8th Class Biology Question Paper

जीवन की उत्पत्ति (Origin of life)

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जीवन की उत्पत्ति का विज्ञान अध्ययन करते समय, वैज्ञानिकों ने कई संभावनाएं पेश की हैं। प्राचीन काल से ही इस विषय पर विचार और समीक्षा होती आई है। समुद्री धारावाहिका, आयनोत्पादन सिद्धांत, प्रवाहवाद, और परमाणु अंशों के संयोजन कुछ मुख्य सिद्धांतों में शामिल हैं। इन सिद्धांतों के आधार पर, जीवन की उत्पत्ति का मूल सिद्धांत यह है कि पृथ्वी के प्राचीन वातावरण में उपलब्ध आवश्यक रासायनिक संयोजनों का योगदान है, जिन्हें अधिक योग्य और जिंदा रहने के लिए अधिक उपयुक्त ढंग से संगठित किया गया।

निर्जीव से सजीव की उत्पत्ति कैसे हुई ?

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‘ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति’ आज से 15 अरब वर्ष पूर्व महाविस्फोट सिद्धान्त (Big Bang theory) के अनुसार महाविस्फोट (Big-Bang) के फलस्वरूप आज से 4.6 अरब वर्ष पूर्व सौरमंडल का विकास हुआ। इस प्रकार पृथ्वी की उत्पत्ति आज से लगभग 4.6 अरब वर्ष पूर्व एक ज्वलित गैसीय पिण्ड से हुआ था। लगभग 0.6 अरब वर्ष में उक्त गैसीय पिण्ड के ऊपर भू-पटल (Earth’s Crust) का निर्माण हुआ। भूपटल के निर्माण काल को अजीवी महाकल्प (Azoic era) की संज्ञा प्रदान की गई। भू-पटल की स्थापना से लेकर आज तक के पृथ्वी के इतिहास को जीवी महाकल्प (Zoic era) के रूप में अभिहित किया है। जीवी महाकल्प के आर्कियोजोइक महाकल्प में अर्थात् आज से 3.8 अरब वर्ष पूर्व आदिसागर में ‘जीवन की उत्पत्ति’ सबसे पहले हुई थी। * इस परिपेक्ष्य में सबसे आधुनिक, विस्तृत और सर्वमान्य (A.I Oparin) परिकल्पना रूसी जीव-रसायन शास्त्री ए.आई. औपैरिन ने सन् 1924 में भौतिकवाद या पदार्थवाद (Materialistic Theory) के नाम से अपनी पुस्तक ‘The Origin of Life’ में प्रस्तुत की। इस परिकल्पना के अनुसार – ‘जीवन की उत्पत्ति’ कार्बनिक पदार्थों से रासायनिक उद्विकास (Chemical Evolution) के फलस्वरूप हुई है।
वायुमण्डल वर्तमान उपचायक या ऑक्सीकारक (Oxidising) वायुमण्डल के विपरीत अपचायक (reducing) था, क्योंकि इसमें हाइड्रोजन के परमाणु संख्या में सबसे अधिक और सर्वाधिक क्रियाशील थे। हाइड्रोजन ने ऑक्सीजन के सारे परमाणुओं से मिलकर जल (H2 O) बना लिया। अतः ऑक्सीजन (02) के स्वतंत्र परमाणु आदिवायुमण्डल में नहीं थेr स्थलमण्डल इस समय भी बहुत गर्म था। अतः सारा जल वाष्प के रूप में वायुमण्डल में ही रहा। नाइट्रोजन के परमाणुओं ने अमोनिया (NH3) भी बनाई।

संभवतः, जीवन की उत्पत्ति का अद्भुत प्रक्रिया अनेक संदर्भों में अध्ययन की गई है, जैसे कि उदाहरण के रूप में प्रारंभिक पृथ्वी की अवस्था, बिजलीय विक्रियाओं, उच्च तापमान या सूर्य के प्रकाश के प्रभाव का अध्ययन। विभिन्न अध्ययनों ने सुझाव दिया है कि जीवन की उत्पत्ति का संभावनात्मक कारण गर्मी के असामान्य स्रोत, समुद्री धारावाहिका, या स्थायित्वपूर्ण रासायनिक प्रक्रियाओं में समाहित हो सकता है। यह सभी सिद्धांतों और सिद्धांतों का संयोजन संभव हो सकता है, जो विभिन्न परिस्थितियों और गैर-जीवित पदार्थों के बीच एक सम्बन्ध बनाता है और जीवन की उत्पत्ति की वास्तविकता को समझने में मदद कर सकता है।

