राजस्थान का इतिहास

1. राजस्थान के ऐतिहासिक स्रोत

भारत के उत्तर पश्चिम में राजस्थान राज्य स्थित है। राजस्थान के लिए कई शब्दों का प्रयोग किया गया है।

1 राजपूताना शब्द-

राजस्थान के लिए सर्वप्रथम राजपूताना शब्द का प्रयोग जॉर्ज थॉमस ने 18 सीसी में क्या था यह जोड़ थॉमस एक अंग्रेज अधिकारी था जो मूरत आयरलैंड का निवासी था जॉर्ज थॉमस सर्वप्रथम 1758 में राजस्थान के शेखावाटी प्रदेश में आया था था इसकी मृत्यु बीकानेर में हुई थी राजपूताना शब्द का हमें सर्वप्रथम लिखित प्रमाण 18 से 5 ईसवी में जोड़ सो मच के दोस्त विलियम जैकलिन की पुस्तक मिलिट्री में माया जॉर्ज थॉमस में मिलता है इस पुस्तक का विमोचन लॉर्ड वेलेजली द्वारा किया गया राजस्थान प्रदेश को अंग्रेजों के शासन काल में मध्यकाल में राजपूताना के नाम से जाना जाता था।

2 राजस्थान शब्द

राजस्थान शब्द का सबसे प्राचीनतम लिखित प्रमाण हमें बसंतगढ़ सिरोही में स्थिति सिमल माता एक ही मल माता के मंदिर में उत्कीर्ण विक्रम संवत 682 के शिलालेख में मिलता है जिसमें राजस्थानी आदित्य शब्द उत्पीडन है इसके बाद राजस्थान शब्द का प्रयोग मोहनोत नैणसी री ख्यात में मिलता है इसी ग्रंथ को हम राजस्थान का प्रथम ऐतिहासिक ग्रंथ मानते हैं राजपूताना भूभाग के लिए सर्वप्रथम राजस्थान शब्द का प्रयोग 1829 में कर्नल जेम्स टॉड ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक की एनल्स एंड एंटीक्विटीज ऑफ राजस्थान में किया है कर्नल जेम्स टॉड ने सर्वप्रथम राजस्थान के इतिहास को विस्तृत रूप से लिखा था इसलिए कर्नल जयपुर राजस्थान के इतिहास का जनक कहा जाता है भारत के आजाद होने के उपरांत पी सत्यनारायण राव कमेटी की सिफारिशें शो दैनिक तौर पर इस प्रदेश के लिए राजस्थान शब्द को 26 जनवरी 1950 को मान्यता मिली।

राजस्थान के इतिहास को जानने के स्रोत

किसी भी देश या राज्य का गौरव उसके इतिहास से ज्ञात होता है प्राचीनतम काल का अधिकांश इतिहास लिपिबद्ध नहीं है इसलिए इतिहास के विद्यार्थियों को इस देश में राज्यों को संबंधित ऐतिहासिक स्रोतों का सहारा लेना पड़ता है राजस्थान के इतिहास को जानने के मुख्य साधनों को हम सुविधा की दृष्टि से निम्न भागों में विभाजित करते हैं

1 पुरातात्विक स्रोत

राजस्थान के इतिहास के अध्ययन के लिए पुरातात्विक स्रोत सर्वाधिक प्रमाणिक साक्ष्य हैं पुरातात्विक स्रोत में नए नष्ट हुए प्राचीन मानव सभ्यता से संबंधित और से जैसे मृदभांड ग्रह है उसे पाषाण ताम्र रहेगी उधर आते हैं जिनका राजस्थान के प्रमुख बदनाम

2 पूरा लिखिए स्रोत

विभिन्न भाषाओं में लिखी हुई प्राप्त सामग्री जिसे हम पढ़ कर उस जमाने के बारे में जान सके वह पूरा ले के स्रोत कहलाते हैं पूरा लेकर स्रोतों में शिलालेख सिक्के ताम्रपत्र अभिलेख ब्रिटिश एजेंट द्वारा राज्य सरकारों को भेजे गए पत्र आदि शामिल है कहते हैं

महत्वपूर्ण बिंदु- नीतियों के अध्ययन को हम तेल योग्राफी कहते हैं भारतीय लिपियों पर प्रथम वैज्ञानिक अध्ययन का श्रेय राजस्थान के प्रसिद्ध इतिहासकार पंडित गौरीशंकर हीराचंद ओझा को जाता है जिन्होंने भारतीय नीति पर भारतीय प्राचीन लिपि माला नामक ग्रंथ लिखा था।

