एशिया: भौतिक भूगोल

एशिया के पर्वत

फ्यूजी पर्वत:-

यह जापान की सबसे ऊंची चोटी है ।यह एक सक्रिय ज्वालामुखी पर्वत है। यह पर्वत परी प्रशांत महासागरीय पेटी में स्थित है।

अराकान योमा पर्वत:-

यह म्यांमार में स्थित नवीन वलित पर्वत है ।इस पर्वत का निर्माण indo-australian तथा वर्मा प्लेट के मिश्रण से हुआ है ।पूर्वांचल तथा अंडमान निकोबार दीप समूह को इसी पर्वत का भाग माना जाता है ।इस पर्वत की सबसे ऊंची चोटी विक्टोरिया है। इस पर्वतीय क्षेत्र में दक्षिण पश्चिम मानसून पवनों द्वारा भारी वर्षा प्राप्त होती है अतः यहां बहुत अधिक जैव विविधता पाई जाती है तथा इसे विश्व के 36 हॉटस्पॉट में सम्मिलित किया गया है।

अरारत पर्वत :-

यह तुर्की में स्थित मृत ज्वालामुखी चोटी है ।यह तुर्की की सबसे ऊंची पर्वत चोटी है ।इस चोटी क्षेत्र में एल्बुर्ज तथा जागरोस पर्वत श्रेणियां आकर मिलती है।

एलबुर्ज तथा जागरोस पर्वत :-

यह ईरान की प्रमुख पर्वत श्रेणियां हैं एलबुर्ज पर्वत श्रेणी में देपावेन्द चोटी स्थित है जो पश्चिम एशिया की सबसे ऊंची चोटी है।

हिंदूकुश पर्वत :-

यह पर्वत अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान में स्थित है। इसकी सबसे ऊंची चोटी तिरिचमीर है ,जो पाकिस्तान में स्थित है। काराकोरम श्रृंखला पामीर पहाड़ का पश्चिम उत्तर विस्तार है ।और यह हिमालय पर्वत की उप श्रृंखला है। यह विश्व की जनसंख्या का भौगोलिक मध्य बिंदु माना जाता है। बामियान शहर मध्य अफगानिस्तान के हजरत सुबह में बड़ा शहर एवं राजधानी है ।तालिबान द्वारा सन् 2001 में तोप से उड़ा जाने से पहले बामियान में बुद्ध की प्रतिमा लगभग 2000 वर्ष तक स्थापित रही। यह काबुल से लगभग 240 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है। बामियान तेल चित्रों की प्राचीनतम संग्रहण स्थली हैं।

सुलेमान पर्वत :-

मुख्यतः यह पर्वत पाकिस्तान में स्थित है।

साल्ट रेंज:-

यह पाकिस्तान में स्थित है ।

सगाई पहाड़ियां;-

यहां पाकिस्तान का परमाणु परीक्षण केंद्र स्थित है

किरथर पर्वत:-

किरथर पर्वत सिंध तथा बलूचिस्तान में झालावान क्षेत्र की सीमा पर स्थित है। यह पर्वत पहाड़ियों की एक ही श्रृखलाबदॄ श्रेणी के रूप में मौज अंतरिप तक चल गया है। इस पर्वत पर पाए जाने वाले वन्यजीव में पर्वतीय भेड़, काला भालू तथा चीता आदि प्रमुख है ।इस पर्वत की एक उप श्रेणी दक्षिण पूर्व में पाकिस्तान के कराची जिले तक चली गई है। किरंथर पर्वत पहाडियो की एक ही श्रृंखला श्रेणी के रूप में मौज अंतरिक तक चला गया इसकी सर्वाधिक चौड़ाई लगभग 60 मिली है ।जरदक नामक शिखर किरथर का सर्वोत्तम शिखर है जिसकी ऊंचाई 7430 फुट है। इसकी प्रधान उपशाखा ‘लक्की श्रेणी ‘कहलाती है ।किरथर पर्वत के नाम पर ही इस क्षेत्र में उपलब्ध चूना पत्थर का भू-वैज्ञानिक नाम कीरथर चूना पत्थर पड़ा है ।यह पाकिस्तान में स्थित है।

वृहत खिंगन पर्वत:-

यह चीन में स्थित है

कुनलून शान:-

कुनलून पर्वत तिब्बत के पठार के उत्तर में स्थित है और इसके और तारीम द्रोणी के बीच एक दीवार बनकर खड़े हैं। पूर्व में यह उत्तर चीन के मैदानों में वेई नदी के दक्षिण पूर्व में जाकर खत्म हो जाते हैं ।कुल्लून पर्वत भारत और अक्साई चीन इलाके को भी तारीफ द्रोणी से अलग करते हैं ।इस पर्वत वाला में कुछ ज्वालामुखी भी स्थित है।जो तकलामकान रेगिस्तान तथा तिब्बत के पठार को अलग करता है ।कुल्लून शान का सबसे ऊंचा शिखर उलुघ मुजताघ है जो 25340 फुट ऊंचा है। यह चीन में स्थित है।