जीव विज्ञान (Biology)

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जीवविज्ञान एक विज्ञान है जो जीवों के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करता है, जैसे कि उनका संरचना, कार्य, विकास, और प्रजनन। यह विज्ञान जीवित जीवों के साथ होने वाली प्रक्रियाओं को समझने का प्रयास करता है, जैसे कि सेल की संरचना, उनके अंतर्गत कार्य, और उनके बदलते रहने के प्रक्रियाएं। जीवविज्ञान जीवों के विशिष्ट विश्लेषण की भी प्रक्रिया करता है, जैसे कि जीवों की विभिन्न प्रजातियों की वर्गीकरण, उनका परिवार, जीवनकाल, और पर्यावरणीय संबंध।

विज्ञान की वह शाखा जिसके अन्तर्गत जीवधारियों का अध्ययन किया जाता है, जीव विज्ञान (Biology) कहलाती है। जीव विज्ञान शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम लैमार्क (Lamarck) तथा ट्रेविरेनस (Treviranus) ने 1802 में किया था। जीव विज्ञान (Biology) शब्द दो ग्रीक शब्दों (Bios = life, जीवन तथा logos = study, अध्ययन) से मिलकर बना है।

जीव विज्ञान को दो प्रमुख शाखाओं में विभक्त किया जाता है-

(क) वनस्पति विज्ञान (Botany)
(ख) जन्तु विज्ञान (Zoology)।

जीवविज्ञान के कई क्षेत्र हैं, जो समाजिकता, पर्यावरण, और उपयोगिता के संदर्भ में भी अध्ययन करते हैं। इसमें शामिल हैं जैविक विविधता का अध्ययन, उत्पादन जैसे कृषि और औषधीय पदार्थों का विकास, जीवों के रोगों का अध्ययन, और जीवन प्रकृति से संबंधित और बीमारियों के उपचार का अध्ययन। इसके साथ ही, जीवविज्ञान आधुनिक प्रौद्योगिकी में भी बदलाव लाता है, जैसे कि जीन तकनीकी, जीवाणु विज्ञान, और ननोबायोटेक्नोलॉजी। इसका उद्देश्य जीवों के स्वरूप और कार्य को समझकर मानव समाज के लिए लाभकारी तकनीक और नई ज्ञान को प्रोत्साहित करना है।

‘बॉटनी’ (Botany) शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के ‘बास्कीन’ (Baskein), शब्द से हुई है जिसका अर्थ है, ‘चरना’। थियोफ्रेस्टस (Theophrastus, 370-
285 B.C.) ने 500 प्रकार के पौधों का वर्णन अपनी पुस्तक ‘Historia Plantarum’ में किया है। इन्हें ‘वनस्पति विज्ञान का जनक’ (Father of Botany)
कहा जाता है।* अरस्तू (Aristotle, 384-322, B.C.) ने अपनी पुस्तक ‘जन्तु इतिहास’ (Historia, animalium) में 500 जन्तुओं की रचना, स्वभाव,वर्गीकरण , जनन आदि का वर्णन किया है अत उन्हें जंतु का जनक (father of zoology ) कहा जाता है ।8th Class Biology Question Paper

जीवधारियों के गुण

हम किसी जीवधारी का रासायनिक विश्लेषण करें तो पायेंगे कि यह कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन व नाइट्रोजन, आदि उन्हीं तत्वों से बना होता है जो निर्जीव जगत में पाए जाते हैं। परंतु, केवल इन तत्वों के मिश्रण से ही कोई जीवधारी नहीं बन जाता है। वास्तव में सभी सजीवों में कुछ ऐसे विशिष्ट गुण होते हैं जो निर्जीवों में नहीं पाए जाते। किसी भी वस्तु को, जिसमें कुछ विशिष्ट जैविक क्रियाएँ, जैसे वृद्धि-प्रचलन, श्वसन, पोषण, प्रजनन आदि हो रही हों, सजीव कहते हैं। इन जैविक क्रियाओं के आधार पर ही जीवों को निर्जीवों से अलग कर पाना संभव होता है।8th Class Biology Question Paper

