायु परिस्थितियां पाई जाती हैं दूसरा शीत ऋतु के दौरान उत्तरी पर्वतीय क्षेत्रों में होने वाली बर्फबारी के कारण नॉर्थवेस्ट भारत में सीतलहरी चलना प्रारंभ करती हैं तीसरा कैस्पियन सागर तथा तुर्कमेनिस्तान वाले क्षेत्र से ठंडी अपने भारत की ओर चलती हैं तथा उत्तर पश्चिम भारत में शीत लहरों के रूप में प्रवेश करके तापमान को कम करती हैं दक्षिण भारत में अधिक तापमान पाया जाता है जिसके प्रमुख कारण हैं जैसे महासागर का समकारी प्रभाव दूसरा विश्वत रेखा के समीप स्थिति

दाब:-

शीत ऋतु के दौरान कम तापमान के कारण परिस्थितियां पाई जाती है भारत के उत्तर पश्चिम भाग में उपस्थिति अधिक प्रबल होती हैं भारत में लगभग 1019 से 1013 एमबी के बीच दाब पाया जाता है।

पवनें:-

शीत युद्ध के दौरान उत्तर पूर्वी पवनी चलती है यह तो ने स्थल से जल की ओर चलती हैं बताइए शुष्क होती हैं।

वर्षा:-

शीत ऋतु के दौरान सामान्य वर्षा प्राप्त नहीं होती परंतु कुछ क्षेत्रों में अपवाद स्वरूप वर्षा प्राप्त होती है जो निम्नलिखित हैं:-

(1). उत्तर पश्चिम भारत में पश्चिमी विक्षोभ के कारण वर्षा प्राप्त होती है जिसे मावठ कहते हैं यह वर्षा हिमालय पर्वत क्षेत्र पंजाब हरियाणा तथा राजस्थान के कुछ भाग में प्राप्त होती है।

(2) . इस ऋतु के दौरान अरुणाचल प्रदेश में भी कुछ वर्षा प्राप्त होती है।

(3) . उत्तर पूर्वी मानसून दोनों की एक शाखा बंगाल की खाड़ी से गुजरते समय जलवाष्प प्राप्त करके कोरोमंडल तट पर वर्षा उत्पन्न करती है यह वर्षा मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश तमिलनाडु कर्नाटक तथा केरल के दक्षिणी पूर्वी भाग में प्राप्त होती है।

2. ग्रीष्म ऋतु:-

यह रितु मार्च माई के बीच पाई जाती है इस ऋतु का निर्माण द बेटियों के उत्तर की ओर विस्थापित होने के कारण होता है मुख्य रूप से आईटीसी जेड के उत्तर की ओर गति करने के कारण इस ऋतु के दौरान उच्च दाब उच्च तापमान निम्न दाब दक्षिण पश्चिम पौध तथा मानसून पूर्व वर्षा प्राप्त होती है

तापमान:-

इस ऋतु में भारत में लगभग 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पाया जाता है उत्तरी भारत में दक्षिण भारत की अपेक्षा अधिक उच्च तापमान पाया जाता है इसका प्रमुख कारण है उत्तरी भारत में महाद्वीपीय प्रभाव का होना

दाब:-

इस ऋतु में निम्न दाब परिस्थितियों का निर्माण होता है जो उत्तर पश्चिम भारत में प्रबल होती है। इस दौरान भारत में 997 से 1009 एमबी के बीच दाब पाया जाता है।

पवनें:-

इस ऋतु के दौरान दक्षिण पश्चिम पवने चलती हैं। इस दौरान एक स्थानीय पवन उत्तर पश्चिम भारत में प्रभावी रहती है जिसे लू कहते हैं। लू गर्म एवं शुष्क पवने हैं। इन दोनों के कारण धूल भरी आंधियां चलती हैं तथा शाम के समय थोड़ी बौछार होती है जो किस ग्रीष्म ऋतु में थोड़ी राहत दिलाती है। लू का प्रभाव राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, यूपी तथा बिहार तक रहता है।