तियन शान पर्वत:-

इस पर्वत श्रंखला से उभरने वाले अहम दरियाओ में सिर दरिया, इली दरिया ,ईली नदी तारिम नदी शामिल है। इस इलाके में पहुंचने वाले पहले यूरोपीय पीटर समीनोफ थे । यह पश्चिम में यह पामीर पर्वतमाला से मिलती है ।कजाकिस्तान और चीन पर स्थित इसीक कुल झील इसके उत्तर पूर्व में स्थित है ।यह चीन, कजाकिस्तान तथा किर्गिस्तान में स्थित है।

अल्ताई पर्वत:-

यह पर्वत श्रृखला मध्य एशिया की एक बड़ी पर्वत श्रृंखला है जो उस क्षेत्र से गुजरती है जहां रूस चीन मंगोलिया तथा कजाकिस्तान में स्थित है। अल्ताई पर्वत पश्चिमी छोर में साइबेरिया की सायन पर्वत श्रृंखला से आरंभ होते हुए और दक्षिण-पूर्व में धीरे-धीरे छोटे होकर गोबी के उच्चे रेगिस्तान पठार में जा मिलते हैं। इसमें मध्य एशिया की दो महत्वपूर्ण नदियां इरतिश और ओब इन्हीं पहाड़ों से शुरू होती है।

सयान पर्वत:-

मंगोलिया तथा रूस में स्थित है। भौगोलिक दृष्टि से इसके 2 खंड है पूर्वी और पश्चिमी पूर्वी सायन के पहाड़ के नीचे नदी से शुरू होकर पूर्व की ओर फैला हुआ है और भाई कल जेल पर जा रुकते हैं

हकाकाबो राजी:-

यह म्यांमार की सबसे ऊंची चोटी है, जो चीन,भारत तथा म्यांमार के सीमा क्षेत्र में स्थित है।

चंगाई पहाड़ियां :-

हिमालय पर्वतीय प्रदेश :-

यह प्रदेश पूर्व से पश्चिम तक एक चाप के रूप में 5 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है। इस प्रदेश का निर्माण मुख्यतः हिमालय पर्वत से हुआ है ।हिमालय एक नवीन वलित पर्वत है जिसका निर्माण टर्शियरी काल (तृतीय युग) में इंडो आस्ट्रेलियन तथा यूरेशियन प्लेटों के अभिसरण से हुआ था। यह विश्व का सबसे ऊंचा पर्वत तंत्र है ।इस पर्वत पर बहुत से अल्पाइन ,हिमनद पाए जाते हैं। जहां से भारत की प्रमुख नदियों का उद्गम होता है।

इस प्रदेश को तीन प्रमुख भागों में विभाजित किया जाता है

1. ट्रांस हिमालय= काराकोरम ,लद्दाख और जास्कर।

2. मुख्य हिमालय= वृहद हिमालय,मध्य हिमालय और शिवालिक।

3. पूर्वांचल

ट्रांस हिमालय :-

यह हिमालय पर्वतीय प्रदेश का सबसे उत्तरी भाग है यह मुख्यतः जम्मू कश्मीर लद्दाख तथा तिब्बत में स्थित है यह भाग मुख्य हिमालय के वृष्टि छाया क्षेत्र में स्थित है यहां शुष्क परिस्थितियां पाई जाती है इस बात में तीन प्रमुख पर्वत श्रेणी है जो निम्नलिखित हैं।

अ. काराकोरम श्रेणी-

यह ट्रांस हिमालय की सबसे उत्तरी तथा सबसे ऊंची श्रेणी है इस श्रेणी में भारत की सबसे ऊंची तथा विश्व की दूसरी सबसे ऊंची चोटी गॉडविन ऑस्टिन ak2 स्थित है इस श्रेणी में बहुत से अल्पाइन हिम्मत स्थित है जैसे हिस्पर मथुरा दिया हो बाल तोरो और सियाचिन आदि।

सियाचिन हिमनद से नुब्रा नदी का उद्गम होता है नुब्रा नदी सिंधु नदी की सहायक नदी है सियाचिन हिमनद इसी नदी की घाटी में स्थित है यह विश्व का सबसे ऊंचा युद्ध स्थल है