कोशिकीय संरचना-

जिस प्रकार मकान ईंटों से बना होता है, उसी प्रकार प्रत्येक जीव एक अथवा अनेक छोटी-छोटी कोशिकाओं से बना होता है। कोशिकाएं शरीर की रचनात्मक व कार्यात्मक इकाई हैं।

जीवद्रव्य-

प्रत्येक कोशिका में जैव पदार्थ होता है जिसे जीवद्रव्य (Protoplasm) कहते हैं। यह सभी जीवधारियों में पाया जाने वाला वास्तविक जीवित पदार्थ है। यह सभी जीवों की भौतिक आधारशिला है। इसे जैविक क्रियाओं का केंद्र कहते हैं। यह एक तरल गाढ़ा, रंगहीन, लसलसा व जलयुक्त पदार्थ है। इसकी रचना कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन व अकार्बनिक लवणों द्वारा होती है। हक्सले के अनुसार, “जीवद्रव्य जीवन का भौतिक आधार है।

आकृति एवं आकार-

सभी जीवों की अलग-अलग विशिष्ट आकृति एवं आकार होते हैं। उन्हीं के आधार पर इनकी पहचान की जाती है। अर्थात् विविधता जीवधारियों का शाश्वत गुण है।

उपापचय-

सजीवों की कोशिकाओं में होने वाले सम्पूर्ण जैव-रासायनिकक्रियाओं को उपापचय कहते हैं। यह क्रिया दो रूपों में सम्पन्न होती है। प्रथम को अपचय कहते हैं, जो कि विनाशात्मक क्रियाहै। जैसे श्वसन एवं उत्सर्जन। दूसरी रचनात्मक प्रक्रिया है, जिसे उपचय की संज्ञा प्रदान की जाती है। जैसे-पोषण । इसीलिए सजीव कोशिकाओं को ‘लघु रासायनिक उद्योगशालाओं की उपमा प्रदान की गयी है।

श्वसन-

जीवधारियों का मुख्य लक्षण श्वसन है। इस क्रिया में जीव वायुमंडल से ऑक्सीजन लेते हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं। श्वसन के दौरान वसा, कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन का विघटन होता है और ऊर्जा निकलती है। यह ऊर्जा एटीपी के रूप में निकलती है जिससे संपूर्ण जैविक क्रियाएं चलती हैं।

प्रजनन-

प्रत्येक जीव प्रजनन-क्रिया के माध्यम से अपने ही सदृश्य जीव उत्पन्न करते हैं। इस क्रिया के द्वारा ही वह अपने वंश को बनाये रखते हैं।

पोषण-

प्रत्येक जीव अपने क्रिया-कलापों के लिए आवश्यक ऊर्जा पोषण द्वारा प्राप्त करते हैं। पौधे अपना भोजन प्रकाश संश्लेषण की विधि से बनाते हैं जबकि जंतु पौधों पर ही आश्रित रहते हैं। निर्जीव वस्तुओं में इस प्रकार से भोजन बनाने का गुण नहीं होता है।

अनुकूलन-

जीवों में यह क्षमता होती है कि वे जीवन-संघर्ष में सफल होने के लिए अपनी संरचनाओं एवं कार्यों में परिवर्तन कर लेते हैं।

संवेदनशीलता-

जीव संवेदनशील होते हैं वे कावरण में होने वाले परिवर्तन का अनुभव करते हैं तथा उनके अनुसार अपने को सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक परिवर्तन कर लेते हैं।

उत्सर्जन-

सभी जीवधारियों द्वारा शरीर में उपस्थित हानिकारक पदार्थ- यूरिक अम्ल आदि बाहर निकाले जाते हैं। सजीवों द्वारा सम्पन्न हुई यह क्रिया उत्सर्जन कहलाती है।

जीवन चक्र-

सभी जीवधारी अत्यंत सूक्ष्म भ्रूण के रूप मे जीवन प्रारम्भ करते है तथा पोषण वर्धि तथा संतानोउत्पति के बाद नस्ट हो जाते है।

विषाणु(virus)

virus

वायरस अति सूक्ष्म अविकल्प परजीवी अकोशिकीय तथा विशिस्ट नुयोकिल्यो प्रोटीन कण है जो किसी जीवित परपोषी के अन्दर रहकर प्रजनन करते हैं।
ये सजीव एवं निर्जीव के मध्य की कड़ी हैं।