वर्षा:-

ग्रीष्म ऋतु के दौरान मानसून पूर्व वर्षा प्राप्त होती है पश्चिमी तट पर होने वाली आम्र वर्षा तथा चेरी ब्लॉसम

इस दौरान पश्चिम बंगाल तथा असम में भी मानसून पूर्व वर्षा प्राप्त होती है। वैशाख के महीने में शाम को चलने वाली विनाशकारी आर्द्रतायुकत पवनों के कारण आने वाले व्रज तूफान को कालबैसाखी कहते हैं ।इसके विनाशकारी स्वरूप के कारण इसे वैशाख का काल कहते हैं। इस व्रज तूफान के कारण होने वाली वर्षा चाय, चावल तथा पटसन की खेती के लिए उपयोगी होती है। असम में काल बैसाखी को स्थानीय भाषा में बारदोली छीड़ा कहते हैं। चेरी ब्लॉसम को फूलों वाली वर्षा कहा जाता है।

3. दक्षिण पश्चिम मानसून ऋतु:-

यह ऋतु जून से अगस्त के बीच पाई जाती है। इस ऋतु के दौरान आईटीसी जेड भारत पर आकर स्थापित हो जाती है। इस ऋतु के दौरान भारत में अधिकतम वर्षा प्राप्त होती है। अतः इसे भारत की वर्षा ऋतु की कहते हैं। इस ऋतु के दौरान वर्षा के कारण तापमान 5 से 8 डिग्री सेंटीग्रेड कम हो जाता है ।आईटीसी जेड के भारत में स्थित होने के कारण सिधी सोर विकिरण प्राप्त होती है।

दाब-

इस ऋतु के दौरान भारत में निम्न दाब परिस्थितियां पाई जाती हैं। भारत में लगभग 997 से 1009 एमबी के बीच दाब पाया जाता है। उत्तर पश्चिम भारत में सबसे कम दाब पाया जाता है तथा दक्षिणी भारत में दाब बढ़ जाता है।

पवनें-

दक्षिणी गोलार्ध की व्यापारिक पवने आईटीआई की ओर बढ़ती है तथा विश्वत रेखा पार करने के बाद यह पवनें दाएं और मुड़ जाती हैं तथा इनकी दिशा दक्षिण-पश्चिम हो जाती है। यह दक्षिण-पश्चिम पवनें आर्द्रता ग्रहण करके भारत में वर्षा उत्पन्न करती है।

वर्षा-

भारत में दक्षिण पश्चिम मानसून पवनों द्वारा वर्षा प्राप्त होती है ।इस ऋतु में बादल के गरजने तथा बिजली के कड़कने के साथ अचानक वर्षा प्राप्त होती है जिसे मानसून का प्रसफोट कहते हैं। भारत में सबसे पहले वर्षा अंडमान निकोबार दीप समूह में प्राप्त होती है ।(25 मई को) भारत के मुख्य भूभाग में वर्षा सर्वप्रथम मालाबार तट पर 1 जून को प्राप्त होती है। 15 जुलाई तक मानसून भारत को प्रभावित कर देता है ।राजस्थान में मानसून 15 जून को प्रवेश करता है ।भारत में मानसून अरब सागर की शाखा तथा बंगाल की खाड़ी शाखा द्वारा प्रवेश करता है।

अरब सागर की शाखा:-

(1). पश्चिमी घाट शाखा:-

यह शाखा पश्चिमी घाट के पश्चिम ढाल से टकराने के बाद 900 से 1200 मीटर की ऊंचाई तक चढ़ती है तथा ठंडी होकर यह शाखा बादल निर्माण करती है।(<२००से.मी) तथा इस क्षेत्र में 200 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा प्राप्त होती है। यह शाखा पश्चिमी घाट के पूर्वी घाट पर कम वर्षा करती है तथा पूर्वी ढाल से उतरते समय यह गर्म हो जाती है। इन गर्म तथा शुष्क पवनों के कारण पश्चिमी घाट के पीछे एक वृष्टि छाया क्षेत्र का निर्माण होता है।