ब. लद्दाख श्रेणी-

इस श्रेणी को तिब्बत में कैलाश पर्वत के नाम से जाना जाता है इस श्रेणी की सबसे ऊंची चोटी एक का पोशी है तिब्बत में कैलाश पर्वत के दक्षिण में मानसरोवर झील स्थित है लद्दाख श्रेणी में खारदुंग ला दर्रा स्थित है जो नुगरा तथा शोक नदी घाटी को जोड़ता है काराकोरम तथा लद्दाख श्रेणी के बीच लद्दाख का पठार स्थित है जो भारत का सबसे ऊंचा पठार है जिसकी ऊंचाई 48 मीटर है यह एक अंता है पर्वतीय पठार है जहां शुष्क परिस्थितियां पाई जाती हैं इस पठारी क्षेत्र में भारत का झंडा मरुस्थलीय क्षेत्र स्थित है लता यहां बहुत सी लवणीय झीले पाई जाती हैं।

स. जास्कर श्रेणी-

यह ट्रांस हिमालय की सबसे दक्षिणी श्रेणी है इस श्रेणी तथा लद्दाख श्रेणी के बीच सिंधु नदी घाटी स्थित है।

मुख्य हिमालय :-

यह सिंधु नदी घाटी से ब्रह्मपुत्र नदी घाटी के बीच लगभग 24 किलोमीटर की दूरी में विस्तृत भाग है इस भाग के दोनों और एक संज्ञा मोरिया सिंटेक्सियल मोड़ पाया जाता है हिमालय के इस भाग की चौड़ाई पश्चिम भाग में अधिक 400 किलोमीटर तथा पूर्व में इसकी चौड़ाई कम है जैसे डेट 100 किलोमीटर

मुख्य हिमालय में तीन प्रमुख श्रेणियां स्थित है :-

वृहद हिमालय ,मध्य हिमालय और शिवालिक

क. वृहद हिमालय-

यह नंगा पर्वत से नामचा बरवा के बीच 200 किलोमीटर की दूरी में विस्तृत श्रेणी है इस श्रेणी की औसत ऊंचाई 61 मीटर है तथा इसकी औसत चौड़ाई 25 किलोमीटर है यह विश्व की सबसे ऊंची पर्वत श्रेणी है अतः यह श्रेणी हमेशा बर्फ से ढकी रहती है तथा इसका नाम हिमाद्रि भी है इस श्रेणी की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट 8848 मीटर है इसे नेपाल में सागरमाथा भी कहते हैं इस रैली पर बहुत से हिमनद स्थित है जैसे गंगोत्री यमुनोत्री संतो पिंडारी मिलाना द हिना हिमनद से भारत की प्रमुख नदियों का उद्गम होता है यह एक सतत श्रेणी है जिसमें बहुत दरों का निर्माण किया गया है उत्तर भारत में दरों को स्थानीय भाषा में लाया जाता है।

ख. मध्य हिमालय:-

मध्य हिमालय में पीर पंजाल जम्मू कश्मीर धोलादा हिमाचल प्रदेश मसूरी नाग तिब्बा उत्तराखंड महाभारत नेपाल नोकिया सिक्किम ब्लैक माउंटेन भूटान विभिन्न पर्वत श्रेणी या मध्य हिमालय में पाई जाती है

यह मुकेश हिमालय की दूसरी सबसे प्रमुख श्रेणी है इस श्रेणी को लघु हिमालय तथा हिमाचल हिमालय भी कहते हैं इस श्रेणी की ऊंचाई लगभग 3700 से 4500 मीटर है इस श्रेणी की ओर से चौड़ाई 50 किलोमीटर है इस श्रेणी के विभिन्न प्रादेशिक नाम है जैसे पीर पंजाल धौलाधार आदि इस श्रेणी तथा व्रत हिमालय के बीच बहुत कुछ प्रमुख घटिया पाई जाती है जैसे कश्मीर घाटी कुल्लू घाटी कांगड़ा काठमांडू घाटी ग्रीष्म ऋतु के दौरान इस श्रेणी पर शीतोष्ण कटिबंधीय घास के मैदानों का विकास होता है जिन्हें जम्मू-कश्मीर में मर्ग तथा उत्तराखंड में बुग्याल प्याला कहते हैं इन घास के मैदानों का उपयोग स्थानीय समुदाय पशुओं को चराने के लिए करते हैं इस श्रेणी क्षेत्र में बहुत से पर्यटन स्थल स्थित है जैसे कुल्लू मनाली मंसूरी नैनीताल धर्मशाला आदि इस श्रेणी में कुछ प्रमुख स्थित है जैसे जैसे बनिहाल दर्रा पीर पंजाल दर्रा।

करेवा:-

यह कश्मीर घाटी क्षेत्र में पाए जाने वाले जेल हिम्मत अता नदी के अवसाद हैं यह अधिक उपजाऊ अवसाद होते हैं जिनका उपयोग केसर तथा चावल की खेती के लिए किया जाता है।