विषाणुओं में सजीवों के लक्षण
(i) आनुवंशिक पदार्थ (RNA व DNA) की उपस्थिति।
(ii) गुणन।
विषाणुओं में निर्जीवों के लक्षण
(i) जीवद्रव्य व कोशिकांगों का अभाव।
(ii) अनेक जैविक क्रियाओं-श्वसन, उत्सर्जन आदी का अभाव।
(iii)निर्जीवों के समान इनके भी क्रिस्टल बनाए जा सकते हैं।
(iv) गुणन केवल पोषी कोशिका के अन्दर ।
आजकल कोशिका को जीवन का मूलभूत आधार माना जाता है। सभी जीवधारी कोशिकाओं के बने होते हैं। किन्तु विषाणुओं में कोशिकीय संगठन का पूर्णतः अभाव होता है तथा जीवित पोषी के बाहर ये निर्जीव पदार्थों की भांति व्यवहार करते हैं, परन्तु साथ ही, जब ये पोषी (host) की कोशिका के अन्दर पहुच जाते हैं, तो अन्य जीवों के समान गुणन करते हैं तथा इनकी आनुवंशिक निरन्तरता बनी रहती है। इस प्रकार देखा जाए तो ये जीवधारियों का एक प्रमुख गुण, प्रजनन, प्रदर्शित करते हैं। इस प्रकार यह सत्य है कि विषाणु “जीवों तथा निर्जीवों के बीच की कड़ी हैं। दूसरी ओर, कुछ वैज्ञानिकों की धारणा है कि विषाणु आद्य (Primitive) या प्राचीन कण नहीं हैं, अपितु ये अत्यन्त विशिष्ट अधिपरजीवी (specialised superparasites) हैं। अभी भी इस विवाद का समुचित समाधान नहीं हो सका।8th Class Biology Question Paper

विषाणु की संरचना

वाइरस रचना में प्रोटीन के आवरण से घिरा न्यूक्लिक अम्ल होता है। बाहरी आवरण या Capsid में बहुत सी प्रोटीन इकाइयां (Capsomeres) होती हैं। पूरे कण को ‘विरियान’ (Virion) कहते हैं। इनका आकार 10-500 मिलीमाइक्रान (m) होता है। वाइरसों में न्यूक्लिक अम्ल RNA अथवा DNA दो में से एक होता है। न्यूक्लिक अम्ल, ‘विरिऑन’ (virion) का 6% भाग बनाता है। जबकि प्रोटीन का कवच 94% भाग बनाता है। प्रोटीन कवच अक्सर एक पतली पूंछ के रूप में होता है। परपोषी प्रकृति के आधार पर होते हैं।

विषाणु तीन प्रकार के होते है

  1. पादप विषाणु (Plant virus) – इनका न्यूक्लिक अम्ल आर.एन.ए. (RNA) होता है। जैसे – टी.एम. वी. (TMV), पीला मोजैक विषाणु (YMV) आदि।
  1. जन्तु विषाणु (Animal Virus) – इनमें डी.एन.ए. या कभी-कभी आर.एन.ए. भी पाया जाता है। ये प्रायः गोल होते हैं। जैसे-इन्फ्लूएंजा, मम्पस वाइरस आदि।
  2. बैक्ट्रियोफेज (Bateriophase) या जीवाणु जीवाणओं के ऊपर आश्रित रहते

विषाणु जनित रोग

पौधों के रोग :-

फसल का नाम -रोग का नाम

चुकन्दर (heet) – (twisted apex)
भिण्डी (lady finger) – पीली नाड़ी मोजेक(yellow vein mosaic)
गन्ना (sugarcane) – तृण समान प्ररोह(grass shoot disease)
पपीता (papaya) – मोजेक (mosaic)
केला (banana) – मोजेक (mosaic)
तिल (seasamum) – फिल्लोडी (phyllody)
सरसों (mustard) – मोजेक (mosaic)
बादाम (almond) – रेखा पैटर्न (streak pattern)
नींबू (lemon) – नाड़ी का ऊतक क्षयन(yellowing of veins)
टमाटर (tomato) – पत्तियों की ऐंठन(twisted leaf disease)

पशुओं में होने वाले वायरस जनित रोग

पशु – वायरस – रोग
गाय – वैरियोला वैक्सीनिया – चेचक
भैंस – पाक्स विरिडोआर्थोपाक्स – चेचक
चौपाया – रेण्डोविरडी कैमोक्यूल – जार
गाय – ब्लू टंग – ब्लूटंग
गाय – हर्पोज – हर्पोज
चौपाया(कुत्ता) – स्ट्रीट – रैबीज