(2) . छोटा नागपुर शाखा:-

इसे अरब सागर की मध्य शाखा भी कहते हैं ।यह शाखा नर्मदा तथा तापी भ्रंश घाटी के माध्यम से भारत में प्रवेश करती है ।इस शाखा के कारण भारत के मध्यवर्ती भाग में वर्षा प्राप्त होती है। यह शाखा बिहार में बंगाल की खाड़ी की शाखा से मिलती है।

(3) .हिमाचल शाखा:-

यह शाखा भारत में सौराष्ट्र प्रायद्वीप से प्रवेश करती है। यह शाखा अरावली पर्वत के समानांतर चलती है अतः यह गुजरात तथा पश्चिमी राजस्थान में बहुत कम वर्षा करते हुए पंजाब हरियाणा में बंगाल की खाड़ी की शाखा से मिल जाती है। दोनों शाखाएं मिलने के बाद प्रबल हो जाती है पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में भारी वर्षा करती है।( मुख्य रूप से धर्मशाला हिमाचल प्रदेश)

बंगाल की खाड़ी की शाखा :-

बंगाल की खाड़ी की शाखा अराकान योमा पर्वत से टकराने के बाद भारत की ओर विक्षेपित हो जाती है ।यह शाखा भारत में दक्षिण पूर्वी दिशा से प्रवेश करती है ।यह पश्चिम बंगाल में प्रवेश करने के बाद हिमालय से टकराकर दो शाखाओं में बंट जाती है-

(1). उत्तरी मैदानी शाखा:-

यह शाखा उत्तर पश्चिम भारत में बने कम दाब केंद्र की ओर आकर्षित होती है। यह शाखा गंगा के मैदानी क्षेत्र में तथा पूर्वी राजस्थान में वर्षा करती है। बिहार में यह शाखा छोटानागपुर शाखा से मिलती है तथा पंजाब हरियाणा में यह हिमाचल शाखा से मिलती है।

(2). पूर्वी शाखा:-

यह शाखा उत्तर पश्चिम राज्यो में वर्षा करती है ।इसकी एक शाखा मेघालय पठार पर स्थित गारो,खासी, जैनतियाॅ पहाड़ियों पर वर्षा करती है।इसी क्षेत्र में माॅसिनराम तथा चेरापूँजी स्थित है जहाँ विश्व की सर्वाधिक औसत वार्षिक वर्षा प्राप्त होती है।

इस ऋतु में कोरोमंडल तटवर्ती क्षेत्र में वर्षा प्राप्त नहीं हो पाती क्योंकि(1) यह क्षेत्र अरब सागर की शाखा के भ्रष्टाचार क्षेत्र में स्थित है(2) यह क्षेत्र बंगाल की खाड़ी की शाखा के समांतर स्थित है।

4. मानसून निवर्तन की ऋतु:-

यह रितु सितंबर से नवंबर के बीच पाई जाती है इस ऋतु के दौरान आईटीसी जेट दक्षिणी गोलार्ध की ओर बढ़ने लगता है।

तापमान

अक्टूबर महीने के शुरुआत में वर्षा के समाप्त हो जाने के कारण तापमान बढ़ने लगता है ।इस समय भूमि में नमी व्याप्त होती है तथा तापमान बढ़ने के कारण आद्रता बढ़ जाती है। उच्च तापमान व अधिक आर्द्रता के कारण चिपचिपी कष्टकारी मौसम परिस्थितियों का निर्माण होता है जिसे कार्तिक मास की उष्मा कहते हैं। अक्टूबर के अंत तक तापमान कम होने लगता है। नवंबर में तापमान अधिक कम होकर शीत ऋतु के लिए अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण करता है।

दाब:-

इस ऋतु में कंधा परिस्थितियां धीरे- धीरे उच्च दाब परिस्थितियों में परिवर्तित होती है क्योंकि आईटीसी जेड दक्षिणी गोलार्ध की ओर बढ़ने लगता है।

पवनें:-

इस ऋतु में दक्षिण पश्चिम मानसून दोनों के स्थान पर उत्तर पूर्व मानसून होने स्थापित होने लगती हैं।