ऋतु प्रवास :-

जब ऋतु में परिवर्तन होने पर स्थानीय समुदाय अपने पशुओं के साथ कार्य तथा जल की खोज में एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर पलायन करते हैं तो उसे ऋतु प्रवास कहते हैं कश्मीर घाटी क्षेत्र में गुर्जर तथा बकरवाल समुदाय ऋतु प्रवास करते हैं

ग. शिवालिक श्रेणी:-

मुकेश हिमालय की सबसे दक्षिणी श्रेणी है इस श्रेणी की ऊंचाई लगभग 500 से 15 मीटर है अपने की चौड़ाई लगभग 10 से 50 किलोमीटर है।

इस श्रेणी के विभिन्न प्रादेशिक नाम है जैसे जम्मू पहाड़ियां जम्मू कश्मीर दुधवा दांग पारियां उत्तराखंड सूर्या गार्ड पहाड़ियां नेपाल डाकला मेरी अब बोर मिस मी अरुणाचल

इस श्रेणी तथा मध्य हिमालय के बीच बहुत सी समतल घटिया स्थित है जिन्हें पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में धुन तथा पूर्वी हिमालय क्षेत्र में द्वार कहते हैं जैसे देहरादून कोटली दून पाटलीदून विहान द्वार हरिद्वार आदि।

मानसून के दौरान पंजाब हिमाचल प्रदेश में शिवालिक पर्वत पर अस्थाई धाराओं का निर्माण होता है जिन्हें स्थानीय भाषा में चोट कहते हैं

चोट के कारण शिवालिक अत्यधिक प्रतीत हो जाता है तथा विभिन्न भागों में पड़ जाता है

पूर्वांचल :-

उत्तरी पूर्वी राज्यों में उत्तर से दक्षिण की ओर विस्तृत पहाड़ियों ऑडियो को सम्मिलित रूप से पूर्वांचल कहते हैं पूर्वांचल का निर्माण indo-australian तथा वर्मा प्लेट के अभिसरण से हुआ है यह पहाड़ियां बालू पत्थर से बनी है मानसून पौधों द्वारा इन पहाड़ियों पर भारी वर्षा प्राप्त होती है अतः यहां अगेन वनस्पति तथा जैव विविधता पाई जाती है यह विश्व के 36 जय विविधता में से एक है इन पहाड़ियों वाले क्षेत्रों में नेशनल पार्क में स्थित हैं जैसे जांग कोई नेशनल पार्क

हिमालय का महत्व :-

  • हिमालय पर्वत के कारण भारत को उपमहाद्वीप की संज्ञा मिली है।
  • हिमालय पर्वत के कारण मानसून पहने भारत में वर्षा करती हैं तथा यहां पर्वत उत्तर से आने वाली ठंडी पौधों को रोकता है।
  • यह पर्वत सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
  • इस पर्वत पर बहुत से अल्पाइन हिमनदी स्थित हैं जिनसे भारत की प्रमुख नदियों का उद्गम होता है ।
  • इस प्रवृत्ति क्षेत्र में विविध प्रकार की वनस्पति पाई जाती है।
  • यहां बहुत सी औषधियां पाई जाती हैं जिनका उपयोग आयुर्वेद उद्योग में किया जाता है यह पर्वतीय क्षेत्र पर्यटन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है यहां बहुत से पर्वतीय स्थल स्थित है ।
  • हिमालय पर्वत क्षेत्र में बहुत अधिक जैव विविधता पाई जाती है तथा यहां बहुत से जैव आरक्षित क्षेत्र एवं राष्ट्रीय उद्यान स्थित है ।
  • धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां बहुत से धार्मिक स्थल से केदारनाथ बद्रीनाथ आदि

एशिया के प्रमुख पठार

1. अनातोलिया का पठार:-

  • यह तुर्की में स्थित अंतः पर्वतीय पठार है।
  • यह पठार पाॅनटीन तथा टोरस पर्वत श्रेणी के बीच स्थित है।
  • यहां शुष्क परिस्थितियों पाई जाती है।
  • इस पठार पर तुर्की की राजधानी अंकारा स्थित है।
  • इस पठारी क्षेत्र को एशिया माइनर भी कहा जाता है।

2. इरान का पठार:-

  • यह एल्बुर्ज तथा जागरोस पर्वत श्रेणी के बीच स्थित है।
  • यहां शुष्क परिस्थितियां पाई जाती हैं।
  • इस पठारी क्षेत्र में ईरान के प्रमुख मरुस्थल दस्त -ए- लूट तथा दश्त-ए-काविर स्थित है ।
  • इस पठारी क्षेत्र में जीवाश्म ईंधन पाए जाते हैं जैसे पेट्रोलियम ,प्राकृतिक गैस इत्यादि।