जीव विज्ञान की विभिन्न शाखाओं के जनक

शाखा – जनक
जीवविज्ञान (Biology) – अरस्तू
स्पतिविज्ञान(lotany) – थियोफ्रेस्टस
जीवाश्मिकी (Palaeontology)- लियानार्डो डी विन्सी
सुजननिकी (enics) – फ्रांसिस गाल्टन
आधुनिक वनस्पति विज्ञान(Modern Botany) – केरोलस लीनियस
चिकित्सा शास्त्र – हिप्पोक्रेटस
प्रतिरक्षा विज्ञान (logy) – एडवर्ड जैनर

जीव विज्ञान से सम्बन्धित शाखायें (BRANCHES RELATED TO BIOLOGY)

  1. जैव रसायन (Biochemistry): जीवधारियों के रासायनिक घटकों तथा रासायनिक प्रक्रियाओं का अध्ययन।
  2. जैव सांख्यिकी (Biometrics): जैविक क्रियाओं और उनके प्रमाणों का गणितीय विश्लेषण।
  3. जीव भौतिकी (Biophysics) भौतिक सिद्धान्तों तथा विविधता के आधार पर जैविक क्रियाओं का अध्ययन।
  4. आण्विक जीव विज्ञान (Molecular Biology) जीवधारियों का रासायनिक स्तर पर अध्ययन ।
  5. सूक्ष्म जैविकी (Microbiology): सूक्ष्म जीवों का अध्ययन।
  6. आनुवंशिक इन्जीनियरिंग (Genetic Engineering): आनुवंशिक पदार्थों के उपयोग और संयोजन द्वारा नये आनुवंशिक लक्षणों वाले जीवधारियों के
    निर्माण का अध्ययन।
  7. कार्यिकी (Physiology): जीवधारियों के विभिन्न अंगों अथवा सम्पूर्ण शरीर द्वारा की जाने वाली क्रियाओं की क्रियाविधि का अध्ययन कार्यिकी कहलाता है।8th Class Biology Question Paper

प्रमुख भारतीय वनस्पतिशास्त्री

विलियम राक्सबर्ग – भारतीय वनस्पति विज्ञान के जनक (Father of Indian Botany)
एस.आर. कश्यप बायोलॉजी (Bryology)-भारतीय ब्रायोफाइटा विज्ञान के पिता
एम.ओ.पी. आयंगर—फाइकोलॉजी (Phycology)- भारतीय आधुनिक शैवाल विज्ञान के पिता
के.सी. मेहता – पादप रोग (Plant disease) (Rust Control)
पी. परीजा — पादप शरीर क्रिया विज्ञान (Plant Physicology)
बीरबल साहनी — पुरा वनस्पति विज्ञान (Palacobotany)- भारतीय जीवश्म वनस्पति विज्ञान के पिता ।
आर. मिश्रा – पारिस्थितिकी (Ecology)
डॉ. बी.पी. पाल- पादप प्रजनन

कोशिका विज्ञान (Cytology)


कोशिका विज्ञान (Cytology) विज्ञान का एक शाखा है जो कोशिकाओं की अध्ययन के संबंध में है। यह विज्ञान कोशिकाओं के संरचना, कार्य और उनकी संगठना का अध्ययन करता है। कोशिका विज्ञान का मुख्य उद्देश्य कोशिकाओं की संरचना और कार्य के अध्ययन के माध्यम से जीवों के विभिन्न पहलुओं को समझना है। यह विज्ञान जीवविज्ञान, डायग्नोस्टिक मेडिसिन, और कैंसर बायोलॉजी जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

कोशिका में दो प्रकार की कोशिकाए पाई जाती है जेसे – 1. प्रोकैरियोटिक कोशाए 2. यूकेरियोटिक कोशाए

1. प्रोकैरियोटिक कोशाए-

प्रोकेरियोटिक कोशिकायें वे कोशिकायें कहलाती है जिनमें केन्द्रक-कला (nuclear membrane), केन्द्रक (nucleus) तथा सुविकसित कोशिकांगों का
अभाव होता है। इनमें 705 प्रकार के राइबोसोम पाये जाते हैं। रचना के आधार पर ये कोशिकायें आद्य (Primitive) होती हैं। इनमें केन्द्रक पदार्थ (nuclear material) स्वतन्त्र रूप से कोशिका द्रव्य में बिखरे रहते हैं अर्थात केन्द्रक पदार्थ जैसे- प्रोटीन, DNA तथा RNA कोशिकाद्रव्य के सीधे सम्पर्क में रहते है इनके गुणसूत्रो में हिस्टोन प्रोटीन का अभाव होता है प्रोकेरियोटिक कोशिकायें के उदारण है जीवाणु विषाणु बक्टेरियोफेज pplo हरे नीले शैवाल की कोशिकाए-