शिलालेख

प्राचीन खंडहर मुद्राओं की भर्ती राजस्थान के इतिहास की जानकारी के लिए सबसे अधिक विश्वसनीय इतिहास बनाने वाला एक साधन शिलालेख है जहां कहीं अन्य साधनों का अथवा स्पष्ट है वही इतिहास के निर्माण में हमें उनसे बड़ी सहायता मिलती है यह शिलालेख शीला उपस्थित तो भावनाओं की दीवारों मंदिरों के भागों को संभोग मत हो तालाबों बावरियों की दीवारों चुनाव पर बहुत मिलते हैं जिन शिलालेखों पर किसी शासक की उपलब्धि की शाखा का उल्लेख मिलता है उसे प्रशस्ति कहते हैं शिलालेखों के द्वारा हमें जमाने के राजाओं की उपलब्धियां सामाजिक धार्मिक व सांस्कृतिक की जानकारी मिलती है।

विशेष बिंदु

1 .अभिलेखों के अध्यन को एपीग्राफिक कहते हैं भारत में सबसे प्राचीन शिलालेख अशोक महान ने बनवाया भारत में संस्कृत भाषा का प्रथम अभिलेख शासक की रुद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख है राजस्थान के शिलालेखों की भाषा संस्कृतम् राजस्थानी है राजस्थान में प्रार्थना दूसरे लोगों में मिले थे बड़वा स्तंभ लेख 12 जिले के बड़वा नामक स्थान से प्राप्त 238 से 229 ईसवी के शिलालेख को सोमदेव सिंह द्वारा छात्रों के आयोजन के उपरांत द्वारा को संपादित किए जाने का उल्लेख मिलता है।

2. नानसा यू स्तंभ लेख 225 ईसवी यह शिलालेख भीलवाड़ा जिले में नाम सा गांव के एक तवांग तालाब में 12 फीट ऊंचा और साडे 5 सीट गोलाई में एक बोल स्थल के रूप में मिला है इसलिए को केवल तालाब का पानी सूखने के बाद पढ़ा जा सकता है इसलिए की रचना संवत 282 के चैत्र की पूर्णिमा को तथा स्थापना सोम के द्वारा की गई थी इसलिए इसे हमें ज्ञात होता है कि क्षत्रियों के राज्य विस्तार हेतु घुंगरू नामक व्यक्ति द्वारा यह सृष्टि रात्र यज्ञ संपादित किया गया अतः उत्तरी भारत में प्रचलित पौराणिक लोगों के बारे में जानकारी नाम था स्तंभ लेख से मिलती है

3. बरनाला यूथ स्तंभ लेख 227 ईसवी यह शिलालेख जयपुर जिले में बरनाला नामक स्थान से प्राप्त हुआ है जिसे आमेर संग्रहालय में रखा गया है इसलिए की रचना संवाद 284 ईसवी के चित्र शुक्ल पूर्णिमा को की गई है इस लेख में हमें यह पता चलता है कि वर्णन बोत रोहित वन वर्धन नामक व्यक्ति ने यहां साथियों स्तंभों की प्रतिष्ठा करवा कर पुण्य प्राप्त किया था।

4. बड़वा स्तंभ लेख 238 से 39 ईसवी यह शिलालेख कोटा जिले के बड़वा नामक गांव में मिलता है जिसकी लिपि तीसरी शताब्दी ईसा की है इस लेख में कि रात्रि अब अब तो यहां व्यक्त का उल्लेख मिलता है यह लेख वैष्णव धर्म तथा एक महिमा के घोतक है।

5. बिचपुरी अशोक स्तंभ लेख 224 ईसवी– यह शिलालेख जयपुर राज्य वर्तमान में टोंक जिले के उनियारा ठिकाने के बीच पुरिया मंदिर के आंगन में मिला है इस लेख से हमें यह अनुष्ठान का बोध होता है परंतु व्यक्ति विशेष के नाम की जानकारी नहीं मिलती इसी मुद्रक का परिचय अग्निहोत्र के रूप में दिया गया है।

6. विजयगढ़ यू स्तंभ लेख 371 से 372 ईसवी– यह शिलालेख भरतपुर जिले में स्थित विजयगढ़ नामक दुर्ग की दीवार पर मिलना है इस लेख में हमें राजा विष्णुवर्धन के पुत्र यशोवर्धन द्वारा यहां पुंडरीक नामक एक किए जाने की जानकारी मिलती है।