3. पामीर का पठार:-

यह एशिया के मध्यवर्ती भाग में स्थित पठार है। इस पठारी क्षेत्र में एशिया की प्रमुख पर्वत श्रेणियां आकर मिलती हैं अतः इसे पामीर की गांठ भी कहते हैं। यह विश्व का सबसे ऊंचा पठार है अतः इसे ‘विश्व की छत’ भी कहते हैं।

4. पोटवार का पठार:-

  • यह पाकिस्तान के पूर्वी भाग में स्थित पठार हैं ।
  • इस पठार पर जीवाश्म ईंधन पाए जाते हैं जैसे प्राकृतिक गैस,पेट्रोलियम, कोयला ।
  • पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद तथा प्रमुख शहर रावलपिंडी भी इसी पर स्थित है।
  • रावलपिंडी में पाकिस्तान का सैन्य अड्डा स्थित है।

5. तिब्बत का पठार:-

  • यह पठार हिमालय पर्वत तथा कुनलून शान पर्वत के बीच स्थित है ।
  • यह विश्व का सबसे बड़ा है तथा ऊंचा पठार है ।
  • इस पठार पर बहुत से हिमनद पाए जाते हैं जिनसे एशिया की प्रमुख नदियों का उद्गम होता है। जैसे ब्रह्मपुत्र, सिंधु, सतलज, सि कियांग इत्यादि।

6. शान का पठार:-

  • यह पूर्वी म्यांमार का प्रमुख पठार है।
  • इस पठार पर बहुत से खनिज पाए जाते हैं जैसे सीसा, जस्ता ,चांदी।
  • यहाॅ बहुमूल्य पत्थर भी पाए जाते हैं।
  • इस पठार पर साल्वीन नदी बहती है।

एशिया की प्रमुख झीलें

1. मृत सागर:-

  • यह इजराइल तथा जॉर्डन के सीमा क्षेत्र पर स्थित झील है।
  • यह झील भ्रंश घाटी में स्थित है।
  • इस झील में बहुत अधिक लवणीयता पाई जाती है ।
  • इस झील में जीवन का अस्तित्व नहीं पाया जाता है इसे मृत सागर भी कहते हैं ।
  • यह विश्व के स्थलीय भागों में सबसे निम्नतम बिंदु पर स्थित झील है।
  • इसके किनारे -403 मीटर गहराई पर स्थित है।

2. वान गोल झील:-

  • यह तुर्की की सबसे बड़ी झील है।
  • इस झील में बहुत अधिक लवणीयता पाई जाती है।
  • यह झील विश्व की सबसे बड़ी लावणी सोडा झील है।

3.दरया-ए-उर्मिया झील:-

  • यह ईरान की सबसे बड़ी लवणीय झील है।
  • यह झील ईरान के उत्तर पश्चिम भाग में स्थित है।

4. कैस्पियन सागर:-

  • यह यूरेशिया में स्थित झील है
  • यह झील विश्व की सबसे बड़ी झील है ।
  • इस झील के किनारे विभिन्न देश स्थित हैं जैसे रूस ,कजाखस्तान ,तुर्कमेनिस्तान, ईरान ,अज़रबैजान।
  • इस झील में वोल्गा तथा यूराल नदियां गिरती है।
  • इस झील के उत्तरी भाग में मीठा जल तथा दक्षिण भाग में लवणीय जल पाया जाता है।
  • इस झील के आसपास जीवाश्म ईंधन के भंडार पाए जाते हैं जैसे पेट्रोलियम।

5. अरल सागर:-

  • यह झील कजाखस्तान तथा उज्बेकिस्तान की सीमा क्षेत्र में स्थित है।
  • यह कजाखसन की दूसरी सबसे बड़ी झील है।
  • इस झील में सिर दरिया तथा अमु दरया नदीयाॅ मिलती है।
  • यह मीठे पानी की झील है जो निरंतर सिकुड़ती जा रही है।
  • विश्व की सबसे बड़ी पर्यावरण आपदा का सामना यह झील कर रही है।
  • इस झील का अस्तित्व खतरे में है तथा यह अत्यधिक प्रदूषित हो चुकी है।

6. बल्काश झील:-

  • यह कजाखसन में स्थित मीठे पानी की झील है।
  • यह कजाखसन की तीसरी सबसे बड़ी झील है।
  • यह झील सिकुड़त जा रही है।

7.इस्सिक कुल:-

यह किर्गिस्तान की प्रमुख झील है। यह झील विश्व की दूसरी सबसे बड़ी लवणीय झील है। इस झील का नाम का अर्थ गर्म झील है क्योंकि यह झील कभी जमती नहीं है। पर्वतो से घिरे होने के कारण इस झील वाले क्षेत्र में विषम जलवायु नहीं पाई जाती है।