वर्षा:-

इस ऋतु में उत्तरी भारत में शुष्क परिस्थितियां पाई जाती हैं तथा भारत के पूर्वी तटवर्ती क्षेत्र पर उष्णकटिबंधीय चक्रवात के कारण वर्षा प्राप्त होती है चक्रवात के कारण होने वाली अधिकतम वर्षा अक्टूबर तथा नवंबर में प्राप्त होती है।

भारत की परंपरागत ऋतुएँ:-( ऋतुएँ, हिंदी महीने ,अंग्रेजी महीने) बसंत -चैत्र वैशाख -मार्च-अप्रैल , ग्रीष्म- जेस्ट आषाढ मई जून, वर्षा -श्रावण भाद्रपद जुलाई-अगस्त, शरद- अश्विन कार्तिक सितंबर अक्टूबर ,हेमंत- मार्गशीर्ष पौष नवंबर दिसंबर, शिशिर -माघ फाल्गुन जनवरी-फरवरी।

जल वायु प्रदूषण के आधार पर जलवायु :-

भारत में उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु पाई जाती है परंतु मानसून वर्षा का वितरण समान नहीं है भारत में अन्य जलवायु तत्वों जैसे तापमान तथा दाब संबंधित विविधता में पाई जाती है इस प्रादेशिक बिनता के आधार पर भारत को विभिन्न जलवायु प्रदेशों में बांटा जा सकता है कोपेन के अनुसार भारत में 8 प्रमुख जलवायु प्रदेश हैं ओपन ने जलवायु प्रदेशों को दर्शाने के लिए अंग्रेजी भाषा के वर्ण संकेतों का उपयोग किया है:-

A-Tropical climate,B-Desert climate<w-arid,s-semi arid,h-hot,k-cold>

C-Subtropical

D-Temperate

E-Polar

F-Full year rain

m-monsoon(rain)

s-summer dry

g- Ganga plains

a- long hot summer season( दीर्घ अत्यधिक गर्म)

b-long warn summer season( दीर्घ गर्म)

c-short cool summer season( लघु कम गर्म)

d-short cold summer season( लघु अत्यधिक कम गर्म)

1.Amw( लघु शुष्क ऋतु वाला मानसून प्रदेश):-

यह जलवायु प्रदेश गोवा के दक्षिण में कर्नाटक तथा केरल के तटवर्ती क्षेत्रों में स्थित है इस क्षेत्र में तापमान 18 डिग्री सेंटीग्रेड या इससे अधिक पाया जाता है यहां लगभग 200 से 400 सेंटीमीटर वर्षा प्राप्त होती है अधिक वर्षा के कारण यहां उष्णकटिबंधीय सदाबहार वनस्पति पाई जाती है जैसे महोगनी एबोनी रोजवुड सफेद केदार यहां मानसून सबसे पहले प्रवेश करता है तथा सबसे अंत में यहां से विदा होता है।

2.As( शुष्क ग्रीष्म ऋतु वाला मानसून प्रकार):-


यह प्रदेश कोरोमंडल तट पर स्थित है मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु में स्थित है यहां तापमान 18 डिग्री सेंटीग्रेड या इससे अधिक होता है यहां लगभग 100 से 200 सेंटीमीटर वर्षा प्राप्त होती है इस चित्र में वर्षा शीत ऋतु के दौरान उत्तर-पूर्वी मानसून कौनो द्वारा प्राप्त होती है तथा यहां चक्रवार्थी कारण भी वर्षा प्राप्त होती है इस क्षेत्र में उष्णकटिबंधीय आद्यपद्य वनस्पति पाई जाती है रेसिपी जैसे-टीक

3.Aw( उष्णकटिबंधीय सवाना प्रदेश):-

यह प्रदेश कर्क रेखा के दक्षिण में स्थित हैं यह प्रदेश गुजरात राजस्थान मध्य पदेश छत्तीसगढ़ झारखंड पश्चिम बंगाल त्रिपुरा मिजोरम तथा प्रायद्वीपीय भारत अधिकतम भाग में स्थित है इस चित्र में 3 डिग्री सेंटीग्रेड तथा इससे अधिक तापमान पाया जाता है यहां लगभग 50 से 100 सेंटीमीटर वर्षा प्राप्त होती है यहां उष्णकटिबंधीय उसको पता चल वनस्पति पाई जाती है जैसे साल