7. गंगधार का लेख– झालावाड़ जिले में गंगधार से 424 ईसवी का शिलालेख मिला है जिसमें विश्वकर्मा के मंत्री मयूरांक द्वारा विष्णु मंदिर के निर्माण का उल्लेख मिलता है इस मंदिर में तांत्रिक शैली के मात्र ग्रह के निर्माण का उल्लेख मिलता है इस शिलालेख में पांचवीं शताब्दी की सामंती व्यवस्था पर भी प्रकाश पड़ा है।

8. बड़ली का लेख 443 ईसा पूर्व ऐसी रैली अजमेर स्थित बड़ली नामक स्थान पर एक स्तंभ के टुकड़े पर अंकित प्राप्त हुआ है जो राजस्थान का सबसे प्राचीनतम और भारत में तिरियवा के अभिलेख 487 से पूर्व के बाद भारत का यह सबसे पुराना अभिलेख माना जाता है।

9. घोसुंडी शिलालेख दित्य शताब्दी ईसा पूर्व यह शिलालेख चित्तौड़गढ़ जिले में नगरी के निकट घोसुंडी गांव में कई सिला खंडों में टूटा हुआ मिला है इनमें से एक बड़ा शिलाखंड उदयपुर संग्रहालय में सुरक्षित है इस शिलालेख पर संस्कृत भाषा व ब्राह्मी लिपि का प्रयोग किया गया है इस लेख में बताया गया है कि राजवंश के शरीर के पुत्र शुरुआत में यहां अश्वमेघ यज्ञ किया था इसीलिए से पता चलता है कि शताब्दी ईसा पूर्व यहां पर धर्म का प्रचार वासुदेव की मान्यता और अशोक का प्रचलन था यह राजस्थान के वैष्णव संप्रदाय का सबसे प्राचीनतम अभिलेख है।।

10. नगरी का शिलालेख 424b शिलालेख– चित्तौड़गढ़ जिले में नगरी नामक स्थान पर उत्खनन के समय डीआर भंडारकर को मिला जिसे अजमेर संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया इसलिए की भाषा संस्कृत वैलिड इन आगरा इस लेख में हमें यह जानकारी मिलती है कि नगरी का संबंध विष्णु की पूजा के स्थान विशेष चेहरा होगा।

11. ब्रह्मा माता का लेख -प्रतापगढ़ जिले के छोटी सादड़ी के भ्रमण माता मंदिर से 490 ईसवी का शिलालेख मिला है जो पांचवी शताब्दी की राजनीतिक स्थिति तथा प्रारंभिक काल कालीन सामंत प्रथा के संबंध में जानकारी प्रदान करता है इस प्रशस्ति का पुरवा तथा रचेता मित्र सोम का पुत्र ब्रह्म सोम था इसी लालच से गोली कार वंश के शासकों का उल्लेख मिलता है।

12. चित्तौड़ के दो खंड लेख 532 ईसवी- यह सीरियल एक चित्तौड़गढ़ दुर्ग में मिला पहले वाले खंड पर लिखा है कि वराह के पुत्र व विष्णु दत्त का पुत्र चित्तौड़ और दशपुर का राजस्थानी है तथा दूसरे पर मनोहर स्वामी यथार्थ विष्णु मंदिर का उल्लेख मिला है इस लेख में में यह जानकारी प्राप्त होती है कि छठी शताब्दी के प्रारंभ में मंदसौर के शासकों का चित्तौड़ पर अधिकार था वे अपने प्राचीन के अधिकार को को इस भाषाएं के शासन के लिए नियुक्त करते थे जो राजस्थान में कहलाते थे।

2. राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएं एवं पुरास्थल

प्राचीन प्रस्तर युग की संस्कृति

राजस्थानी मानव का प्रादुर्भाव कब हुआ इस संबंध में कोई लिखित इतिहास प्राप्त नहीं होता परंतु आज से करीब 200000 वर्ष से 50000 वर्ष पुराने समय के कंकाल अस्थि पंजर तथा लकड़ी हड्डी व पत्थर से बनेगी v2000 और उपकरणों की खोज के आधार पर यह माना जाता है कि यहां एक मानव संस्कृति का स्थिति था।