8.किंघाई झील:-

  • यह चीन की सबसे बड़ी लवणीय झील है।
  • इस झील में अंतः स्थलीय अपवाह तंत्र पाया जाता है ।
  • लवणीयता होने के बावजूद इस झील में मछलियां पाई जाती हैं।
  • इन मछलियों पर निर्भर करने वाले प्रवासी पक्षी क्षेत्र में आते हैं।

9.उव्स झील:-

  • यह मंगोलिया में स्थित लवणीय झील है।
  • यह मंगोलिया की सबसे बड़ी लवणीय झील भी है।
  • यह विश्व धरोहर सूची में सम्मिलित है।

10. बैकाल झील:-

  • यह झील रूस में स्थित है ।
  • यह विश्व की सबसे गहरी झील है ।
  • आयतन की दृष्टि से यह विश्व की सबसे बड़ी मीठे पानी की झील है ।
  • इस झील में विश्व के मीठे पानी के लगभग 20% भंडार पाए जाते हैं।
  • यह झील भ्रंश घाटी में स्थित है।
  • यह झील विश्व धरोहर सूची में सम्मिलित है।

11.तोन्ले सैप:-

यह कंबोडिया में स्थित झील है ।यह दक्षिणी पूर्वी एशिया की सबसे बड़ी मीठे पानी की झील है। इस झील से तोन्ले सैप नदी निकलती है जो मेकांग नदी से मिलती है। यह दिल विश्व के 36 हॉटस्पॉट में सम्मिलित है।

12.टोबा झील:-

यह इंडोनेशिया में स्थित विश्व की सबसे बड़ी काल्डेरा झील है।

13.बिवा झील:-

यह जापान की सबसे बड़ी मीठे पानी की झील है यह होम सुदीप पर स्थित है

एशिया की प्रमुख नदियां

टिगरीस व यूफ्रटेस नदी:

यह नदियां तुर्की में स्थित टाॅरस पर्वत से निकलती है तथा फारस की खाड़ी में गिरती है। यह नदियां तुर्की, सीरिया तथा इराक में बहती है।इन नदियों के बेसिन क्षेत्र में पेट्रोलिंग के भंडार पाए जाते हैं। इन नदियों के बेसिन क्षेत्र में विश्व की पहली सभ्यता का विकास हुआ था जिसे मेसोपोटामिया सभ्यता कहते हैं। टिगरिस नदी तुर्की तथा सीरिया के बीच सीमा बनाती है ।टिगरिस नदी के किनारे इराक की राजधानी बगदाद स्थित है ।यूफ्रेट्स नदी पश्चिम एशिया की सबसे लंबी नदी है। यह दोनों नदियां इराक में मिलती है जिसके बाद इन्हें शत-अल-अरब जाता है।

हेलमंद नदी :-

यह नदी हिंदूकुश पर्वत से निकलती है तथा हामून पूर्व झील में गिरती है। यह अफगानिस्तान की सबसे लंबी व प्रमुख नदी है ।इस नदी के बेसिन क्षेत्र में अफीम की गैरकानूनी खेती की जाती है। इस नदी वाली क्षेत्र में गोल्डन करसेंट स्थित है जो अफीम के गैरकानूनी व्यापार के लिए कुख्यात है। इसमें अफगानिस्तान,ईरान तथा पाकिस्तान सम्मिलित हैं।

सिर दरिया एवं अमु दरिया :-

यह मध्यवर्ती एशिया की प्रमुख नदियां हैं। यह नदियां अरल सागर में गिरती है ।यह मध्यवर्ती एशिया के विभिन्न देशों के बीच सीमा बनाती हैं।

इस नदी का उद्गम अल्ताई पर्वत से होता है तथा यह ओब की खाड़ी में गिरती है ।यह नदी नंदमुख बनाती है ।इर्तिश इस नदी की प्रमुख सहायक नदी है।

येनिसे नदी :-

इस नदी का उद्गम सयान पर्वत से होता है तथा यह येनिसी की खाड़ी में गिरती है। इस नदी के बेसिन में पेट्रोलियम के भंडार पाए जाते हैं ।अंगारा तथा तुनगुस्का इसकी प्रमुख सहायक नदियां हैं। यह नदी नदमुख बनाती है।

लीना नदी :-

यह बैकाल झील के पास स्थित पर्वतों से निकलती है ।यह नदी लैप्टैव सागर में गिरती है। इस नदी के बेसिन क्षेत्र में सोने के प्लेसर निक्षेप पाए जाते हैं ।यह आर्कटिक महासागर में गिरने वाली सबसे बड़ी नदी है ।यह साइबेरिया के मैदान की प्रमुख नदी है।

आमूर नदी:-

यह नदी मंगोलिया के पर्वतीय क्षेत्र से निकलती है तथा टार्टरी की खाड़ी में गिरती है ।यह नदी रूस तथा चीन के बीच सीमा का निर्माण करती है।