4.Cwg( शुष्क शीत ऋतु वाला मानसून प्रदेश):-

इस क्षेत्र में मुख्य रूप से पंजाब-हरियाणा पूर्वी राजस्थान गुजरात उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश बिहार झारखंड पश्चिम बंगाल सिक्किम तथा उत्तर पूर्वी राज्य सम्मिलित है इस क्षेत्र में महाद्वीप पर प्रभाव के कारण एवं विषम तापमान परिस्थितियां पाई जाती हैं इस प्रदेश में पूर्व से पश्चिम की ओर बढ़ने पर वर्षा की मात्रा कम होती है यहां लगभग 50 से 200 सेंटीमीटर या इससे अधिक वर्षा प्राप्त होती है वर्षा में भिन्नता के कारण यहां विभिन्न प्रकार की वनस्पति पाई जाती है जैसे उष्णकटिबंधीय सदाबहार वनस्पति दूसरी उष्णकटिबंधीय आंध्रप्रदेश पति तीसरी उष्णकटिबंधीय शुष्क पर वनस्पति यह प्रदेश कर्क रेखा के उत्तर में स्थित है।

5.BShw( अर्ध शुष्क स्टैपी प्रदेश):-

यह प्रदेश पंजाब हरियाणा पश्चिम राजस्थान गुजरात तथा प्रायद्वीपीय भारत का आंतरिक भाग के वृष्टि छाया क्षेत्र में स्थित है इस प्रदेश में विषम तापमान परिस्थितियां पाई जाती है यहां लगभग 25 से 50 सेंटीमीटर वर्षा प्राप्त होती है इस क्षेत्र में उष्णकटिबंधीय कांटेदार वनस्पति पाई जाती है जैसे एक खेजड़ी बबूल खेर इत्यादि।

6.BWhw( मरुस्थलीय प्रदेश):-

यह पश्चिमी राजस्थान में स्थित प्रदेश है इस प्रदेश में विषम तापमान परिस्थितियां पाई जाती हैं यहां दैनिक तापांतर बहुत अधिक व्हाई जाता है यहां 25 सेंटीमीटर से कम वर्षा प्राप्त होती है अतः यहां मरुदभिद वनस्पति पाई जाती है।

7.Dfc( लघु ग्रीष्म एंव ठंडी आर्द्र शीत ऋतु वाला प्रदेश):-

यह प्रदेश मुख्य रूप से अरुणाचल प्रदेश में स्थित है इस प्रदेश में लगभग 3 डिग्री सेंटीग्रेड से 18 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पाया जाता है यहां पूरे वर्ष वर्षा प्राप्त होती है जो लगभग 100 से 200 सेंटीमीटर होती है अधिक वर्षा के कारण यहां उपोष्ण कटिबंधीय चौड़ी पत्ती वाली सदाबहार वनस्पति पाई जाती है जैसे मैं पल ओक चेस्टनट।

8.E ( ध्रुवीय जलवायु प्रदेश):-

यह प्रदेश हिमालय पर्वतीय क्षेत्र में स्थित है यह मुख्य रूप से जम्मू कश्मीर हिमाचल प्रदेश अता उत्तराखंड में पाया जाता है यहां शीत ऋतु में 3 डिग्री सेंटीग्रेड या इससे कम रहता है तथा ग्रीष्म ऋतु में तापमान 10 डिग्री सेंटीग्रेड या इससे अधिक रहता है इस पर देश में दक्षिण से उत्तर बढ़ने पर वर्षा की मात्रा कम होती है हिमालय पर्वत क्षेत्र के पीछे एक वृष्टि छाया क्षेत्र स्थित है जहां भारत का ठंडा मरुस्थल लद्दाख के पठार पर पाया जाता है इस क्षेत्र में पर्वतीय वनस्पति पाई जाती है।