विकास के क्रम में मानव ने सर्वप्रथम पाषाण निर्मित सामानों का प्रयोग करना प्रारंभ किया मानव सभ्यता का यह समय पाषाण युग के नाम से जाना जाता है भाषणों के उपरांत मानव ने धातुओं का प्रयोग करना प्रारंभ किया मानव ने जिस धातु का इस्तेमाल सबसे पहले किया वह तांबा था सभ्यताओं को ताम्र युगीन सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है तांबे के पश्चात कांस्य का इस्तेमाल होने लगा कौन सा को तांबा व टिन से बनाया जाता है यह सभ्यता कांस्य युगीन सभ्यता के लाती है कांसे के पश्चात लोहे का प्रयोग किया जाने लगा इन सभ्यताओं को लोहे युगीन सभ्यता के नाम से जाना जाता है ।

भारत एवं राजस्थान के इतिहास के स्रोतों अध्ययन की दृष्टि से हम इतिहास को तीन भागों में बांटते हैं ।

1. प्रागैतिहासिक काल

2. आघऐतिहासिक काल

3.ऐतिहासिक काल

1. प्रागैतिहासिक काल

प्रागैतिहासिक काल हम उस काल को कहते हैं सभ्यता एवं संस्कृति का वह योग्य जिस से संबंधित हमें कोई लिखित साक्ष्य उपलब्ध नहीं होते तथा तात्कालिक समय की जानकारी के लिए इतिहासकारों को प्राथमिक सामग्री पर ही निर्भर रहना पड़ता था प्रागैतिहासिक काल में व्यक्ति पशुपालन आप जलाना समूह में रहना सीख चुका था इसी काल में मनुष्य ने विश्व का प्रथम वैज्ञानिक आविष्कार 18 पहिए का आविष्कार कर लिया था इस काल में में सर्वाधिक सामग्री पाषाण पत्थर से बनी मिली इसलिए इस काल को पाषाण काल के नाम से भी जाना जाता है वर्षण प्राप्त उपकरणों के आधार पर प्रागैतिहासिक काल को हम प्रमुख तीन भागों में बांटते हैं अ से अनार प्रारंभिक पाषाण काल इस काल में हमें मुख्यता पाषाण निर्मित टेबल एंड एक्स लीवर टॉपर शॉपिंग आदि प्रकार के औजार मिलते हैं हस्त कुठार वर्क यह मानव की सबसे प्राचीन उपकरण है इस काल का समय 500000 इसापुर उसे 1000000 ईसापुर तक मिलता है राजस्थान में इस काल के प्रतिनिधि स्थल दीया दीया जयपुर मानगढ़ नाथद्वारा हमीरपुर भीलवाड़ा मंडपिया चित्तौड़ बिंगो भीलवाड़ा देवली टोंक आदि यीशु के पत्थर से बने हैंड एक्स उपकरणों की सर्वप्रथम खोज करने जयपुर में इंदरगढ़ में की इस युग के औजार थे इस समय का मानव आग जलाना सीख चुका था लेकिन पहिए से अपरिचित था मध्य पाषाण काल इस युग में प्रारंभिक पाषाण काल की तुलना में अधिक मुलायम पाषाण एवं उनका आकार अपेक्षाकृत छोटा होने लगा इस काल में मानव पशु पालन करने लगा गया था इस काल का समय 10000 ईसा पूर्व से 6000 ईसा पूर्व तक माना जाता है इसी काल में मानव पत्रों पर चित्रों का अंकन करने लग गया था राजस्थान में इस काल के प्रतिनिधि स्थल आलनिया गिलास गढ़ाकोटा विराटनगर जयपुर मोहनपरा सीकर हरसोरा बांदा अलवर है

उत्तर पाषाण काल नवपाषाण काल इस कॉल में हमें पाषाण उपकरणों के साथ-साथ हस्त उपकरण भी प्राप्त होते हैं इस काल का समय 7000 ईसा पूर्व के बाद का माना जाता है इस काल में मनुष्य पशुपालन एवं कृषि करना शुरू कर चुके थे वास्तव में राजस्थानी मानव की आधारशिला इसी काल में रखी गई थी राजस्थान में इस काल के प्रतिनिधि स्थल बनास नदी के तट पर हमीरगढ़ जहाजपुर भीलवाड़ा लूनी नदी के तट पर समदड़ी बाड़मेर तथा भरनी टोंक आदि हैं इस काल में मानव बाइक से परिचित हो गया था तथा इस काल में कपास की खेती होने लगी थी इसमें समाज में व्यवस्था के आधार पर जाति व्यवस्था का सूत्रपात हो गया था