हवांग ही नदी:-

इस नदी का उद्गम तिब्बत के पठार से होता है तथा यह बो हाई की खाड़ी में गिरती है ।यह एशिया की दूसरी सबसे लंबी नदी है ।यह विश्व में सर्वाधिक अवसाद लाने वाली नदी है ।यह नदी पीले रंग के अवसाद लाती है अतः इसे पीली नदी भी कहते हैं। अवसादो की मात्रा अधिक होने के कारण यह नदी बार-बार अपना मार्ग परिवर्तित करती है अतः इसके कारण बाढ़ आती है और इसे चीन का शोक कहा जाता है।

यांग्त्सी नदी :-

इस नदी का उद्गम तिब्बत के पठार से होता है तथा यह पूर्वी चीन सागर में गिरती है। यह एशिया की सबसे लंबी तथा विश्व की तीसरी सबसे लंबी नदी है ।इस नदी पर थ्री गॉर्जियस बांध स्थित है। यह विश्व की सबसे बड़ी जल विद्युत उत्पादन परियोजना है ।इस नदी का उपयोग नौवहन के लिए किया जाता है ।इस नदी के बेसिन क्षेत्र में कृषि की जाती है ।इस नदी के किनारे चीन के प्रमुख शहर स्थित हैं जैसे शंघाई ,वुहान ,हांगझोउ। इस नदी के बेसिन क्षेत्र में लौह अयस्क तथा पेट्रोलियम के भंडार पाए जाते हैं।

सि कियांग नदी:-

इस नदी का उद्गम तिब्बत के पठार से होता है तथा यह दक्षिण चीन सागर में गिरती है ।यह दक्षिणी चीन की प्रमुख नदी है ।इस नदी के बेसिन क्षेत्र में चावल की खेती की जाती है।

लाल नदी

इस नदी के किनारे वियतनाम की राजधानी हनोई स्थित है

छाओ फ्राया नदी:-

इस नदी के किनारे थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक की स्थित है

मेकांग नदी:-

इस नदी का उद्गम तिब्बत के पठार से होता है तथा यह दक्षिण चीन सागर में गिरती है। यह दक्षिण पूर्वी एशिया की सबसे लंबी और प्रमुख नदी है। इस नदी के किनारे लाओस तथा कंबोडिया की राजधानी स्थित है। यह नदी चीन ,म्यांमार तथा लाओस के ट्रिपल प्वाइंट से गुजरती है ।यह म्यांमार तथा लाओस के बीच सीमा का निर्माण करती है। यह नदी में म्यांमार तथा थाईलैंड ,लाओस के ट्रिपल प्वाइंट से गुजरती है ।इस ट्रिपल प्वाइंट वाले चित्र में स्वर्णिम त्रिभुज स्थित है। यह त्रिभुज वाला क्षेत्र अफीम की गैर कानूनी खेती एवं व्यापार के लिए कुख्यात है। कंबोडिया में यह नदी तोन्लै सैप नदी से मिलती है।

साल्वीन नदी:-

इस नदी का उद्गम तिब्बत के पठार से होता है तथा यह मर्तबान की खाड़ी में गिरती है। यह पूर्वी म्यांमार की प्रमुख नदी है ।यह नदी म्यांमार तथा थाईलैंड के बीच सीमा का निर्माण करती है। यह नदी शान के पठार पर बहती है।

इरावदी नदी:-

इस नदी का उद्गम हिमालय से निकलने वाली विभिन्न धाराओं के मिलने से होता है ।यह नदी अंडमान सागर में गिरती है। यह म्यांमार की सबसे प्रमुख एवं लंबी नदी है। इस नदी का उपयोग नौवहन के लिए किया जाता है ।इस नदी के डेल्टा क्षेत्र में म्यांमार का प्रमुख शहर यांगून स्थित है ।इस नदी के डेल्टा क्षेत्र में चावल की खेती की जाती है ।चिंदविन इसकी प्रमुख सहायक नदी है।

सुरमा नदी:-

यह पूर्वी बांग्लादेश की प्रमुख नदी है ।भारत में इसे बराक नदी के नाम से जाना जाता है ।बराक नदी मणिपुर की प्रमुख नदी है ।सुरमा नदी अन्य नदियों धाराओं के साथ मिलकर मेघना नदी का निर्माण करती है ।इस नदी पर तपाईमुख परियोजना का विकास किया जा रहा है। (450mwभारत व बांग्लादेश द्वारा)।