2. यूकेरियोटिक कोशाए –

यूकेरियोटिक कोशिकायें वे कोशिकायें कहलाती हैं जिनमें केन्द्रक कला, केन्द्रक तथा पूर्ण विकसित कोशिकांग पाये जाते हैं। इनमें 805 प्रकार के
राइबोसोम होते हैं।
इनमें केन्द्रक पदार्थ (प्रोटीन, DNA तथा RNA) कोशिकाद्रव्य के सीधे सम्पर्क में नहीं रहते बल्कि केन्द्रक द्रव्य के सम्पर्क में रहते हैं। इनके गुणसूत्रों में हिस्टोन प्रोटीन पाई जाती है। यूकेरियोटिक कोशिकाओं के उदाहरण हैं, शैवाल (हरे-नीले शैवाल के अतिरिक्त ) तथा सभी विकसित जन्तु व वन्स्पति कोशिकाए-

कोशिका की संरचना (Structure of Cell)

कोशिका की संरचना अत्यधिक जटिल होती है। इनमें अनेक संरचनाएँ होती हैं। इन संरचनाओं को कोशिकांग (organelles) कहते हैं। कोशिका (plant cell) के निम्नलिखित ।

तीन मुख्य भाग होते हैं। (1) कोशिका भित्ति (cell wall), (2) जीवद्रव्य (pro- toplasm), (3) रसधानियाँ य रिक्तिकाएँ (vacuoles) ।

कोशिका भित्ति (Cell Wall) :-

कोशिका भित्ति केवल पादप कोशिकाओं में पाई जाती है। जन्तु कोशिकाओं में इसका अभाव होता है। यह सबसे बाहर की पर्त होती है। जीवद्रव्य के स्रावित पदार्थ (secretory product) द्वारा इसका निर्माण होता है। यह मोटी, मजबूत, छिद्रयुक्त तथा निर्जीव होती है। कोशिका-भित्ति कोशा-विभाजन की अन्त्यावस्था (telophase) के समय अन्तः प्रद्रव्यी जालिका (en- doplasmic reticulum) की छोटी-छोटी नलिकाओं द्वारा बनती है।
किसी भी कोशिका की कोशाभित्ति को निम्नलिखित पतों में बाँटा जा सकता है-

1.प्राथमिक कोशाभित्ति (Primary cell-wall)
2.द्वितीयक कोशाभित्ति (Secondary cell-wall)
3.तृतीयक कोशाभित्ति (Tertiary cell-wall)
4.मध्य पटल (Middle lamella)

कोशिका की सबसे बाहरी भित्ति को प्राथमिक कोशाभित्ति (primary cell-wall) कहते हैं तथा यह सभी भित्तियों से पहले स्राव के फलस्वरूप बनती है।

यह पहले विभज्योतकी कोशाओं (meristematic cells) तथा मृदूतकी कोशाओं (parenchymatous cells) में विकसित होती है।

प्राथमिक भित्ति पतली, कोमल, लोचदार तथा पाय (permeable) होती है। केवल सेल्यूलोस की बनी होती है।” ध्यातव्य है कि बहुत से कवकों तथा यीस्ट में यह काइटिन (Chitin) की बनी होती है।

प्राथमिक कोशिकाभिति के ठीक नीचे अपेक्षाकृत मोटी, परिपक्व व स्थायी रूप में द्वितीयक कोशिकाभित्ति होती है। यह सेल्यूलोस, पेक्टिन एवं लिग्निन आदि पदानों की बनी होती है।

कभी-कभी कुछ कोशिकाओं में जैसे अनावृबीजी दारू (Gymnosperms) पौधों की वाहनाओं (Xy-trachcids) में द्वितीयक कोशिकाभिति के नीचे तृतीयक कोशिकाभिति (Tertiary cell-wall) पायी जाती है, जो जाइलन नामक पदार्थ द्वारा बनी होती है

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