आग ऐतिहासिक काल

सभ्यता एवं संस्कृति का वह युग जिसमें संबंधित लिखित साक्ष्य तो प्राप्त होते हैं लेकिन वह अफेक्ट ही हैं इस सभ्यता की लिपि दाएं से बाएं बाएं से दाएं की और सर के समान लिखी जाती थी अतः इस लिपि को सर पिलाकर एवं दोस्तों की जान लेती भी कहते हैं इस काल में व्यक्ति बस्तियां बनाकर रहने लगे थे रेडियो कार्बन पद्धति के आधार पर जेपी अग्रवाल ने सिंधु सभ्यता का काल ईसा पूर्व से 1750 के मध्य रखा है

ऐतिहासिक काल

सभ्यता एवं संस्कृति का भाइयों जिस जिस से संबंधित पूर्व लिखित पठनीय एम प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध है ऐतिहासिक काल कहलाता है भारत के संदर्भ में इसका प्रारंभ 6 ईसा पूर्व से माना जाता है

हड़प्पा सभ्यता के समकालीन राजस्थान में पुरातात्विक स्थल

क्रम संख्या पुरातात्विक स्थल जिला

पहला भगवानपुरा उदयपुर रेलवे दुखेरी 12 बालाथल वल्लभनगर उदयपुर गिलुंड रेलमगरा राजसमंद कालीबंगा हनुमानगढ़ थे हट हनुमानगढ़ आयडिया धूलकोट उदयपुर पीलीबंगा हनुमानगढ़ कालीबंगा प्रथम यशवंती बीकानेर

ताम्र युगीन सभ्यता के समकालीन राजस्थान में पुरातात्विक स्थल

नोहा भरतपुर गणेश्वर सीकर बूढ़ा पुष्कर अजमेर मेड़ता कार जयपुर बयान से अंदर सिरोही पिंड मांड लिया चित्तौड़गढ़ कॉल माहिरी सवाई माधोपुर छापरी पूगल बीकानेर झाड़ल उदयपुर जोधपुरा जयपुर नंदलालपुरा जयपुर किरा डोल जयपुर सीताबाड़ी जयपुर मल्हा भरतपुर लुधियाना भीलवाड़ा रंग महल हनुमानगढ़ कुराड़ा परबतसर नागौर सांवरिया बीकानेर सोहन पुरा सीकर एकल सिहा अजमेर एलाना जालौर तात्या बालम बंसी अलवर

आर्य सभ्यता के समकालीन राजस्थान के पुरातात्विक स्थल

सुनारी झुंझुनू बेहट जयपुर अनूपगढ़ श्रीगंगानगर चक 84 श्रीगंगानगर नोहा भरतपुर तरखान वाला श्रीगंगानगर जोधपुर आज जयपुर