एशिया के प्रमुख मैदान

मेसोपोटामिया के मैदान :-

यह मैदान पश्चिम एशिया में स्थित है इन मैदानों का निर्माण टिगरिस तथा यूफ्रेट्स नदी द्वारा हुआ है इसमें दानी क्षेत्र में शुष्क परिस्थितियां पाई जाती हैं इस मैदानी क्षेत्र का उपयोग मुख्यतः पशुपालन के लिए किया जाता है इस मैदानी क्षेत्र में जीवाश्म ईंधन के भंडार पाए जाते हैं जैसे पेट्रोलियम इस मैदानी क्षेत्र में विश्व की प्राचीनतम सभ्यता का विकास हुआ था जिसे मेसोपोटामिया सभ्यता कहते हैं

मंचुरिया के मैदान:-

यह चीन के उत्तर पूर्वी भाग में स्थित शीतोष्ण कटिबंधीय घास के मैदान है ।यहां चरनोजम मृदा पाई जाती है अतः पौस्टिक घास का विकास होता है एवं यहाॅ पशुपालन किया जाता है।इस घास के मैदान में लौह अयस्क के भंडार भी पाए जाते हैं अतः यह एक प्रमुख औद्योगिक केंद्र है ।जैसे फुसबन,शैयांग,अनशान। यह तीनों स्थान सम्मिलित रूप से मुकदेन त्रिभुज कहलाते हैं।

साइबेरिया के मैदान मैदा

यह रूस में स्थित मैदान है जो यूराल पर्वत से लेना नदी तक विस्तृत है इस मैदानी क्षेत्र के दोनों और अवसादी चट्टानें पाई जाती हैं अतः यह पथरीला मैदान है एवं कृषि के लिए उपयोगी नहीं है इसमें धनी क्षेत्र के उत्तरी भाग में नदियों के जमने के कारण दलदली परिस्थितियां पाई जाती है

एशिया के प्रमुख मरुस्थल

1. रूब- अल- खाली मरुस्थल:-

  • यह सऊदी अरब में स्थित मरुस्थल है ।
  • यह विश्व का सबसे बड़ा अर्ग मरुस्थल है।
  • इस मरुस्थलीय क्षेत्र में जीवाश्म ईंधन के भंडार पाए जाते हैं।

2.तकला मकान मरुस्थल:-

  • यह मरुस्थल चीन में कुनलुनशान तथा तियनशान पर्वतों के बीच स्थित है।

वृष्टि छाया क्षेत्र में होने के कारण इस मरुस्थल का निर्माण हुआ है।

  • यह मरुस्थल तारीम बेसिन में स्थित है।
  • यह विश्व का दूसरा सबसे बड़ा अर्ग मरुस्थल है।

3.गोबी मरुस्थल:-

  • उत्तरी चीन तथा दक्षिणी मंगोलिया में स्थित मरुस्थल है ।
  • वृष्टि छाया क्षेत्र में स्थित होने के कारण इस मरुस्थल का निर्माण हुआ है ।
  • उच्च अक्षांश में स्थित होने के कारण यह ठंडा मरुस्थल है ।
  • यह हमादा मरुस्थल है ।
  • इस मरुस्थल के उत्तर पश्चिम भाग में जीवाश्म पाए जाते हैं।

जलसंधि

बैव-इल मैंडेब जलसन्धि:-

यह जलसंधि लाल सागर को अदन की खाड़ी से जोड़ती है यह अमन को जिबूती से अलग करती है यह एशिया को अफ्रीका से अलग करती है यह जलसंधि तेल की व्यापार के लिए विख्यात है

होर्मुज जलसन्धि:-

यह जलसंधि फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी से जोड़ती है यह ईरान को ओमान से अलग करती है

जोहोर बाहरु जलसन्धि:-

यह जलसंधि मलेशिया को सिंगापुर से अलग करती है

मलक्का जलसन्धि:-

यह जलसंधि मलेशिया को सुमात्रा से अलग करती है ।यह जावा सागर को अण्डमान सागर से जोड़ती है।

सुण्डा जलसन्धि:-

यह जलसंधि सुमात्रा एवं जावा दीप को अलग करती है। यह जावा सागर को हिंद महासागर से जोड़ती है।

मकास्सर जलसन्धि:-

यह बोर्नियो को सुलावेसी से अलग करती है तथा सेलेबीज सागर को जावा सागर से जोड़ती है।

लूजोन जलसन्धि:

यह जलसंधि ताइवान को फिलिपीस से अलग करती है। तथा यह दक्षिण चीन सागर को प्रशांत महासागर से जोड़ती है।

पाक जलसन्धि:-

यह जलसंधि मन्नार की खाड़ी को पाक की खाड़ी से जोड़ती है। यह अरब सागर को बंगाल की खाड़ी से जोड़ती है। इस जलसंधि वाले क्षेत्र में भारत तथा श्रीलंका के बीच मत्स्य विवाद रहते हैं। यह भारत को श्रीलंका से अलग करती है।

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