वार्षिक वर्षा :-

भारत में दक्षिण पश्चिम मानसून पवनों द्वारा वर्षा प्राप्त होती है

भारत की वर्षा की निम्नलिखित विशेषताएं हैं:-

यह वर्षा मौसमी है क्योंकि अधिकतम वर्षा ग्रीष्म ऋतु के दौरान प्राप्त होती है

रावत तथा दा परिस्थितियों के कारण दक्षिण पश्चिम मानसून कौने दिशा में परिवर्तित करती है

भारत में वर्षा अचानक बादल के गरजने बिजली के कड़कने के साथ आती है जिसे मानसून पर सपोर्ट कहते हैं

यह वर्षा आंध्र दौर के अंतर्गत प्राप्त होती है तथा आदत दौर के बीच में सूखे अंतराल पाए जाते हैं जब प्रसाद प्राप्त नहीं होती इन सूख अंतराल को मानसून विच्छेद कहते हैं।

भारत में वर्षा के प्रादेशिक वितरण के समानता पाई जाती है कुछ क्षेत्र में 12 सेंटीमीटर तो अन्य क्षेत्रों में 900 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा प्राप्त होती है

टच से बढ़ती दूरी के साथ वर्षा की मात्रा कम होती है

मानसून वर्षा में अनिश्चितता पाई जाती है कभी मानसून वर्षा समय से पहले तो कभी देरी की से प्रारंभ होती है मानसून की तरफ बता भी हर वर्ष बदलती रहती है

भारत में औसत 125 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा प्राप्त होती है मानसून वर्षा के असमान वितरण के कारण भारत में निम्नलिखित वर्षा प्रदेश पाए जाते हैं

a. अधिक वर्षा वाला प्रदेश:-

इस प्रदेश में लगभग 200 से 400 सेंटीमीटर वर्षा प्राप्त होती है इस पर देश में सबसे पहले वर्षा प्राप्त होती है तथा मानसून का निवेदन सबसे अंत में होता है अतः यहां लंबे समय तक भारी वर्षा प्राप्त होती है यह प्रदेश पश्चिम घाट के पश्चिम डाल पश्चिम तटवर्ती क्षेत्र तथा उत्तर पूर्वी राज्य में स्थित है इस प्रदेश में मॉनसून राम स्थित है जहां सर्वाधिक वार्षिक वर्षा प्राप्त होती है।

b. मध्यम वर्षा वाला प्रदेश:-

क्षेत्र में 100 से 200 सेंटीमीटर वर्षा प्राप्त होती है इस क्षेत्र में मुख्य रूप से उठा ले वाला क्षेत्र बिहार झारखंड पश्चिम बंगाल मध्य प्रदेश उड़ीसा छत्तीसगढ़ आंध्र प्रदेश तमिलनाडु गुजरात महाराष्ट्र कर्नाटक केरल मणिपुर असम का कचारगढ़ क्षेत्र सम्मिलित है

c. निम्न वर्षा वाला क्षेत्र:-

इस प्रदेश में 50 से 100 सेंटीमीटर वर्षा प्राप्त होती है इस प्रदेश में मुख्य रूप से जम्मू-कश्मीर हिमाचल प्रदेश उत्तराखंड पंजाब हरियाणा पूर्व राजस्थान पश्चिम यूपी मध्य प्रदेश तथा प्रायद्वीपीय भारत के सभी राज्य सम्मिलित हैं।

d. अपर्याप्त वर्षा वाला क्षेत्र:-

इस प्रदेश में 50 सेंटीमीटर से कम वर्षा प्राप्त होती है इस प्रदेश में हिमालय के वृष्टि छाया क्षेत्र में स्थित लद्दाख पश्चिम राजस्थान पंजाब हरियाणा गुजरात तथा पश्चिम घाट का वृष्टि छाया क्षेत्र जैसे महाराष्ट्र कर्नाटक तेलगाना व आंध्र प्रदेश सम्मिलित हैं।

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