सिंधु सभ्यता हड़प्पा सभ्यता

भारत की सबसे प्राचीन सभ्यता हिंदू हड़प्पा सभ्यता है सिंधु नदी हिमालय पर्वत से निकलकर पंजाब तथा चंद्र प्रदेश से बहती हुई अरब सागर में मिलती है इस नदी के तटों पर दो सभ्यता विकसित हुई है उसे सिंधु सभ्यता कहा जाता है सर्वप्रथम 18 से 20 ईसवी में हड़प्पा के टीले का उल्लेख चार्ल्स मेंशन द्वारा किया गया है चार्ल्स मनसन एक बार लाहौर घूमने गया उसने इस टीले पर उधर उधर दिख रही टो को देखकर उसने कहा कि यह उजड़ी हुई बस्ती शायद सिकंदर लोदी के द्वारा बताई गई थी इसके बाद 18 से 56 ईसवी में दो भाई जॉन बटन एंड विलियम बटन ने कराची से लाहौर में रेल लाइन बिछाई इस कार्य हेतु उन्होंने ऐसी खुदाई करवाकर ईटा निकाल निकलवाई परंतु उनके दिमाग में यह विचार नहीं है कि यहां कैसे आई लेकिन इस कार्य को अलेक्जेंडर कनिंघम नामक व्यक्ति देखकर रहा था 1803 में एक निगम का निरीक्षण किया एक निगम के प्रयासों से ही पुरातत्व विभाग की स्थापना कोलकाता में की 1920 में इस विभाग को डायरेक्टर या महानिदेशक जॉन मार्शल बने उनके निर्देशन में सर्वप्रथम रावी नदी के तट पर दयाराम साहनी एवं माधव स्वरूप ने सन 1920 में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित हड़प्पा माउंट गोगरी जिले में उत्खनन करवाया जिसके दौरान के अवशेष प्राप्त हुए इसी जगह के नाम से इसे हड़प्पा सभ्यता भी कहते हैं सर्वाधिक सिंधु नदी के आसपास होने के कारण बता देते हैं उन्हें सभ्यता की घोषणा की गई सिंधु नदी सभ्यता को प्रथम कहते हैं 15 अगस्त को भारत की स्वाधीनता के बाद पाकिस्तान में चले गए इसलिए हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान ने अपनी सभ्यता विश्व की प्राचीन सभ्यता होने का शुरू कर दिया पाकिस्तान के इस दावे को एक बार चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए भारत ने पुरातत्व विभाग ने पूरी पंजाब राजस्थान और गुजरात में उनका कार्य प्रारंभ किया फलस्वरूप गोश्त निकाली वह दूसरे ऐसे ही टीमों की खोज निकाला कालीबंगा सभ्यता के प्रमुख स्थलों में से एक है जो हड़प्पा कालीन पूर्व और पश्चिम था राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में स्थित है राजस्थान का क्षेत्रफल में स्थिति वर्तमान में विलुप्त हो गई है इस नदी की जगह देती है सरस्वती की गई है यह उस समय का मीरपुर पर्वत है जिसे ऋग्वेद में कहा गया है कि के आसपास दक्षिण पश्चिम राजस्थान की गणना सारस्वत क्षेत्र में की जाती थी सरस्वती नदी आज की राजस्थान में भूमिगत होकर बह रही है सरस्वती नदी प्राचीन काल में पश्चिमी राजस्थान में बैठी थी और वर्तमान में यह नदी पश्चिमी राजस्थान में बहती है इसकी पुष्टि वह इस नदी के मार्ग की सर्वश्रेष्ठ खोज कादरी सेंट्रल एरिड जोन रिसर्च इंस्टिट्यूट ऑफ़ जोधपुर ने की है कादरी के वैज्ञानिकों ने इस नदी के यहां प्रवाहित होने की संबंधित दो तथ्य अपने सामने रखे हैं

राजस्थान का मध्यकालीन इतिहास

मेवाड़ का इतिहास

मेवाड़ के प्राचीन नाम:- मेदपाट, प्राग्वाट, शिवी जनपद।

गुहिल वंश :-

  • गोयल वंश की स्थापना गोहिल ने 566 ईसवी में की थी।
  • गुहिल वंश की 24 शाखाएं थी इनमें मेवाड़ के गुहिल सबसे प्रमुख थे।
  • गोविंद शासक सूर्यवंशी हिंदू थे।

बप्पा रावल

  • वास्तविक नाम -कालभोज
  • यह हारित ऋषि का शिष्य था।
  • 734 ईसवी में मान मौर्य को हराकर चित्तौड़ पर अधिकार कर लेता है।
  • राजधानी -नागदा( उदयपुर )
  • नागदा में एकलिंग मंदिर का निर्माण करवाया।
  • मेवाड़ के शासक स्वयं को एकलिंग जी का दीवान मानते थे।
  • बप्पा रावल मुस्लिम सेना को हराते हुए गजनी तक चला गया था तथा वहां के राजा सलीम को हटा दिया तथा अपने भांजे को राजा बनाया।
  • रावलपिंडी शहर का नाम बापा रावल के कारण पड़ा।
  • सी वी वैध ने बप्पा रावल की तुलना फ्रांस का कमांडर चार्ल्स मार्टेल से की है ।
  • मेवाड़ में सोने के सिक्के प्रारंभ किए।( 115 क्रेन का सिक्का)।
  • उपाधिया- हिंदू सूरज, राजगुरु ,चक्कवे (चारों दिशाओं को जीतने वाला)

अल्लट

  • अन्य नाम -आलू रावल
  • आहड़ को दूसरी राजधानी बनाया ।
  • आहड़ में वराह मंदिर का निर्माण करवाया ।(विष्णु जी का)।
  • मेवाड़ में नौकरशाही की स्थापना की ।
  • अल्लट ने हूण राजकुमारी हरिया देवी से शादी की।

जैत्र सिंह

  • भुताला का युद्ध :-जैत्र सिंह वर्सेज इल्तुतमिश जैत्र सिंह जीत गया ।
  • इल्तुतमिश की भागती हुई सेना ने नागदा को लूट लिया था ।
  • जैत्र सिंह ने चित्तौड़ को नई राजधानी बनाया ।
  • जय सिंह सूरी की पुस्तक हमीर मधुमर्दन भुताला युद्ध की जानकारी देती है ।
  • जैत्र सिंह का शासन काल मध्यकालीन मेवाड़ का स्वर्ण काल था।

रतन सिंह

  • उसका छोटा भाई कुंभकरण नेपाल चला गया था तथा वहां गुहिल वंश की राणा शाखा का शासन स्थापित किया ।
  • अलाउद्दीन खिलजी का चित्तौड़ पर आक्रमण 1303 ईस्वी:- कारण =
  • अलाउद्दीन खिलजी की साम्राज्यवादी नीति
  • चित्तौड़ का व्यापारी तथा सामरिक महत्व
  • सुल्तान के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न
  • मेवाड़ का बढ़ता हुआ प्रभाव
  • पद्मिनी की सुंदरता
  • पद्मिनी -सिंहल दीप की राजकुमारी थी।
  • पिता- गंधर्व सेन ,माता -चंपावती।
  • राघव चेतन नामक ब्राह्मण अलाउद्दीन खिलजी को पद्मिनी की बारे में बताया।
  • 1303 में चित्तौड़ का पहला शाखा हुआ।
  • शाखा- जोहर प्लस केसरिया।
  • अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया तथा नाम बदलकर खिज्राबाद कर दिया ।
  • चित्तौड़ अपने बेटे खिज्रा खाँ को दे दिया।
  • खिज्र खाँ ने गंभीरी नदी पर पुल बनवाया।
  • खिज्र खाँ ने यहां पर मकबरे का निर्माण करवाया।
  • इस मकबरे के फारसी लेख में ईश्वर की छाया तथा संसार का रक्षक बताया गया है ।
  • थोड़े दिनों बाद चित्तौड़ मालदेव सोनगरा को दे दिया गया ।
  • मालदेव सोनगरा को मुछाला मालदेव कहा जाता था ।
  • गोरा और बादल के में लड़ते हुए मारे गए ।
  • अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ में 80000 लोगों का कत्लेआम करवाया ।
  • मलिक मोहम्मद जायसी -पुस्तक -पद्मावत (अवधी भाषा में लिखी गई)।
  • जेम्स टॉड तथा मुहणौत नैंणसी ने भी इस कहानी को स्वीकार किया।
  • सूर्यमल मिश्रण ने भी इस कहानी को अस्वीकार किया।
  • अमीर खुसरो की पुस्तक ‘खजाइन उल फुतुह'(तारीख ए अलाई) मे चित्तौड़ आक्रमण का वर्णन किया गया है ।
  • रावल उपाधि का प्रयोग करने वाला अंतिम राजा ।
  • गोरा- बादल का बलिदान हमें सिखाता है कि जब देश पर आपत्ति आये तो प्रत्येक व्यक्ति को अपना सर्वस्व न्योछावर कर देश रक्षा में लग जाना चाहिए।

हम्मीर

  • मालदेव सोनगरा के बेटे बनवीर सोनगरा को हराकर मेवाड़ का शासक बना।
  • हम्मीर सिसोदा गांव का था इसलिए यहां से गुहिल वंश की सिसोदिया शाखा का राज्य शासन प्रारंभ हुआ।
  • सिसोदा गांव की स्थापना राहत ने की थी ।
  • हम्मीर ने राणा उपाधि का प्रयोग किया ।
  • हम्मीर को मेवाड़ का उद्धारक कहा जाता है।
  • कुंभलगढ़ प्रशस्ति में हमीर को विषम घाटी पंचानन कहा गया है।
  • रसिक प्रिया में हमीर को वीर राजा कहा गया है ।
  • हम्मीर ने चित्तौड़ में बरवड़ी माता का मंदिर बनवाया ।बरवाडी माता मेवाड़ के गुहिल वंश की कुलदेवी है ।(बाण माता मेवाड़ के गुहिल वंश की कुलदेवी है।)

लाखा(लक्ष सिंह)

  • जावर (उदयपुर) में चांदी की खान प्राप्त हुई।
  • एक बंजारे ने (घुमक्कड़ व्यापारी) ने पिछोला झील (उदयपुर) का निर्माण करवाया।
  • पिछोला झील के पास “नटनी का चबूतरा” है।
  • कुम्भा हाड़ा नकली बूंदी की रक्षा करते हुए मारा गया।
  • मारवाड़ के राजा चुंडा की बेटी हंसा बाई की शादी मेवाड़ के राणा लाखा के साथ हुई।
  • इस समय लाखा के बेटे चूड़ा ने प्रतिज्ञा की कि वह मेवाड़ का अगला राजा नहीं बनेगा ।
  • हंसा बाई के बेटे को मेवाड़ का अगला राजा मनाया जाएगा।
  • चूंडा को “मेवाड़ का भीष्म” कहा जाता है।
  • चूंडा को इस बलिदान के कारण कई विशेषाधिकार दिए गए=
  • मेवाड़ के 16 प्रथम श्रेणी ठिकानों में से चार चुंडा को दे दिए गए इनमें सलूंबर (उदयपुर )भी शामिल था।
  • सलूंबर का सामंत मेवाड़ का सेनापति होगा।
  • सलूंबर का सामन्त मेवाड़ के राजा का राज तिलक करेगा ।
  • राणा की अनुपस्थिति में सलूंबर का सामंत राजधानी संभालेगा ।
  • मेवाड़ के सभी कागज -पत्रों पर राणा के साथ सलूंबर का सामंत भी हस्ताक्षर करेगा।
  • हरावल = सेना की सबसे अगली टुकड़ी, चंदावल= सेना के पीछे की टुकड़ी।

मोकल

  • हंसा बाई का पुत्र था।
  • चूंडा को संरक्षक बनाया गया।
  • हंसा बाई के अंधविश्वास के कारण चूंडा मालवा चला गया ।(होशगंशाह मालवा का शासक)
  • हंसा बाई का भाई रणमल मोकल का संरक्षक बना।
  • मोकल ने एकलिंग मंदिर कि चारदीवारी का निर्माण करवाया।
  • समिद्धेश्वर मंदिर (चित्तौड़) का पुन निर्माण करवाया ।
  • पहले इस मंदिर का नाम त्रिभुवन नारायण मंदिर था तथा भोज परमार ने इसका निर्माण करवाया था।
  • 1433 में जीलवाड़ा (राजसमंद) नामक स्थान पर चाचा, मेरा,महपा पवार ने मोकल की हत्या कर दी।

कुम्भा

  • रणमल कुम्भा का संरक्षक था ।
  • कुंभा ने रणमल की सहायता से अपने पिता की हत्या का बदला लिया।
  • मेवाड़ दरबार में रणमल का प्रभाव बढ़ गया है तथा उसने सिसोदिया के नेता राघव देव( चुंडा का भाई) की हत्या करवा दी ।
  • हंसा बाई ने मालवा से चूंडा को वापस बुलाया ।
  • भारमली की सहायता से रणमल को मार दिया गया।
  • रणमल का बेटा जोधा भाग गया तथा बीकानेर के पास काहुनी गांव में शरण ली।
  • चुंडा ने मंडोर (मारवाड़ की राजधानी) पर अधिकार कर लिया।

आंवल-बांवल की सन्धि(1453):- कुम्भा व जोधा। इस संधि द्वारा मारवाड़ जोधा को वापिस दिया गया। सोजत (पाली )को मारवाड़ व मेवाड़ की सीमा बनाया गया । जोधा की बेटी “श्रृंगार कंवर” की शादी कुंभा के बेटे रायमल के साथ की।

सारंगपुर का युद्ध (1437):- कुम्भा v/s महमूद खिलजी(मालवा) कारण:- महमूद खिलजी ने मोल के हत्यारों को शरण दी थी कुंभा जीत गया तथा जीत की याद में चित्तौड़ में विजय स्तंभ बनवाया

चाम्पानेर की सन्धि(1456):-कुतुबद्दीन शाह(गुजरात)+महमूद खिलजी(मालवा) , उधेश्य – कुम्भा को हराना ।

बदनौर(भीलवाड़ा) का सन्धि (1457):- कुम्भा ने दोनो को एक साथ हरा दिया । कुम्भा ने सिरोही के सहसमल देवड़ा को हराया।

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